सोमवार, 16 जुलाई 2012

मेरा तो बस तू ही तू

गुरुदेव श्री महाराज जी की 
यू एस ए से विदाई 

 

मैं और गुरुदेव - विदाई का 'वह' करुण क्षण 
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मेरे प्यारे गुरुदेव 

तुझसे हमने दिल है लगाया ,जो भी है बस तू ही है 
हर दिल में तू ही है समाँया    जो भी है बस तू ही है 
तुझसे हमने दिल है लगाया
[ भोला ]
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गुरू कृपा के सहारे क्या से क्या बन गया
'मैं'  
[ मेरी आत्म कथा से  ]
महापुरुषों  से सुना है कि , इंसान लाख स्वयम को संसार का सबसे बड़ा ग्यानी ,ध्यानी, भगत , संत -सन्यासी समझे पर रहता है वह सदा सदा ही 'एक मानव'-
"भ्रम भूल में भटकता" एक अति साधारण जीव !
प्रियजन , इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हूँ 
मैं 
संत कबीर के शब्दों में 
मैं ="अपराधी जनम को मन में भरा विकार " 
   और हमारे प्यारे 'बाबागुरू' के शब्दों में 
मैं = "अपराधी हूँ बड़ा नख शिख भरा विकार"  
इस प्रकार मैं हूँ तो एक "बड़ा अपराधी"ही उस पर भी अति करुणा कर  
  दुख भंजन "बाबागुरू" ने मेरी करी सम्हार
[भोला]

सो दुखभंजन गुरुजन की अहेतुकी कृपा से मुझ अभागे मानव का भी भाग्य जगा और  मेरे सन्मुख का 'भ्रम भूल' का पर्दा' आप से आप ही खुल गया ! मेरे शुष्क जीवन में प्रेमाभक्ति  की  एक अविरल धारा प्रवाहित हो गई  ! "वसुदेवकुटुम्बकम" मत [ पथ ]के अनुयाई तथा सारी मानवता को निज इष्ट स्वरूप समझने [मानने\ वाले  अपमे समय के अनेकानेक संत जनों से मेरा सम्पर्क हुआ , उनका दर्शन लाभ हुआ उनके श्रीचरणों का सानिध्य प्राप्त हुआ ! जीवन में सत्संगों के अवसर पर अवसर आने लगे !

मेरे अतिशय प्रिय स्वजनों , यही है , मुझे अपने गुरुजन की अहेतुकी कृपा  के परिणाम स्वरूप प्राप्त अनमोल निधि ! और इसके फलस्वरूप गुरुजन की प्रेरणा से रचना हुई -

पायो निधि राम नाम ,सकल शांति सुख निधान 
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रोम रोम बसत राम, जन जन में लखत राम 
सर्वव्याप्त ब्रह्म राम ,सर्व शक्तिमान राम  
पायो निधि राम नाम 
++++++++++

सुविचारित तथ्य एक , आदि अंत राम नाम 
पायो निधि राम नाम 
 [भोला[
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मेरी बेशकीमती निधि
"सतसंग लाभ" 


मुझे  सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी के ही आशीर्वाद से ,समय समय पर अनेकों सिद्ध संतों के दर्शन हुए तथा उनका सत्संग और सानिध्य मिला ! मेरा  सौभाग्य था कि , दिवंगता  साध्वी सन्यासिनी श्री श्री माँ आनंदमयी  , 'विपुल' मुम्बई के दिवंगत वेदान्ती संत स्वामी अखंडानंद जी महाराज , चिन्मय मिशन के सर्वस्व दिवंगत स्वामी चिन्मयानन्द जी तथा गणेशपुरी [महाराष्ट्र ] के संस्थापक संत दिवंगत श्री मुक्तानन्दजी  महाराज के न केवल दर्शन हुए ,मुझे उनसे एकांत में वार्तालाप करने के सुअवसर भी मिले !

आर के मिशन के अनेकों संतों से मिला था ! परमहंस जी की जीवनी के कुछ अंश पढे भी थे पर स्वामी विवेकानंद जी के विषय में मेरा ज्ञान अति सीमित था ! प्यारे प्रभु की कृपा से  उन्हें भी निकट से समझने का अवसर मुझे यहाँ यू एस ए में मिला !

