शनिवार, 14 सितंबर 2019

क्या भजन भी नाम जाप है?श्रीमती लालमुखी देवी
(१८९५ - १९६२)
लक्ष्मी पूजन के दिन , सर्व प्रथम ,
"माँ तुम्हे प्रणाम"
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तेरा दर्शन मधु सा मीठा ,वाणी ज्यों कोयल की कूक
सुरति तुम्हारी जब है आती उठती है इस मन में हूक !

तूने मुझे दियाहै जितना मेरी झोली में न समाया,
फिर भी रहा अधिक पाने को मैं आजीवन ही ललचाया !

अब भी तेरी कृपा बरसती है मुझ पर बन अमृत धारा
एक बूंद पीने से जिसके होता जन जन का निस्तारा !

जनम जनम तक तेरे ऋण से उरिण नही हो सकता माता
हर जीवन में ,मा तेरा ऋण उतर उतर दुगुना बढ़ जाता !

माँ तुम्हे प्रणाम
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"माँ " के करोड़ों रूप हैं ! जितने रूप हैं उतने ही नाम !
सृष्टि के हर खंड में, हर युग में , हर संस्कृति में , हर सम्प्रदाय में , हर मत में,
एक "माता श्री" के अलग अलग अनेको नांम हैं !

माँ के करोड़ों नामों में से चुने हुए उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध नाम

१. विष्णु मायेति २. चेतना ३. बुद्धि ४. निंद्रा ५. क्षुधा ६. छाया ७. शक्ति ८. तृष्णा ९ . क्षमा १०.लज्जा ११.शांति १२ .श्रद्धा १३. कांति १४. लक्ष्मी १५. वृत्ति १६. स्मृति १७. दया १८. तुष्टि १९. मातृ ,तथा २०. भ्रान्ति आदि

देवी माँ इन्हीं नामों के रूप में हम् भूत प्राणियों में व्याप्त हैं और हर पल हमारी रक्षा करतीं हैं हमार मार्ग दर्शन करतीं हैं हमें दिव्य चिन्मय जीवन जीने की प्रेरणा देतीं हैं !
परमप्रिय स्वजनों 
 नवरात्रि के पावन पर्व पर 
हमारा हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें !

प्रियजन ! अनंत काल से , सृष्टि के हर खंड ,  हर संस्कृति . सम्प्रदाय  एवं मत में
आदि शक्ति "माता श्री" की उपासना होती है ! 
देशकाल और तत्कालिक प्रचलित मान्यताओं  के अनुसार  मानवता के विभिन्न वर्गों में सिद्ध साधकों  के अनुभवों तथा  पौराणिक आख्यानों के अनुरूप आद्यशक्ति माँ के अनेकों रूप हैं,अनेकों नाम हैं  ! 
जननी माँ की प्रतिरूपनी ये दिव्य माताएं सभी साधकों की सफलता ,स्वास्थ्य ,सुख और समृद्धि की दात्री हैं !

भारतीय संस्कृति में  नवरात्रि के मंगलमय उत्सवों के नौ दिनों में  माँ की आराधना के प्रसाद स्वरूप साधकों को माँ से मिलता है   सांसारिक कष्टों से बचने का "रक्षा कवच ". सफलता हेतु मार्गदर्शन एवं  दिव्य चिन्मय जीवन जीने की कला तथा प्रेरणामय यह सन्देश "जागो ,उठो ,आगे बढ़ो उत्कर्ष करो "

सेवा निवृत्ति के  बाद लगभग पिछले २५ वर्ष कैसे जिया , ये बात चल रही थी ,कि श्राद्धों का पखवारा आया और साथ साथ लाया नवरात्री का यह "मात्र भक्ति भाव रस सिंचित" ,दिव्य दिवसों का अद्भुत समारोह !

खाली नहीं बैठा , माँ सरस्वती शारदा की विशेष अनुकम्पा से  इन २५ -३० दिनों में ,प्रेरणात्मक तरंगों में बहते हुए ,"प्रेम-भक्ति रस सेओतप्रोत अनेक रचनाएँ हुईं , और उनकी धुनें बनी ,बच्चों द्वारा उपलब्ध करवाई इलेक्ट्रोनिक सुविधाओं के सहारे उनकी रेकोर्डिंग  हुई , कृष्णा जी ने उनको  यू ट्युब पर भोला कृष्णा  चेनल पर प्रेषित भी किया !सों इस प्रकार मेरा जीवन क्रम अग्रसर  रहा , सुमिरन भजन द्वारा सेवा कार्य चलता रहा  

सरकारी सेवाओं से निवृत्ति के बाद .इससे उत्तम और कौनसी सेवा कर पाता ? इस सेवा से जो परमानंद मिलता है उस दिव्य अनुभव के लिए आदिशक्ति माँ  के अतिरिक्त और किसे धन्यवाद दूँ  !

प्रियजन   इन नौ दिनों  में जो रचनाएँ हुईं उनमें से  एक इस आलेख के अंतर्गत आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ  ! मेरी यह रचना - "सर्वेश्वरी जय जय जगदीश्वरी माँ", मेरे परम प्रिय मित्र एवं गुरुभाई श्री हरि ओम् शरण जी" के एक पुरातन भजन की धुन पर आधारित है 

इस पर स्वाध्याय  से पहले "' जाप और भजन क्या है " इस  संदर्भ में संत महात्माओं के विचारों पर मनन -चिंतन करना  उचित होगा !
नाम जाप ---
श्री मद् भगवद गीता में श्री कृष्ण की वाणी है ---यज्ञों में मैं जप  मैं हूँ !
स्वामी सत्यानंदजी महाराज -------जप करना आध्यात्मिक तप है !
भजन ----
प्रज्ञाचक्षु स्वामी शरणानंद ---
""भगवान प्यारे लगें ,उनकी याद बनी रहे   ,मन लग जाय ,इसी का नाम भजन है !यही तो भक्ति है !''
याद आना ,प्यारा लगना ,अभिलाषा का होना ,यही तो भजन है !भजन में सेवा, त्याग और प्रेम  तीनों इकट्ठे हो जाते हैं !
विचारक इसे  साधना  कहते हैं और श्रद्धालु भजन कहते हैं !

