सोमवार, 8 सितंबर 2014

ओम् गम गणपतये नम:

विघ्नेश्वर सिद्धविनायक श्री गणपति गणेश जी के 
शुभ जन्मोत्सव 
पर सभी पाठकों को 
हार्दिक बधाई 
मंगलमय हो आनंदमय हो आप सब का जीवन
प्रार्थी - "भोला" - कृष्णा
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परमप्रिय स्नेही स्वजनों ,

कदाचित डेढ़ महीने के अंतराल के बाद आपको सम्बोधित कर रहा हूँ ! ये न सोचें कि मैं आप को भूल गया ! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ! मेरे मन में अपने सब स्वजनों प्रियजनों शुभचिंतकों की याद सतत बनी रही ! मन ही मन आप सब शुद्ध आत्माओं पर "परमपिता परमेश्वर" की अहैतुकी कृपा सदा सर्वदा बनी रहे , उस हेतु शुभकामनाएं एवं प्रार्थना भी करता रहा !

स्नेही प्रियजनों के  जन्म दिवस आये , उन्हें बधाई दी ,उनके लिए शुभ कामनाएं कीं और प्यारे प्रभु से "उनके "सभी प्रियजनों  पर उदारता से कृपा वृष्टि करते रहने का अनुरोध किया ! यह उचित था या अनुचित , इसका निर्णय "प्यारे प्रभु" के हाथों सौपता हूँ !  

जी हाँ इस बीच ,जुलाई में स्वयम मेरा ही जन्म दिवस आया , यहाँ विदेश में भी रात बारह बजे से ही टेलीफोन की घंटी घनघनाने लगी और फिर ईमेंल ,फेस बुक , और न जाने कौन कौन से आधुनिक उपकरणों पर बधाई एवं शुभ कामनाओं के सन्देश भी आये ! प्रियजन बुरा न माने , अनेक व्यवधानो के कारण ,मैं कदाचित उन सारे संदेशों को पढ़  भी नहीं पाया और  न उनके उत्तर ही प्रेषित कर पाया , क्षमा प्रार्थी हूँ ....

आत्म कथा है यह मेरी इसलिए पहले यह ही सुनिए कि मैंने स्वयम अपने लिए क्या शुभकामना की ,क्या प्रार्थना की और प्यारे प्रभु से अपने लिए क्या 'वर' माँगा : 

संत तुलसीदास जी का सुप्रसिद्ध सूत्रात्मक दोहा मार्ग दर्शक बना 

अर्थ न धर्म न काम रूचि गति न चहहु निरवान !
जनमजनम रति राम पद , यह ,वरदान न आन !! 

प्यारे प्रभु ! अर्थोपार्जन अथवा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के प्रति अब मुझे तनिक भी रूचि नहीं है ! सच पूछिए तो अब मेरे मन में मुक्ति प्राप्ति की भी कामना शेष नहीं है ! प्रियतम् मुझे जनम जनम तक "अपने श्रीचरणों" के प्रति अखंड प्रीति प्रदान करो , मैं 'आपको' अनंतकाल तक न भूलूं ,ऐसा वरदान दो मुझे मेरे नाथ ! मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए !

कम्प्यूटर जी साथ दे रहे हैं , सोचता हूँ उपरोक्त संत तुलसी का दोहा तथा उस विचार से प्रेरित अपनी एक रचना आपको सुनाऊँ ,राम कृपा से :

सुमिरूं निष् दिन तेरा नाम यही वर दो मेरे राम 
रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम 

मनमोहन छबी नैन निहारें जिव्हा मधुर नाम उच्चारे 
कनक भवन होवे मन मेरा 
(जिसमे हो श्री राम का  डेरा) 
कनक भवन होवे "मन" मेरा ,"तन" कोशालपुर धाम 
यही वर दो मेरे राम

गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ , परम पुनीत नाम गुण गाऊँ 
सुमिरन ध्यान सदा कर पाऊँ दृढ़ निश्चय दो राम 
यही वर दो मेरे राम 

सौपूं तुझको निज तन मन धन , अर्पित कर दूँ सारा जीवन, 
हर लो माया का आकर्षण , प्रेम भक्ति दो दान !!
यही वर दो मेरे राम 

प्रारब्धों की मैली चादर, धौऊँ सत्संगों में आकर 
तेरे शबद धुनों में गाकर पाऊँ मैं विश्राम 
यही वर दो मेरे राम 

बाक़ी है जो थोड़े से दिन , व्यर्थ न हो उनका इक भी छिन 
अंत काल कर तेरा सिमरन ,पहचूँ तेरे धाम
 यही वर दो मेरे राम 
रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम
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(शब्द एवं स्वरकार - व्ही  एन   श्रीवास्तव "भोला")
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सोचा था इस आलेख के साथ भजन का एम् पी ३ अथवा यू ट्यूब संस्करण भी प्रेषित करूं   नहीं कर पाया - हरि इच्छा , आगे फिर कभी होगा ही !
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