सोमवार, 27 अगस्त 2012

हमारे सदगुरुजन


हमारे सदगुरुजन


















     चित्र में बाएं से दायें 

हमारे सद्गुरु श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज  
सद्गुरु डॉक्टर विश्वामित्र महाजन 
सद्गुरु श्री प्रेम जी महाराज 
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कलिकाल के ढोंगी 'गुरू'

The cheating guru is 'Guru' then all the villages in India, towns, towns, streets, in schools, in brothels, in cinemas, around non-alcoholic breweries, Ganja opium purchasing centers Around them, in various forms of various forms, they are found to be roasting like a giddha and straying like the paths of the Giddha.
Based on the experience of the loved one!

I am Baliyatik and I have also graduated from Eastern UP by legislation. K, 'B.H. U ', Varanasi [from the then' Banaras Hindu University] !! On the beating of Dunky, I can say that on the ghats of Varanasi, in the thin streets of the streets, while going on a rickshaw or ace, from Nagwa to Gudaulia, I have heard the definitions of such 'gurujans' of Kalikal, as they have seen the pattern. It is not difficult, it is impossible, 

I still hear it!  

Gone in a spiritual satsang whose presidency was a wealthy Seth! Once the diameter bench was vacant, Seth ji got the right to power [because he had his personal property, he had his own comfort]! By sitting on the chair, he called one of his servants in the name, and after finding no answer, approached one another near and said,

"Why the Guru" has become deaf? "! And then, showing his naked legs, he grumped in anger, "Guruji, do we have to put together a hand or should I have to write on the stamp paper, pick up my slippers?" 

You see, 'Guru' who is wearing shoes by wearing slippers in India is also available! 

This "Guru" address is not very respected in all the states of eastern region, because Varanasi is not very respected! The only reason for this devaluation of the word "guru" is that the 'dalikal' exhibition, wealth grasping, the evil of all the miserable traditions of the "gurujan"! Tulsi had said -

All religions of religion are extinct!
Diphkhanhu Nidh Mathi Kalipi Reveased Multiple Sult !! 
[U.K.-97 (A)]

The former minister of the twice-born prajasana a king! Recheck the value of putting corporate discipline !!
Maruj soi jaho jo Joi brother! Pundit Soi Joe Cheek Play !!
Jolly! Ta kahun saint kahiye alahi no !! 
Soi Saiyan who lost money! Joe do Dumbha Sod Bud Bachchari !!
Junk telling lies! Kaliyug Soi Gunwant Bakhna !!
Nirvara, the Shruti path solitaire! Kaliyug soi knowledgeable sleepy !!
Jake nakh aur jata bisala! Sleeping Tooth Famous Black! 
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  By the Saint Tulsi Das, the mischief gurus of Kalikal 
Do not just say anything ahead of this meaningful definition! 
And then we have been caught by such a distinguished teacher in this jihad!
This is the end of the story here!

In the next issue about 'Sadhguru', I will try to write something on the basis of inspiration!  

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loved one ! It seems that over the last few days, lost or dormant?
 My thoughts, 'My dear sage Guru' has been awakened today with grace! 
 Give blessings to the elder, best wishes to the loved ones that I can accomplish this 'Ram work'!
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Announcer:  V. N. Srivastava "Bhola"
Collaboration  : Dr. Krishna Bhola Srivastava 
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गुरुवार, 23 अगस्त 2012

राम कृपा सब दोष सुधारे

प्रियवर !

कछ तकनीकी खराबी के कारण
"महाबीर बिनवौ हनुमाना"
का पिछला - २१ अगस्त वाला आलेख बनाम 
गुरुदेव डॉक्टर विश्वमित्तर महाजन जी 
" तेरे पास आने को जी चाहता है ",
आधा अधूरा  ही प्रेषित हो गया !

दोष अब सुधार लिया गया है ! 
कृपया वह आलेख अब पढ़ लें !
धन्यवाद 
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निवेदक 
व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

"तेरे पास आने को जी चाहता है"

 चरण कमल बन्दों गुरु राई 



प्यारे सदगुरु!

तेरा नक़्शे पा जिस जगह देखता हूँ
वहीं सिर झुकाने को जी चाहता है

तेरे पास आने को जी चाहता है

२००७ के प्रारम्भ मे ही महाराज जी ने एक दिन हमसे कहा कि हम दोनों को अब स्थायी रूप में अमेरिका में ही रह कर इलाज करवाना चाहिए ! महराज जी के इस कथन से हमे यह स्पष्ट हो गया कि इस जीवन के शेष दिन अब हमे विदेश में ही काटने हैं !

