प्रथम भगति सन्तन कर संगा ! दूसरि रति मम कथा प्रसंगा !!
गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान !
चौथि भगति मम गुनगन करहि कपट तजि गान!!
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा ! पंचम भजन सुवेद प्रकासा !!
[ तुलसी मानस - नवधा भक्ति प्रसंग से ]
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"श्रीहरि-नारायण" के भजनीक भक्त - संगीतज्ञ देवऋषि नारद ने अपने तम्बूरे के गम्भीर नारायणी नाद के सहारे '' नारायण नारायण" की मधुर धुन लगाकर समग्र सृष्टि को "नारायण मय" बना दिया और इस प्रकार ,आध्यात्म के क्षेत्र में मेरे जैसे अनाड़ी साधकों के लिए एक सहज संगीतमयी भक्ति साधना का मार्ग प्रशस्त किया !
सोच कर देखें , हम कलियुगी साधारण साधकों को सारे दिन (जी हाँ कभी कभी तो रातों में भी ) रोटी कपड़ा और मकान की तलाश में यत्र तत्र सर्वत्र इधर उधर भटकना पड़ता है ! ऐसे में हमारे जीवन का अधिकांश भाग ऎसी आपाधापी में ही कटता जाता है ! प्रियजन - कहाँ उपलब्ध है हमे वह पर्वतों के कन्दराओं वाला एकांत और वह नीरव शान्ति जहां हम कुछ पल के लिए सबकुछ भुला कर , अपनी तथाकथित साधना [तपश्चर्या] के लिए थोड़े भी इत्मीनान से बैठ सकें ?
वर्तमान परिस्थिति में लगभग हम सब को ही ,"ध्यान" के लिए नेत्र मूदते ही , हमारी प्रभु दरसन की प्यासी , दरस दिवानी अखियों के आगे ,स्वयम निजी एवं अपने बीवी बच्चों के फरमाइशों की फेहरिस्त प्रबल दामिनी के समान अनायास कौंधती नजर आती है ! प्रियजन , हम कलियुगी नर नारी उतने बडभागी कहाँ हैं कि हमे नीलवर्ण कौस्तुभ मणि धारी भगवान विष्णु का साक्षात्कार मिले !
हमारे लिए तो नारद जी का यह सरलतम नुस्खा " गाते बजाते अपने राम को रिझाने " की साधना कर पाना ही सम्भव है !
लीजिए शुरू हो गयी भोला बाबू की गपशप भरी आत्म कथा ! पूज्यनीय बाबू [माननीय शिवदयाल जी , चीफ जस्टिस मध्य प्रदेश ,मेरे उनके बीच के नाज़ुक रिश्ते को मान देते हुए ,अक्सर कहा करते थे कि " एकबार भोला बाबू के हाथ में बाजा आया फिर तो वह उसे छोड़ेंगे ही नहीं , औरउसके आगे किसी और को गाने बजाने का चांस मिलने से रहा ] !
प्रियजन ,आप देख ही रहे हैं कि , आजकल हमारे विभिन्न न्यायालय किस प्रकार भारत सरकार को भी कटघरे में खडा कर रहे है ! ऐसे में मुझ नाचीज़ की क्या मजाल कि अपने चीफ जस्टिस साले साहिब द्वारा लगाए आरोप को झुठला ने की सोचूँ भी ! नतमस्तक हो आज तक उनकी आज्ञा मान रहा हूँ ! बाजा तब पकड़ा तो आज तक छोड़ा नहीं ! और इस प्रकार गुरु सदृश्य अपने परम स्नेही साले साहेब के इशारे और उनके मार्गदर्शन से मिले श्री राम शरणम के संस्थापक सद्गुरु श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की अहेतुकी कृपा से मुझे इस जीवन में मिले अन्य महात्माओं की अनुकम्पा एवं उनके प्रोत्साहन के बल पर मैंने अपनी "साधना" को यह संगीतमय "नारदीय" मोड़ दे दिया !
अब तो प्रियजन " मोहिं भजन तजि काज न आना " ! भजन के अतिरिक्त और कुछ न मैं जानता हूँ न जानने का प्रयास करता हूँ !
प्रियजन , न कवि हूँ , न शायर हूँ , न लेखक हूँ न गायक हूँ , लेकिन पिछले साठ साल से अनवरत लिख रहा हूँ , अपनी रचनाओं के स्वर संजो रहा हूँ स्वयम गा रहा हूँ , बच्चों से गवा रहा हूँ !
इन भावनाओं के वशीभूत होकर ही मैंने (शतप्रतिशत केवल ईश्वरीय प्रेरणा से ही ) सैकड़ों पारंपरिक भजनों की स्वर रचना की !इन भजनों ने श्रोताओं का मर्मस्पर्श किया ! देश विदेश में लोग मेरी स्वर एवं शबद रचनाओं को गाने लगे ! आत्मकथा में अन्यत्र लिख चुका हूँ कि कैसे "साउथ अमेरिका" के एक देश के रेडियो स्टेशन के "सिग्नेचर ट्यून" में नित्य प्रति मुझे अपनी एक शबद व संगीत रचना सुनाई पडी थी ! उसी देश के हिंदू मंदिर में मैंने अपनी बनाई धुन में बालिकाओं को भजन गाते सुना था ! मैं क्या मेरा पूरा परिवार ही भौचक्का रह गया था ! श्री राम शरणम के अनेक साधक और हमारे राम परिवार के सभी गायक साधक सदस्य अतिशय आनंद सहित मेरे भजनों को गाते हैं !
