बचपन के कृपा दर्शन
(सन्देश # ३२९ के आगे की कथा)
बचपन में अपने ऊपर हुई हनुमत कृपा की कहानियाँ सुना रहा था कि सहसा ही मेरे ब्लॉग # ३३० से ३३५ तक साक्षात् श्री हनुमान जी के अवतार नीमकरौली बाबा की बात चल गई और वह भी उनके "चमत्कारिक कम्बल" तक पहुंच कर थम गयी ! आज अभी मन में विचार आया "बचपन बीते तो अब ७० - ७५ वर्ष हो गये हैं ,कब तक बचपने में अटके रहोगे अपनी गाड़ी भी आगे बढ़ाओ"! याद आई बाबा की रेलगाड़ी वाली कहानी और साथ में अपनी उस यादगार रेलयात्रा की कहानी :
कथा की भूमिका दुहरा लूं ! १९४२-४३ की बात है ! नीम करौलीबाबा रेल रोक कर ब्रिटिश रेल कम्पनी - "E I R" से अपनी मांग पूरी करवा चुके थे ! बापू का ,"अंग्रेजों भारत छोडो" आन्दोलन जोर पर था ! मैं ८ वीं या ९ वीं कक्षा में पढ़ता था ! हमारे बड़े भैया के हम उम्र भतीजे "कोनी भैया" के साथ मैं भी , बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के " बी.मेट" के स्टडी टूर पर निकले विद्यार्थियों के साथ कानपुर के कारखाने देख कर पनकी स्थित श्री हनुमान जी के दर्शन करके ,आगरा की Foundry Industry (लोहे ढ्लायी के कारखाने) देखने जाने को तैयार हो गया था ! हनुमान जी की प्रेरणा से इन B H U के विद्यार्थियों के साथ रह कर मैंने तब १०-११ वर्ष की आयु में ही यह निश्चय ले लिया था की मैं अपनी बिरादरी के पुश्तैनी पेशे -मुंशीगीरी जजी,वकालत या ICS , PCS बनने का स्वप्न भूल कर कोनी भैया की तरह जीविकोपार्जन के लिए कोई टेक्निकल काम करूं !
उस समय तो ऐसा कुछ नहीं लगा की हनुमान जी ने मेरी अर्जी सुनी होगी ,लेकिन १० वर्ष बाद यह साबित हो गया कि उस पल ,कुमति निवारक "श्री हनुमानजी" ने सुमति दे कर मुझसे एक उचित प्रार्थना करवाली थी ! प्रियजन, आप जानते ही हैं कि मेरे उस समय के विचार "उनकी" कृपा से मेरे भावी जीवन के निर्णायक निश्चय सिद्ध हुए ! तभी तो मैंने १९५०-५१ में B H U के ही कोलेज ऑफ़ टेक्नोलोजी से डिग्री हासिल की !
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क्रमशः
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पाठकगण : यहा अमेरिका में अभी अभी समाचार मिला कि
"सत्य साईँबाबा" नही रहे ! कलम रुक गयी है !
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति| धन्यवाद|
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