हम सब ने बार बार सुना है और अब इस कथन की सच्चाई भली भांति समझ भी गये हैं,
"सात समुद को मसी करों लेखन सब बनराई
धरती सब कागद करों हरि गुन लिखा न जाय."
"विराटस्वरुप" वाला वह "हरि" जिसे कृष्ण-कृपा से अर्जुन ने देखा था हम साधारण प्राणियों को कहाँ, कब दिखेगा? हम इतने भाग्यशाली कहाँ कि हमे श्री कृष्ण मिलें ? प्रियजन, इस धरती पर,सर्व प्रथम हमे साक्षात् दर्शन देने वाले - हमारे "माता पिता" ही हैं . हमे उनमें ही "योगेश्वर कृष्ण एवं गुरु सान्दीपन" के स्वरुप का "दर्शन" होता है. ऎसी भगवद रूपिणी माँ के सद्गुण एवं उनसे प्राप्त ज्ञान का लेखा जोखा कौन कर सकता है? फिर भला मैं कैसे जुर्रत करूँ?
प्राचीन काल से आज तक प्रचलित मातृ स्तुतिया "या देवी सर्व भूतेशु मात्रु रूपेण संस्थिता" एवं आधुनिक रहमानी नग़मा "माँ तुम्हे सलाम" - मातृ भक्तों को उनकी अपनी माँ में ही साक्षात् "हरि" का दिव्य दर्शन करा देता है . कलि युग में कितना आसान हो गया है हरि दर्शन.?
मेरे प्रभु, कैसे धन्यवाद दें हम आपको, आपकी इस कृपा के लिए. इस सन्दर्भ में मेरा यह गीत देखें:
दाता राम दिए ही जाता ,
भिक्षुक मन पर नहींअघाता..
देने की सीमा नहीं उनकी ,
बुझती नहीं प्यास इस मन की
उतनी ही बढती है तृष्णा ,
जितना अमृत राम पिलाता
दाता राम दिए ही जाता
कहो उरिन कैसे हो पाऊं ,
किस मुद्रा में मोल चुकाऊं
केवल तेरी महिमा गाऊं ,
और मुझे कुछ भी ना आता
दाता राम दिए ही जाता
जब भी तुझ को गीत सुनाता
जाने क्या मुझ को हो जाता
रुन्धता कंठ नयन भर आते
बरबस मैं गुमसुम हो जाता
दाता राम दिए ही जाता
भिक्षुक मन पर नहीं अघाता
भिक्षुक मन पर नहींअघाता..
देने की सीमा नहीं उनकी ,
बुझती नहीं प्यास इस मन की
उतनी ही बढती है तृष्णा ,
जितना अमृत राम पिलाता
दाता राम दिए ही जाता
कहो उरिन कैसे हो पाऊं ,
किस मुद्रा में मोल चुकाऊं
केवल तेरी महिमा गाऊं ,
और मुझे कुछ भी ना आता
दाता राम दिए ही जाता
जब भी तुझ को गीत सुनाता
जाने क्या मुझ को हो जाता
रुन्धता कंठ नयन भर आते
बरबस मैं गुमसुम हो जाता
दाता राम दिए ही जाता
भिक्षुक मन पर नहीं अघाता
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