बुधवार, 17 सितंबर 2014

हम 'रिटायर्ड' बुज़ुर्ग कैसे जियें? - गतांक के आगे

 यही वर दो मेरे राम -- रहे जनम जनम तेरा ध्यान 


( पिछले अंक से आगे )

निवेदक : 
व्ही  एन   श्रीवास्तव "भोला",
सहयोग : 
श्रीमती डॉक्टर कृष्णा श्रीवास्तव  एम् ए. पी एच  डी
एवं 
श्रीमती श्रीदेवी कुमार  एम् बी ए - चेन्नई 


मैंने पिछले अंक में वादा किया था कि अपनी उपरोक्त रचना को गाकर आपके समक्ष पेश करंगा !  सों उस भजन का  youtube स्वरूप एवं उसका लिंक नीचे प्रस्तुत कर रहां हूँ ! प्लीज़ सुनियेगा अवश्य !


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वीडियो देख सुन कर आप जानेगे कि आपका यह मित्र अपनी 'फेमिली' के साथ ,सन १९८९ में भरत सरकार की सेवा से रिटायर् होने के बाद से आज तक कैसे जिया, जी रहा है और जब तक "वो" जिलायेंगे तन तक कैसे जियेगा !:

प्रियजन जरा हंस लीजिए - उपरोक्त कथन में मेरी "फेमिली" बलियाटिक भोजपुरियों द्वारा उच्चारित फेमिली के शब्दार्थ वाली 'फेमिली'है  ऑक्सफोर्ड डिक्सनरी वाली फेमिली नहीं है ! उदाहरण स्वरूप पत्नी कृष्णा जी मेरी एकमात्र फेमिली हैं  वैसे ही जैसे लालूजी की फेमिली हैं श्रीमती राबडी देवी जी ! हम, सब भोजपुरी ही तो हैं !

चलिए आत्म कथा में आगे बढ़ें

हम दोनों पतिपत्नी अधिकाँश समय टेलीविजन पर संत महात्माओं के प्रवचन सुनते हैं !  श्रीराम शरणम का वेबसाईट तो दिन भर चालू ही रहता है उसके साथ साथ हम जगद्गुरु कृपालुजी महराज , राधास्वामी सत्संग दयालबाग / व्यास के प्रबुद्ध गुरुजन  के तथा माउंट आबू से "ब्रह्म कुमाँरीज़  के "अवेकनिंग"  के प्रवचन लगभग नित्य ही सुनते हैं !

नजर कमजोर होने के कारण मुझे एक और एडवांटेज है -  कभी कभी ,दुराग्रह नहीं सस्नेह आग्रह करके मैं अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा जी से आध्यात्मिक प्रवचन भी सुनता हूँ !  रामायण ,गीता ,भागवत आदि सद्ग्रन्थों से  पढ़ पढ़ कर वह हमे हमारा "वास्तविक धर्म" समझाती हैं  ! मुझे यह अच्छा लगता है !  ये है हम दोनों पर एक विशेष भगवद कृपा ! 

प्रियजन आप यदि मेरी उम्र के हैं तो अवश्य जानते होंगे कि इस उम्र में रात की नींद कितनी दुर्लभ होती है !  इए विषय में एक 'कन्फेशन'' करूं , इस सत्संग में ,श्रीमती जी के प्रवचन सुनते सुनते मुझे अक्सर बहुत मीठी नींद आजाती है! सत्संग का सुखद प्रसाद मुझे तत्काल मिल जाता है !आप भी यह नुस्खा आजमायें ,फायदा होगा !

तो लीजिए बूढे तोते की  राम राम सुन ही लीजिए


सोमवार, 8 सितंबर 2014

ओम् गम गणपतये नम:

विघ्नेश्वर सिद्धविनायक श्री गणपति गणेश जी के 
शुभ जन्मोत्सव 
पर सभी पाठकों को 
हार्दिक बधाई 
मंगलमय हो आनंदमय हो आप सब का जीवन
प्रार्थी - "भोला" - कृष्णा
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परमप्रिय स्नेही स्वजनों ,

कदाचित डेढ़ महीने के अंतराल के बाद आपको सम्बोधित कर रहा हूँ ! ये न सोचें कि मैं आप को भूल गया ! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ! मेरे मन में अपने सब स्वजनों प्रियजनों शुभचिंतकों की याद सतत बनी रही ! मन ही मन आप सब शुद्ध आत्माओं पर "परमपिता परमेश्वर" की अहैतुकी कृपा सदा सर्वदा बनी रहे , उस हेतु शुभकामनाएं एवं प्रार्थना भी करता रहा !