भजन भज धातु से उत्पन्न है जिसका अर्थ है ,बार बार दोहराना ,और दूसरा अर्थ है  'सेवा' !

संत तुलसीदास की मान्यता में नवधा भक्ति में चौथी भक्ति कीर्तन भजन है और पांचवीं भक्ति जाप है  ,
चौथी  भगति मम गुन गन  करइ -कपट तजि गान -
मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा  !पंचम भजन सों वेद प्रकासा !

 सिद्ध संत स्वामी  सत्यानन्द जी ने  'प्रवचन पीयूष में कहा है -कीर्तन दो प्रकार का होता है --धुनात्मक और गीतात्मक !पहला जाप है तो दूसरा भजन !
भजन से लाभ होता है ,यह भी मंत्र ही है !संतों के पद मन्त्रों के समान हैं ! उनके पदों की वाणी उनकी आत्मा से निकले हुए ह्रदय की झंकार है ,उनकी अनुभूति {सिद्ध अनुभव }है !
जब जीभ से प्रभु का कीर्तन हो ,मन से उसका चिंतन हो ,दृष्टि से उसके स्वरुप का  दर्शन हो तब भजन में लीन मनुष्य संसार  को भूल जाता है और उसका मन प्रभु से जुड़ जाता है !
उपनिषद ----
रसों वै स :--"ईश्वर का  स्वरुप रस है !"भजन -कीर्तन में ईश्वर आनंद -रस के रूप में प्रकट होता है !
नारद भक्ति सूत्र  में अखंड भजन को भक्ति प्राप्त करने का साधन बतलाया है !

श्री मद् भागवद  पुराण  में योगीश्वर कवि का कथन है -----
जैसे भोजन करने वाले को प्रत्येक ग्रास के साथ  ही तुष्टि {तृप्ति अथवा सुख }पुष्टि {जीवन शक्ति का संचार }और क्षुधा निवृत्ति --ये तीनों एक साथ मिल  जाते हैं वैसे ही  जो मनुष्य भजन करने लगता है ,उसे भजन के प्रत्येक पल में भगवान के प्रति प्रेम  , ,अपने आराध्य के स्वरूप का अनुभव और अन्य पदार्थों से वैराग्य --इन तीनों की प्राप्ति हो जाती है !
मानसिक भोजन जाप है तो शारीरिक भोजन भजन है !
सिद्ध महात्माओं के कथन को अपने जीवन में डालने वाले साधकों का सार्वजनिक अनुभव ---
धुनात्मक भजन में रम जाओ !चाहे भजन  गाओ  या जाप -करो  -अपने आराध्य के रूप ,नाम ,लीला ,गुन और धाम की स्मृति यदि उसके द्वारा सतत बनी रहती है तो मन मंदिर में वह बस जाता है !वह व्यवहारिक मन से अचेतन मन पर कम्प्युटर की भांति  छप जाता है ! 
जाप में भजन सहायक है !संगीत की मोहक शक्ति से तल्लीनता जल्दी आती है !रसिया आनंद रस में डूब जाता है स्वामीजी की वाणी में -"रम जा मीठे नाद में "बस "राम रस में डूबे रहो   किसी संत ने सूत्र दिया है  ;रस में डुबो ,रहस्य में नहीं !
जैसे पढते समय चुपचाप मन ही मन पढते है और अनायास मन कहीं और चला जाता है ,विषय से भटक जाता है तब जोर जोर से पढ़ना शुरू कर देते हैं ;ऐसे ही नाम जाप में एकाग्र मन के विचलित होने पर जोर जोर से भजन के रूप में जाप करने से मन स्थिर हो जाता है !
भजन में स्तुति ,गुणगान या  प्रार्थना (आत्मनिवेदन )हो तो  वह जाप ही हो जाता है !सीस मुकुट बंसी अधर गाने से  कृष्ण कन्हैया की छवि का ध्यान हो जाता है !सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु  गाने से धनुषधारी राम कास्वरुप दीखता है तो भजन नाम जाप ही है !

"नाम जाप मंत्र  है तो भजन आराध्य  के नाम ,रूप ,लीला गुन और धाम का सिमरन और चिंतन है ~!दोनों से ही परम कृपा मिलती है ,त्रयताप नष्ट होता है ,आनंद -रस की अनुभूति होती है ,शांति मिलती है  और ईश्वर से तार जुड़ जाता है !
दोनोंही ईश्वर की सतत स्मृति बनाए रखते हैं ,दोनों की अमृत ध्वनि  चिरकाल तक कानों में गूंजती रहती है                                                                              !================================= 

निवेदक :  व्ही .  एन.  श्रीवास्तव  "भोला"

शोध एवं संकलन सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 

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उपरोक्त भावनाओं को संजोये है  यह भजन ---YOU TUBE LINK_----------- 
                                                               https://youtu.be/ROFXxABxRcQ

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