चित्र कथा

भैया ये आत्म-कहानी है


इसमें मुझको प्रियजन तुम को
इक सच्ची बात बतानी है ,

भैया ये आत्म-कहानी है 
*
करने वाला "यंत्री प्रभु" है,
हम सब हैं मात्र यन्त्र "उनके" 

अपने जीवन के अनुभव से
यह बात तुम्हे समझानी है

भैया ये आत्म-कहानी है 
*
हमसे ज्यादा है फिक्र "उसे"
हम सबकी ये तुम सच मानो

हम इस जीवन की सोच रहे
"वह" तीन काल का ज्ञानी है 

भैया ये आत्म-कहानी है 
*
जो भी प्रभु इच्छा से होगा
वह हितकर होगा हम सब को 

मत समझो उसको ही हितकर
जो तुमने मन में ठानी है 

भैया ये आत्म-कहानी है 
*
बाहर से जो मीठा लगता
वह कड़वा भी हो सकता है 

मानव बाहर की देख सकें ,
अंतर की किसने जानी है 

भैया ये आत्म-कहानी है 
*
मुझको दोषी मत कहो स्वजन ,
है सारा दोष मदारी का 

भोला बन्दर मैं क्या जानू
अंतर "मयका-ससुरारी" का 

रस्सी थामे मेरी, मुझसे
वह करवाता मनमानी है 

भैया ये आत्म-कहानी है 
*
करता हूँ केवल उतना ही
जितना "मालिक" करवाता है

लिखता हूँ केवल वो बातें
जो "वह" मुझसे लिखवाता है

मेरा कुछ भी है नहीं यहाँ
सब "उसकी" कारस्तानी है 

भैया ये आत्म-कहानी है 
*

निवेदक : 


व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"