महराज जी के इस आदेश से हमे एक भयंकर धक्का सा लगा - विदेश में रहने के कारण हम महाराज जी के दर्शन नहीं कर पाएंगे !उसी समय महाराज जी ने हमे आश्वासन देते हुए कहा था कि सुविधा होते ही वह वहाँ अमेरिका में ही हम से मिलने आ जाया करेंगे ! और तभी उन्होंने यह भी कहा था कि " श्रीवास्तव जी -अपनी चिंता न करिये ,You are in Lords safest hands ".
.
आप सब जानते हैं कि महाराज जी का उपरोक्त वचन मेरे लिए आज तक कितना सत्य साबित हो रहा हैं ! आज जब महाराज जी हम सब से बहुत दूर चले गए हैं अभी भी मुझे सतत ऐसा लगता है कि महाराज जी के कहे अनुसार मैं  आज भी अपने प्यारे प्रभु की गोदी में पूर्णतः सुरक्षित हूँ ! अब आप स्वयं देखें कि महाराज जी के आशीर्वाद से
How safe I have been in the merciful hands of our dear LORD ?


प्रियजन ! मुझे ,प्रति पल ऐसा लगता है जैसे मैं अभी भी उनके श्री चरणों के पास बैठा हूँ.और मेरे इर्दगिर्द बिखरी ,मेरे प्रिय गुरुजन के चरणों से निसृत शुभ तरंगें मुझे अनंत आत्मबल, साहस, एवं आनंद प्रदान कर रही हैं !.तत्क्षण मेरा गर्वित सिर  श्री महाराज जी के श्री चरणों पर झुक जाता है ! स्वजनों तब मैं भूल जता हूँ सबकुछ और नानाजी मरहूम राद साहेब का कलाम गुनगुना उठता हूँ:


सब को मैं भूल गया तुझसे मोहब्बत करके

मेरे प्यारे गुरुदेव

एक तू और तेरा नाम मुझे याद रहा
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तेरे पास आने को जी चाहता है ! गमें दिल मिटाने को जी चाहता है !!

इसी साजे तारे नफस् पर इलाही ! तेरा गीत गाने को जी चाहता है !!





तेरे पास आने को जी चाहता है ! गमें दिल मिटाने को जी चाहता है !!

तेरा नक़्शेपा जिस जगह देखता हूँ ! वहीं सिर झुकाने को जी चाहता है !!

तेरे पास आने को जी चाहता है ! गमें दिल मिटाने को जी चाहता है !!

[ मुंशी हुब्ब लाल साहब 'राद' ]


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स्वर सयोजक एवं गायक
दासानुदासव्ही एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग
डॉक्टर श्रीमती कृष्ण भोला श्रीवास्तव
एवं 
श्रीमती श्री देवी कुमार
[ हमारी बड़ी बेटी ,इस वर्ष के 'यू एस ए' खुले सत्संग में श्री महाराज जी द्वारा दीक्षित ]
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बुधवार, 8 अगस्त 2012

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई


 श्री कृष्ण: शरणम मम
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नन्दनन्दन गोपालकृष्ण जू  , झूलें चन्दन पालने में 
बधइया बाजे आंगने में 
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मधुराधिपते अखिलं मधुरं 

मेरे प्रियजन ,जो मधुर है वह ही प्रिय लगता है और जो अतिशय प्रिय लगता है उसके प्रति होती है सच्ची श्रद्धा ! जब हृदय की श्रद्धा पराकाष्ठा की सीमा लाँघ लेती है तब  उपासक  के अंतरमन में तरंगित होती है 'प्रेमाभक्ति' की लहर !  और वह प्रेमास्पद जिसके प्रति यह प्रबल लहर जगती है वह  बन जाता है उस साधक का "इष्ट" !    

मधुरता की बात चली है  तो आप ही कहो प्यारे स्वजनों , कौन है उस नटखट नन्द नन्दन गोपाल कृष्ण सा मधुर ! और कौन है उस 'मधुराधिपते "श्री कृष्ण" के समान माधुर्य रस को लुटाने वाला ?   