यहाँ २००३ में , स्वामी विवेकानंदजी के जीवन पर आधारित एक पुस्तक "तोडो कारा" मुझे पढ़ने को मिली  !  मेरी बड़ी  बहू मणिका ने भारत से मंगाई थी वह पुस्तक , और अवश्य ही स्वामी जी के जीवनी का वह हृदयग्राही चित्रण उसे बहुत ही पसंद आया होगा तभी तो उसने यह जानते हुए भी कि मैंने वर्षों पहले ही आँखों की कमजोरी के कारण पढ़नालिखना छोड़ दिया था , वह पुस्तक मुझे पढ़ने को दी !

यौवन के द्ल्हीज पर ,१६-१७ वर्ष की अवस्था में ,शरतबाबू की 'देवदास' तथा ४० -४५ वर्ष की अवस्था में योगानंद जी की जीवनी [Autobiography of a Yogi ] को पढ़ने में जितना आनंद मुझे आया था उससे कहीं अधिक आनंद मुझे विवेकानंद जी की इस जीवन कथा को पढनें में आ रहा था !

यहाँ उत्तरी यू एस ए के 'विंटर' की शीतल रातों में , जब बेड रूम के शीशे के बड़े बड़े झरोखों के बाहर , दूर दूर तक बर्फ की मोटी मोटी तहों में ढंकी धरती, मकानों की बर्फ ओढ़े  छतें , बिना पत्तों के ठूठ से खड़े बड़े बड़े वृक्षों की बर्फ के बोझ से धरा चूमतीं डालियों के आलावा दूर दूर तक कुछ नजर ही नहीं आता था  ,मैं देर रात तक 'सेंट्रल हीटिंग' के होते हुए भी , रजाइयों की तहों में दुबका हुआ 'बुक लाईट' और विशेष चश्में के सहारे ,विवेकानंद जी की वह जीवनी  पढता रहता था !

एक मध्य रात्रि को मैंने विवेकानंद जी के जीवन का वह प्रसंग पढ़ा जिसमे कहा गया था कि एक नवयुवक, उन दिनों तक का अविश्वासी नरेंद्र [ नोरेंन ] परमहंस जी को भजन सुनाया करता था ! यह भी कहा गया था कि अक्सर उसका भजन सुनते सुनते  परम हंस स्वामी रामकृष्ण जी समाधिस्त  हो जाते थे !

अपने महाराज जी का इस विवरण से क्या सम्बन्ध है , शीघ्र बताऊंगा ;;

क्रमशः 
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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2 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

मेरा सौभाग्य था कि , दिवंगता साध्वी सन्यासिनी श्री श्री माँ आनंदमयी , 'विपुल' मुम्बई के दिवंगत वेदान्ती संत स्वामी अखंडानंद जी महाराज , चिन्मय मिशन के सर्वस्व दिवंगत स्वामी चिन्मयानन्द जी तथा गणेशपुरी [महाराष्ट्र ] के संस्थापक संत दिवंगत श्री मुक्तानन्दजी महाराज के न केवल दर्शन हुए ,मुझे उनसे एकांत में वार्तालाप करने के सुअवसर भी मिले !

आप को जानकर आश्चर्य होगा कि आनन्दमयी माँ और अखंडानंद जी से मेरी माँ भी मिल चुकी हैं यहाँ तक कि उडिया बाबा और हरि बाबा की तो गोदी मे खेली हैं। और ये सब उसी वक्त एकत्रित हुये थे जब मेरी माँ का बचपन था । सुनती आयी हूँ उनके बारे मे बचपन से ही और आज तो महसूस करती हूं उनका प्रभाव्। यही तो संत कृपा होती है।

Bhola-Krishna ने कहा…

राम राम वन्दना बेटा ,
आप एक ऐसी दिव्यात्मा माँ के आंचल तले पलीं बढीं जो अपने बचपन में उडिया बाबा तथा हरि बाबा से महान संतजनों की गोद में खेलीं थीं तथा जो माँ आनंदमयी और स्वामी अखंडानंद जी के निकट बैठीं थीं ! आप अति भाग्यशालिनी हैं ! प्यारे प्रभु की ऐसी ही अहेतुकी कृपा आप के पूरे परिवार पर सदा बनी रहे ! - भोला-कृष्णा