बुधवार, 9 जुलाई 2014

कैसे जियें , भाग ३

कैसे जियें - भाग 3

प्रियजन , प्यारेप्रभु ने अब् तक लिखवाया ,अनवरत लिखता रहा!  
अब् शायद विश्राम देना चाहते हैं इस काया को  ,
देखोना   
  "वो"आजकल लिखने को उकसाते ही नहीं ! 
फिर कैसे लिखूँ ?
जब आदेश आएगा लिखूँगा प्रेषित करूँगा !
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पिछले अंक में मैंने कहा कि "प्रातः उठते ही मन लगा कर हम सर्व प्रथम अपने परम - उदार , कृपा निधान प्रियतम प्रभु को अति श्रद्धा सहित "याद" करें ! अर्थात उनका "'स्मरण","सुमिरन" ,"सिमरन" करें और उनकी अनंत अहेतुकी कृपाओं के लिए अपना हार्दिक आभार व्यक्त करें !  

परन्तु विडंबना  ये है कि हम ऐसा नहीं करते ! साधारणतःऐसा होता है कि हम अपनी सब मनचाही वस्तुओं, अपने शुभचिंतक सम्बब्धियों मित्रों बीवी बच्चों तथा अन्य व्यक्तियों , यहाँ तक कि अपने शत्रुओं तक की याद अनवरत करते रहते हैं और हम अपने एकमात्र  शुभचिंतक ,एकमात्र प्रेमी सकल विश्व के श्रजक  रक्षक संघारक उन परम पिता का सुमिरन नहीं कर पाते  ! किसी ने , कदाचित कबीर ने ही कितना सच कहा है कि अरे मानव    
तूने रात गवाई सोय के , दिवस गवाया खाय के , 
हीरा जन्म अमोल था कौडी बदले जाय "

पर होता ये है कि प्रातः की इस अमृत बेला को हम अपने प्यारे प्रभु को धन्यवाद देने  की जगह अपने परिवार के लिए रोटी कपड़ा मकान जुटाने , अपने बच्चों के लिए पढाई लिखाई की उचित व्यवस्था करने   तथा दफ्तर अथवा कारखाने में अपनी नौकरी बचाने के जुगाड करने की चिंता में बिताते हैं !  

इस दैनिक आपा धापी में हमे अपने एकमात्र सहायक , उन परम कृपालु , परम उदार ,परम हितकारी ,प्यारे प्रभु" की याद पलभर को भी नहीं आती और हमारा समग्र जीवन यूँ ही बीत जाता है !

इसी से गुरु नानक देव जैसे दिव्य महात्मा ने सिमरन की महत्ता दर्शाते हुए अपने मन को ही आदेश दिया  :

सिमरन कर ले मेरे मना , तेरी बीती उमर हरि नाम बिना 

हमआप जैसे रिटायर्ड साधारण गृहस्थ व्यक्ति अपने घर में बिस्तर पर चादर ओढ़े पड़े पड़े अकेले सिमरन करने  का प्रयास करें -   प्रियजन वास्तव में किसी भी साधारण घर संसार में  ध्यान कर पाना कठिन  है क्योंकि  घर की खटर पटर में जहाँ कभी थाली गिरती है कभी प्याला टूटता है , कभी नाती पोते रोते हैं तो कभी बीवी या बहूरानी प्यार से  चाय का प्याला खड्का कर सामने रख देती हैं ! और कभी कभी घर के दरवाजे पर कोई उत्तेजक आवाज़ जोर से आती है और हम   तत्क्षण चीत्कारते  हैं "कौन है रे? " ऐसे में कैसे याद कर पायेगा कोई ? कैसे ध्यान लगेगा , कैसे सुनिरन होगा और कैसे हम धन्यवाद देंपायेंगे  "उन्हें" ?

तो फिर सिमरन  कैसे हो ? इस प्रश्न के उत्तर में गुरुजन ने बताया , 


"उनसे" - अपने प्रियतम प्रभु से ,प्यार का कोई संबंध स्थापित करलो ,  ! उनके अनंत उपकारों का विचार कर ,उन्हें अपना परम हितैषी मानो और "उन्हें" अपना  सबसे प्यारा सम्बन्धी, रिश्तेदार मित्र बना लो ! बार बार उनकी कृपा के क्षणों को याद करो - याद करो उनके अनंत उपकारों को !

"उनके"उपकारों को याद करके देखो प्रियजन आभार के अश्रु कण आपकी आँखों से छलकने लगेंगे एक दिव्य आनंद से हृदय छलछला उठेगा ! 

आज इतना ही ! शेष जब "उनका" इशारा मिलेगा 
तब तक के लिए राम राम 
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निवेदक :  व्ही   एन   श्रीवास्तव  "भोला"
सहयोग :   श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव 

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