श्रीकृष्ण के प्रेमी संत महापुरुषों का कथन है कि  किसी भी साधक के हृदय में अपने इष्ट [कृष्ण] के प्रति प्रियता का जागरण उस साधक की श्री कृष्ण के लिए प्रगाढ़ अनुराग का प्रतीक है ! जब ऐसी सघन प्रीति किसी साधक के हृदय में जगती है तब वह 'मीरा' के समान , ''मेर तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई " गा गा कर बेसुध होकर नाचता फिरता है , नेत्रहीन 'सूर' के समान  हर ओर एक मात्र "कृष्ण" का ही दर्शन करता है और सर्वत्र "या मोहन की प्रीति निरंतर--- रोम रोम अरुझानी " गाता- गुनगुनाता  फिरता है ,तथा " चैतन्य महाप्रभु , नामदेव , तुकाराम के समान ,"हरे कृष्णा हरे कृष्णा " अथवा "बिट्ठल बिट्ठल " पुकारते हुए "लोक लाज , कुल की मर्यादा छोड़ कर", गली गली कूचे कूचे नाचता डोलता है और अन्य प्रेमियों को भी अपने साथ नचाता फिरता है !

इस संदर्भ में ,श्री "हरि" के अनन्य उपासक , बंद आँखों से प्रति पल अपने प्रेमास्पद इष्ट अशरण शरण "श्री राधा कृष्ण" की लावण्यमयी मूर्ति का दर्शन करने वाले और स्वास स्वास में श्री हरि का स्मरण करते हुए , "हरी शरणम" की गुहार  लगाने वाले प्रज्ञाचक्षु ,प्रातःस्मरणीय स्वामी शरणानन्द जी महाराज का कथन है कि  श्री कृष्ण के प्रति , हृदय में ,-----

"प्रियता जब उदित होती है तो फिर कभी उसका अंत नहीं होता ! उस प्रियता में कितनी सुंदरता है, उस प्रियता में कितना आकर्षण है , उस प्रियता में कितना ऐश्वर्य है ,कितना रस है , इसके लिए शब्दावली नहीं हो सकती ! अनंत ,अनंत ,अनंत कह दो ! अनंत सौंदर्य ,अनंत रस अनंत  प्रियता  " 
                                             [ स्वामी शरणानंद जी महाराज ]

ऐसी प्रियता जाग्रत होने पर .'प्रेमास्पद श्रीकृष्ण' के अनंत सौंदर्य तथा उस सौंदर्य से झरते "अनंत  प्रेमरस का पान करने वाले उपासक उस "रस रंग " में ऐसे सराबोर होजाते हैं कि हर कोण से अपने 
प्रेमास्पद जैसे ही लगने लगते हैं ! प्रियजन !  इस आनंद की पराकाष्ठा मे ही  होता है  "आनंदघन नन्द नन्दन  मुरली मनोहर योगेश्वर "श्री हरि"  का दर्शन ,या यूं कहें  साधक के हृदय में "श्री कृष्ण का वास्तविक जन्मोत्सव " 

आदिकाल से आज तक का सर्वमान्य सच यह है कि श्रीकृष्ण में ऐसा अनंत सोंदर्य है ,माधुर्य है जो प्रेमियों  को पागल बना देता है, जगत को भुला देता है, देहभान विस्मृत करवा देता है !श्रीकृष्ण का श्रीविग्रह अति आकर्षक है ,माधुर्य रस  से परिपूर्ण है ,उसको  निहारते ही उनकी मनोहारी छवि प्रेमी भक्त के रोम रोम में बस जाती  है ! 

बाँकेबिहारी श्यामसुंदर श्रीकृष्ण की  मनोहारी छवि  जिसके नैनों में बस गयी समझो वह स्वयं  कृष्णमय हो गया !  उसकी आँखों से अविरल प्रेमाश्रु प्रवाहित होने लगता  हैं ! सुधबुध खो कर , श्रीकृष्ण-उपासना में  वह स्वयम को ही धूप ,दीप ,पत्र-पुष्प नैवेद बना कर अपने इष्ट के श्री विग्रह पर समर्पित कर देता है !  एक ऐसे ही प्रेमी के हृदय के उद्गारों को सुनिए और कृष्ण -प्रेम के रस का आस्वादन करिये ------- 


श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी 
शीश मुकुट वंशी अधर ,रेशम का पीताम्बर 
पहिरे है बनमाल सखी सलोनो श्यामसुन्दर 
कमलों से चरणों पर जाऊं मैं वारी री 
  श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी 






मैं तो आज फूल बनूँ धूप बनूँ दीप बनूँ 
गाते गाते गीत सखी आरती का दीप बनूँ 
आज चढूँ पूजा में बन के एक पांखुरी 
श्याम आये नैनो में बन गयी मैं सांवरी 
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गीत - 'आकाशवाणी भारत' के सौजन्य से
स्वरकार व गायक - "भोला"
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 श्रीकृष्ण के जन्मदिवस पर सब प्रियजनों को बहुत बहुत बधाई !
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निवेदक :  - व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग :    श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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