शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

श्री राम जन्मोत्सव # 3 4 5


श्री राम जन्मोत्सव 


प्रियजन ,महापुरुषों का कहना है कि केवल त्रेता युग में ही नही वरन ,प्रत्येक मन्वन्तर में  प्रत्येक युग में , प्रति दिवस ही ,जहाँ जहाँ "ब्रह्म राम" का चिन्तन, ध्यान, भजन कीर्तन सिमरन और विशेषत: उनके मधुर स्वभाव एवं सद्गुणों का "अनुकरण " होता  है वहां पर अनवरत "श्रीराम" का अवतरण होता रहता है !

महापुरुषों के अनुसार त्रेता युग में अवतरित " दशरथ नंदन राम "  मानव स्वरूप में धरती पर पधार कर मानवता को सुखी और सार्थक जीवन जीने के लिए उच्च मर्यादाएं प्रदर्शित करके "स्वधाम" चले गये ! आज कलिकाल में हम सब उन्हें पुनः वापस नहीं बुला सकते ! कलिकाल में हमे अपना "राम" स्वयम अपने आप में और अपने साथ इस धरती पर आये  उन सभी जीवात्माओं में खोजना है जो हमारे पूर्व जन्मों से सम्बंधित संस्कारों तथा कर्मो के फल स्वरूप इस जीवन में भी हमारे माता पिता गुरुजन , मित्र , मालिक , नौकर आदि   सम्बन्धियों  के रूप में हमारा साथ निभा रहे हैं ! प्रियजन हमे इनमे ही अपने " राम"  को पाना है ! तुलसी के शब्दों में वह राम ब्रह्म चिन्मय अबिनासी , सर्व रहित सब उर पुर बासी है ! 

"वह" अनामी "परात्पर ब्रह्म" सर्वव्यापक है , चिन्मय है , अविनाशी है , सर्व रहित भी है और सब के उर पुर में निवास भी करता है ! उसकी कोई सीमा नहीं हैं और वह सब में रमा हुआ है और सर्वत्र व्याप्त भी है ! प्रियजन, "वह" केवल हम सब का ही नहीं है ,वह सम्पूर्ण मानवता को उपलब्ध है और वह सबमें ही व्याप्त भी है ! वह  इस्लाम धर्म के अल्लाह में उनके मोहम्मद साहेब और सभी  पीर-पैगम्बरों में भी है और ईसाइयों  के "GOD' ,HOLY FATHER ? SPIRIT" ,स्वयम ईसामसीह और उनके अन्य सभी मसीहों में भी उतना ही है जितना हमारे इष्ट देव में है ! 

"वह"  विश्व के सभी धर्मों-मतों के "इष्ट" और उन धर्मों के संस्थापक तथा प्रचारक गणों में भी है तथा उनके लिए भी उतना ही  महत्वपूर्ण हैं जितना हमारे "राम" हमारे लिए हैं ! इन सभी दिव्य विभूतियों के जीवन के मूल्य तथा उनके सदगुण , उनके कर्म ,उनके आचार व्यवहार ,उनका शील स्वाभाव उनका चिन्तन उनके विचार सभी "आदर्श" हैं और मानव के समग्र उत्थान हेतु सक्षम व समर्थ हैं अत: सम्पूर्ण मानवता से वन्दनीय हैं और सर्वथा अनुकरणीय है ! 

उपरोक्त मान्यताओं के अनुसार सच पूछो तो इस  धरती पर जन्मे हम सब इन्सान चाहे हिन्दू हों या ईसाई या मुस्लमान एक एक जीवात्मा  उतना  ही सक्षम हैं जितने हमारे "राम" तथा हमारे अन्य देवी देवता  और दूसरे धर्मावलम्बियों के पीर पैगम्बर "अल्लाह"  "खुदा" या "गोड" हैं ! श्री मद भगवत  गीता में योगेश्वर कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा ही  है कि :

ईश्वर सर्व भूतानाम  हृद्येशे अर्जुन तिस्थ्ती 

ईश्वर सब भूत प्राणियों के हृदय में विराजमान है ! प्रियजन , सो तो है ही , "वह" मुझमे है और आपमें भी है ! "वह" उनमे भी है जिन्हें हम अपने से अलग जानते हैं ! अस्तु  मेरे प्यारे पाठकगण अपने अपने गुरुजनों एवं धार्मिक महात्माओं और  महापुरुषों की बात मानो -- शरमाओ नहीं "प्यार करो" केवल कहने को नहीं बल्कि वास्तव में "प्यार करो" ! दोनों हाथों से अपना निश्छल प्यार जहाँ जहाँ तक हो सके ,दूर दूर तक लुटाओ उसी प्रकार  जैसे राजा दसरथ ने राम जन्म पर अयोध्या में लुटाया था ! राजा दसरथ को "राम रतन धन" मिला था , और उन्होंने रतन लुटाये थे ! हमारे गुरुजन ने हमे "राम नाम" की निधि दी है ,चलिए हम वही लुटाएं और अपनी राम नवमी मनाएं !,   

इस आलेख के पीछे वाले ब्लॉग में मैं अपनी एक रचना "पायो निधि राम नाम " स्वयम गाकर अपने आनंदोदगार व्यक्त कर रहा हूँ ! मैं राम नवमी के दिन ही इसे आपकी सेवा में प्रेषित करने का प्रयास कर रहा था ,असफल रहा ! हमारी बड़ी बेटी श्री देवी ने ( जिसके सहयोग से मैंने यह ब्लॉग लेखन शुरू किया था ) उसने मद्रास (भारत) से इस भजन का  विडिओ क्लिप मेरे ब्लॉग में जोड़ दिया है ! हम अति आभारी हैं उसके ! 

प्रियजन,वह क्लिप देखियेगा अवश्य ! ( ब्लॉग पढ़ कर उसके नीचे "पुरानी पोस्ट"  पर क्लिक करियेगा )

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निवेदन : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती श्रीदेवी कुमार 
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1 टिप्पणी:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति.सच कहूं जब मैं छोटी थी तो सोचती थी की राम हमारे ही वंश में हुए हैं क्योंकि मेरे पापा भी बहुत बड़े राम भक्त हैं जब मुझे पता लगा की राम तो भगवान हैं तब मुझे बहुत दुःख हुआ साथ ही आश्चर्य भी.आपके ब्लॉग से जुड़कर बहुत अच्छा लगता है.आपके ऑडियो को भी मैं सुनना चाहती हूँ किन्तु मेरे कम्पूटर में adobe flash प्लेयर अच्छी तरह काम नहीं कर रहा है .पर मैं सुनूंगी ज़रूर.