लगभग ६० वर्ष पूर्व मेरे जीवन की यह यात्रा १९५० से प्रारंभ हुई थी ! आज भी यह यात्रा उसी प्रकार आगे बढ रही है ! कभी मध्य रात्रि में तो कभी प्रातः काल की अमृत बेला में अनायास ही किसी पारंपरिक भजन की धुन आप से आप मेरे कंठ से मुखरित हो उठती है और कभी कभी किसी नयी भक्ति रचना के शब्द सस्वर अवतरित हो जाते हैं ! धीरे धीरे पूरे भजन बन जाते हैं !
मुझे अपने इन समग्र क्रिया कलापों में अपने ऊपर प्यारे प्रभु की अनंत कृपा के दर्शन होते हैं , परमानंद का आभास होता है ! इस प्रकार हजारों वर्ष पूर्व अपने ऋषि मुनियों द्वारा बताए इस संगीत मयी भक्ति डगर पर चलते चलते आनंदघन प्रियतम प्रभु की अमृत वर्षा में सरोबार मेरा मन सदा आनंदित बना रहता है !
आप सोच रहे हैं न कि ये सज्जन क्यूँ इस निर्लज्जता से अपने मुहं मिया मिटठू बने हुए हैं !
प्रियजन सच मानिए मैं अपने नहीं "उनके" गुन गा रहा हूँ ! आपको याद होगा ऐसा मैंने इस लेखमाला के प्रथम अध्याय में ही स्पष्ट कर दिया था
करता हूँ केवल उतना ही जितना "मालिक" करवाता है,
लिखता हूँ केवल वही बात जो "वह"मुझसे लिखवाता है
मेरा है कुछ भी नहीं यहा ,सब " उसकी " कारस्तानी है
(भोला)
चलिए मियां मिटठू की थोड़ी और सुन लीजिए ! किसी चमत्कार की नहीं ये प्यारे प्रभु की अनन्य कृपा की कथा है ! १९७८ में गयाना से लौट कर भारत आने पर मुम्बई स्थित "जी डी बिरला ग्रुप" के एक उच्च अधिकारी ने तुलसी रामायण के कुछ प्रसंगों के आलेख मुझे दिए और अनुरोध किया कि मैं उनकी धुन बना कर रेकोर्ड करवाऊँ !
इस रिकार्ड में स्वनाम धनी -आदरणीय घनश्याम दास जी बिरला, स्वयम बाल्मीकि रामायण पर कुछ अपने विचार रिकार्ड करवाने को राजी हो गये थे ! मानस मे से चुन चुन कर मुझे बाबूजी की पसंद के प्रसंग ही दिए गये थे और उनमे प्रमुख था नवधा भक्ति प्रसंग !
दिल्ली में काम काज से छुट्टी लेकर इस प्रोजेक्ट के लिए मुझे बम्बई आना पड़ा ! रामकृपा हुई फ्रंटियर मेल के २० घंटे के सफर में सभी धुनें बन गयीं ! बम्बई में मेरे भतीजे छवि बाबू ने गाने के लिए कुछ कलाकारों को चुन रखा था ! इन कलाकारों में उन दिनों की उभरती गायिका कविता कृष्ण मूर्ती भी थीं ! वह कभी कभी छवी के साथ स्टेज कार्यक्रमों में और रेडियो सीलोंन के जिंगिल्स गाती थी तब तक उनका फिल्मों में अवतरण नहीं हुआ था !अति भाव भक्ति के साथ उन्होंने मेरी धुनों में मानस के वे सभी प्रसंग गाये !
मेरी धुन में कविता बेटी (जी हाँ रिहर्सल्स के दौरान मैं उन्हें बेटी ही कह कर संबोधित करता था ) के द्वारा गाया मानस के नवधा भक्ति प्रसंग को सुन कर अभी भी मुझे रोमांच हो जाता है ! लीजिए आप भी सुनिए -----
प्रथम भगति सन्तन कर संगा ! दूसरि रति मम कथा प्रसंगा !!
प्रियजन , राम राम कहिये , सदा मगन रहिये !
काफी दिनों से आँखों में कष्ट था ! नेत्र विशेषज्ञ ने Wet - age related Macular Degeneration बताया , एक इंजेक्शन लग गया अभी प्रति मास एक एक कर के पांच और लगेंगे ! पहले इंजेक्शन से ही सुधार शुरू हो गया है ! तभी तो आज जम कर कम्प्यूटर पर काम कर सका और यह लेख सम्पन्न हुआ !
आज यहा अमेरिका में THANKS GIVING DAY है ! मैं भी " उनकी " अनंत कृपाओं के लिए , नतमस्तक हो, अपने "प्यारे प्रभु" को कोटिश धन्यवाद दे रहा हूँ !
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(क्रमशः)
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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