स्नेही प्रियजनों के  जन्म दिवस आये , उन्हें बधाई दी ,उनके लिए शुभ कामनाएं कीं और प्यारे प्रभु से "उनके "सभी प्रियजनों  पर उदारता से कृपा वृष्टि करते रहने का अनुरोध किया ! यह उचित था या अनुचित , इसका निर्णय "प्यारे प्रभु" के हाथों सौपता हूँ !  

जी हाँ इस बीच ,जुलाई में स्वयम मेरा ही जन्म दिवस आया , यहाँ विदेश में भी रात बारह बजे से ही टेलीफोन की घंटी घनघनाने लगी और फिर ईमेंल ,फेस बुक , और न जाने कौन कौन से आधुनिक उपकरणों पर बधाई एवं शुभ कामनाओं के सन्देश भी आये ! प्रियजन बुरा न माने , अनेक व्यवधानो के कारण ,मैं कदाचित उन सारे संदेशों को पढ़  भी नहीं पाया और  न उनके उत्तर ही प्रेषित कर पाया , क्षमा प्रार्थी हूँ ....

आत्म कथा है यह मेरी इसलिए पहले यह ही सुनिए कि मैंने स्वयम अपने लिए क्या शुभकामना की ,क्या प्रार्थना की और प्यारे प्रभु से अपने लिए क्या 'वर' माँगा : 

संत तुलसीदास जी का सुप्रसिद्ध सूत्रात्मक दोहा मार्ग दर्शक बना 

अर्थ न धर्म न काम रूचि गति न चहहु निरवान !
जनमजनम रति राम पद , यह ,वरदान न आन !! 

प्यारे प्रभु ! अर्थोपार्जन अथवा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के प्रति अब मुझे तनिक भी रूचि नहीं है ! सच पूछिए तो अब मेरे मन में मुक्ति प्राप्ति की भी कामना शेष नहीं है ! प्रियतम् मुझे जनम जनम तक "अपने श्रीचरणों" के प्रति अखंड प्रीति प्रदान करो , मैं 'आपको' अनंतकाल तक न भूलूं ,ऐसा वरदान दो मुझे मेरे नाथ ! मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए !

कम्प्यूटर जी साथ दे रहे हैं , सोचता हूँ उपरोक्त संत तुलसी का दोहा तथा उस विचार से प्रेरित अपनी एक रचना आपको सुनाऊँ ,राम कृपा से :

सुमिरूं निष् दिन तेरा नाम यही वर दो मेरे राम 
रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम 

मनमोहन छबी नैन निहारें जिव्हा मधुर नाम उच्चारे 
कनक भवन होवे मन मेरा 
(जिसमे हो श्री राम का  डेरा) 
कनक भवन होवे "मन" मेरा ,"तन" कोशालपुर धाम 
यही वर दो मेरे राम

गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ , परम पुनीत नाम गुण गाऊँ 
सुमिरन ध्यान सदा कर पाऊँ दृढ़ निश्चय दो राम 
यही वर दो मेरे राम 

सौपूं तुझको निज तन मन धन , अर्पित कर दूँ सारा जीवन, 
हर लो माया का आकर्षण , प्रेम भक्ति दो दान !!
यही वर दो मेरे राम 

प्रारब्धों की मैली चादर, धौऊँ सत्संगों में आकर 
तेरे शबद धुनों में गाकर पाऊँ मैं विश्राम 
यही वर दो मेरे राम 

बाक़ी है जो थोड़े से दिन , व्यर्थ न हो उनका इक भी छिन 
अंत काल कर तेरा सिमरन ,पहचूँ तेरे धाम
 यही वर दो मेरे राम 
रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम
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(शब्द एवं स्वरकार - व्ही  एन   श्रीवास्तव "भोला")
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सोचा था इस आलेख के साथ भजन का एम् पी ३ अथवा यू ट्यूब संस्करण भी प्रेषित करूं   नहीं कर पाया - हरि इच्छा , आगे फिर कभी होगा ही !
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