दर्शनोपरांत का चिन्तन
(गतांक से आगे)
उस दिन मुझे सत्य साईँ बाबा के वास्तविक दिव्य स्वरूप का दर्शन हुआ ! स्वजनों ,उस चमत्कारिक दर्शन ने मेरी आँखें खोल दीँ और उनके प्रति मेरी पुरानी भ्रांतियां पल भर में समूल नष्ट हो गयी ! एक पल में ही बाबा के विषय में मेरा सम्पूर्ण चिन्तन बदल गया !
बात ऎसी थी कि तब तक मैं लोगों से सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर यह सोचता था कि बाबा एक मैजीशियन के समान जनता को हिप्नोटाइज कर के हाथ की सफाई द्वारा नाना प्रकार के भौतिक पदार्थ - घड़ियाँ ,मुन्दरियां विभिन्न आभूषण तथा सुगन्धित विभूति आदि अपने अनुयायी भक्तों में वितरित करते हैं और बाबा के इस जादुई कृत्य को उनके अन्धविश्वासी भक्त तथा सेवक दिव्य प्रसाद की संज्ञा देकर बाबा को "भगवान" सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं ! कुछ क्रिटिक्स तो यहाँ तक कहते थे कि बाबा से कहीं अधिक रोमांचक चमत्कार ,बंगाल के जादूगर पी. सी सरकार और उनके शागिर्द दुनिया भर में मंचित अपने जादुई तमाशों में दिखाते फिरते हैं ! तब की कच्ची समझ वाला मैं , क्रिटिक्स की इन बातों से बहुत कुछ सहमत भी था ! इसके आलावा मुझे अपने जैसे दिखने वाले किसी अति साधारण व्यक्ति को "भगवान" कह कर संबोधित करना तब उचित नहीं लगता था ! लेकिन --
अब इस वयस में मुझे समझ में आया है कि हम जैसे भौतिक जगत के निवासी केवल उतना ही देख,सोच ,समझ पाते हैं जितना अपनी इन्द्रियों की क्षमता एवं अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति और सीमित बुद्धि से हमारे लिए संभव होता है ! दिव्यपुरुषों के चमत्कारों में निहित उनके उद्देश्य को हम साधारण मानव नहीं समझ पाते हैं ! "साईँ बाबा" भी दैविक शक्तियों द्वारा भौतिक पदार्थों की उत्पत्ति करते थे और उन्हें प्रसाद स्वरूप वितरित करते थे ! इस प्रकार वह दीन दुखियों की "सेवा" करते थे ,उनके दुःख हरते थे ,उन्हें असाध्य रोगों से मुक्त करते थे और वह जन साधारण को प्यारे प्रभु की सर्वव्यापक शक्ति से परिचित करवाते थे और उसके प्रति उनका विश्वास दृढ़ करते थे !
बाबा भली भांति जानते थे कि दुखियारी आम जनता केवल कष्टों से निवृत्ति एवं सुखों की मांग लेकर उनके पास आती है ! वह ये भी जानते थे कि केवल ज्ञानयज्ञ से तथा वेदादि पौराणिक ग्रन्थों को कंठस्थ करके, बार बार पाठ करते रहने से, आम जन समुदाय का उद्धार नहीं होने वाला है ! व्यापक परम शांति की प्राप्ति के लिए आवश्यक है अपने आप को पहचानना और यह मान लेना कि इस समस्त जीव जगत का स्वामी केवल एक ही परमानंद स्वरूप "ईश्वर" है और -
"उसकी" प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि
एक एक प्राणी अपने हृदय में प्रेम का दीप जलाये
एक एक व्यक्ति अहंकार मुक्त हो जाये
सभी ईश्वर प्राप्ति के लिए धर्माचरण करें
(अन्य धर्मावलम्बीयों को उत्तेजित किये बिना )
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बाबा के अनुसार ,यह संभव होगा
सतत हरी नाम सुमिरन से
र्सब धर्मों के समन्वय से
सब कर्मो को प्रभु सेवा जानने से
आपसी समझदारी से
करुणा सहनशक्ति परसेवा भाव से
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सत्य साई बाबा के अनुसार यह कभी न भूलना चाहिए की
सम्पूर्ण मानवता का (सारी मनुष्य जाति का)
"धर्म" एक है - "प्रेम"
"भाषा" एक है - "हृदय की"
"जाति" एक है - "इंसानियत (मानवता)
"ईश्वर" एक है - "परम सत्य , सर्व व्यापक ब्रह्म"
तथा
माधव सेवा ही मानव सेवा है
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निवेदक : व्ही .एन. श्रीवास्तव "भोला"
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर साईं चिंतन| धन्यवाद|
बहुत सटीक बात कही है आपने ''साईं बाबा'' जैसे महान संत मानव सेवा हेतु ही इस जगत में आते हैं .सार्थक प्रस्तुति हेतु आभार .
आपकी पोस्ट को पढने के बाद वास्तव में मैं भी साईं बाबा के प्रति अपने विचारों को परिवर्तित कर पाई हूँ अन्यथा मैं भी उन्हें आजकल के अन्य साधू संतों की तरह ही मानती थी आभार.
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