हमारी साधना का लक्ष्य
"वृद्धि आस्तिक भाव की ,शुभ मंगल संचार"
(सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी )
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हम अवकाशप्राप्त - वयोवृद्ध जन अपने इस जर्जर पिंजर से
अब कैसी साधना करें ?
( हास्य व्यंग युक्त एक आध्यात्मिक सन्देश )
अब आज की स्थिति बताता हूँ :
१९२९ मॉडल की "बेबी ऑस्टिन" का अंजरपंजर,पुर्जा पुर्जा खडखड़ा रहा है! भोपू-'होर्न' मूक है , लेकिन सौभाग्य सराहिये कि इसके फूटे साइलेंसर की फटफटियों जैसी फटफटाहट दूर से ही एलान कर देती है कि मा बदौलत की सवारी नुक्कड़ तक आ गयी है !
जनाब भारी भारी साँसों के बीच अपने इष्टदेव के सर्व शक्तिमान सर्व दुखभंजन नाम का जिव्हा द्वारा , पीडामय कराह के साथ जोर जोर से उच्चारण करते हुए ,तथा बीच बीच मे थकेहारे हाथों से ,एक निश्चित लय से धरती से उठती गिरती छडी (जो मेरी प्यारी पौत्री शिवानी अपनी पिछली भारत यात्रा में देहरादून मसूरी या नैनीताल से मेरे लिए लाई थी) , जी हाँ उसी छडी की तालबद्ध खटखटाहट द्वारा परिवार वालों को दूर से सचेत करता हुआ जब मैं डायनिंग टेबल तक पहुचता हूँ ,सब सतर्क हो जाते हैं ! मेरी स्पेशल हत्थेदार कुर्सी पर सूखने को डाले गये छोटे बच्चों के अंदरूनी कपड़े तुरंत हटा लिए जाते हैं ! बच्चे टी वी के अपने गेम के चेनल बुझा कर "संस्कार" चेनेल लगा देते हैं (चाहे उसमे उस समय मनोज कुमार जी "हनुमान यंत्र" का प्रचार करते हों अथवा युवतियों के सुन्दरीकरण के प्रसाधनों को आधे दाम में बेचने का कोई रंगींन विज्ञापन चल रहा हो )!
अच्छा लगता है यह ! बच्चों की अच्छी अनुशासित परवरिश करने के लिए अपनी ही पीठ थपथपाने को जी करता है !
कहा फंस गया आत्म गुण गान में ? कलियुगी मानव जो हूँ काम क्रोध लोभ मोह मत्सर आदि दुर्गुणों का आगार , एक पुरातन पतित ! क्षमा करें !
सद्गुरु कृपा से अपनी पहचान हुई , सचेत हुआ निज दुर्गुणों - दोषों से अवगत हुआ !
आगे सुने ! संत दर्शन हुए , हर स्थान पर सत्संगों का सैलाब सा आ गया ! स्वदेश में, परदेस में, उत्तरी गोलार्ध में दक्षिणी गोलार्ध में , पूर्वी और पश्चिमी गोलार्ध में सर्वत्र पौराणिक सरस्वती सुरसरि गुप्त रूप में इन सब देशों के सरोवरों में सहसा प्रगट हो कर हमारा मार्ग दर्शन करती रही !
सद्गुरु जंन के आशीर्वाद का कितना आनंदपूर्ण सुफल ?
विदेश में ही एक संत ने प्रवचन में महात्मा सूरदास जी के एक पद का उल्लेख किया जिसमें उन्होने अंतर्मन में "हरि नाम सुमिरन" की मूक साधना को ही परमानंद स्वरूप भगवद प्राप्ति का सरलतम एवं सर्वोच्च साधन बताया !
जो घट अंतर हरि सुमिरे,
ताको काल रूठी का करिहे , जे चित चरण धरे !!
सहस बरस गज युद्ध करत भये ,छिन इक ध्यान धरे ,
चक्र धरे बैकुंठ से धाए , वाकी पेंज सरे !!
जहँ जहँ दुसह कष्ट भगतन पर , तहं तहं सार करे
सूरजदास श्याम सेवे जे , दुस्तर पार करें !!
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आपको अपने साधक् परिवार द्वारा प्रस्तुत सूरदास का वही भजन सुना देता हूँ ! १९८३ में भारत में हम सब ने मिलकर यह गाया था किसी रविवासरीय अमृतवाणी सत्संग में !
; लीजिए सुनिये
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निवेदक - व्ही एन श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग - श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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