शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

दैनिक प्रार्थना (शनिवार)


श्री मदभगवत गीता
वास्तविक "तप" से "सुख" प्राप्ति के सूत्र


योगेश्वर कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि घर बार त्याग कर , पर्वत की कन्दराओं में , घने जंगलों में जा कर कष्टमय जीवन जीना "तप" नहीं है !

तन, मन और वाणी के "वास्तविक तप"

निर्मल तन-मन से , नम्रता के साथ ,ब्रह्मचर्य व अहिंसा का पालन करते हुए देवताओं तथा विद्वान गुरुजनों का पूजन तन अथवा "शरीर" की तपस्या है !! स्वाध्याय का अभ्यास करते हुए ऐसे प्रिय और हितकर सत्य वचन बोलें जो किसी को दुःख न पहुंचाएं ,यह "वाणी" की तपस्या है ! प्रसन्नता से , शुद्ध व शांत भाव से ,मौन रहकर अपने मन को नियंत्रित रखना "मन" की तपस्या है !

प्रथम अनुभव में जो विष सा कसैला प्रतीत हो परन्तु अंत में मन और बुद्धि को अमृत सदृश्य लगे और मधु सा मीठा हो ,वह "आनंद" ही वास्तव में "सात्विक सुख"है ! विषय इन्द्रियों के संयोग से मिला क्षणिक सुख प्रारम्भ में अमृत सा मीठा लगता है परन्तु अंत में विष के समान कड़वा हो जाता है , इस सुख को "राजस" सुख कहते हैं !! आलस्य , निंद्रा , और प्रमाद जनित सुख जो जीव के मन में मोह जगा कर शुरू और अंत दोनों में ही मीठे लगते हैं , उन्हें "तामस" सुख कहते हैं !!

अंत में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि " मेरी और तुम्हारी इस धर्म चर्चा को ध्यान से पढ़कर अपने जीवन में उतारना ही साधक द्वारा विधि विधान से किया हुआ "ज्ञान यज्ञ" है और यही "मेरी" (उसके इष्ट की ) वास्तविक पूजा आराधना भी है !

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राम चरितमानस से नाम महिमा


राम कौन ?

इस जगत के सभी जड़ चेतन तत्वों में तथा इस सृष्टि के सभी जीव जन्तुओं में जो सामान्य रूप में व्याप्त है वह है "राम" ! अस्तु आइये हम इस समस्त सृष्टि को तथा इसमें के सभी नर नारी को राम रूप मान कर उनको समुचित आदर दें तथा उनकी चरन वन्दना करें!

"ब्रह्म" ऐश्वर्य , यश, श्री ,धर्म , वैराग्य एवं ज्ञान से युक्त है , अविकारी , अजन्मा, अजेय , अनादि तथा अनंत हैं और सर्वत्र व्याप्त हैं ,शिव जी का कथन है कि यह ब्रह्म भी "प्रेम" के वश होकर कभी कभी इस धरती पर प्रगट होते हैं ! इस ब्रह्म के अनेक नाम हैं जो एक से एक बढ़ कर हैं ! नारद के विचार में तो "राम नाम" से बढ़ कर अन्य कोई नाम है ही नहीं ! उनके कथनानुसार राम नाम पाप रूपी जंगली पंछियों के समूह को उड़ा देने के लिए बधिक के समान भयकारी हैं ! राम नाम लेते ही सब अमंगल समूल नष्ट हो जाते हैं , तथा अर्थ , धर्म , काम तथा मोक्ष, ये चारों पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं ! नीच कामदेव को उसकी धृष्टता के कारण दण्डित करने वाले "शिव जी " कहते हैं कि इस " समग्र जगत के मातापिता श्री सीता रामजी हैं, इनका नाम जाप करने से विवेकी मनुष्यों के जनम मरण के बंधन कट जाते हैं ! संकट से घबराए आर्त भक्तजन जब नाम जप करते हैं तब उनके भारी से भारी संकट भी टल जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं" ! तुलसी कहते हैं "यदि तू भीतर-बाहर सर्वत्र उजाला चाहता है तो अपने मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी चौखट पर राम नाम का मणि दीपक रख "!

हमारे गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने भी कहा :

राम नाम दीपक बिना जन मन में अंधेर!
रहे इससे हे मम मन नाम सुमाला फेर!!

नवरात्रि भर आपको मानस के अंश गाकर सुनाता रहा, आज भी अपनी आराधना अधूरी नहीं रहने दूँगा ! अस्वस्थता के कारण कंठ अवरुद्ध है , सांस लेने में भी कठिनाई हो रही है , फिर भी आज के दिन अपनी पूजा न करूं ये कैसे होगा (और हाँ ,स्वयम अति अस्वस्थ होते हुए भी कृष्णा जी ने बखुशी केमरा चलाया है) ,जैसा भी है , प्लीज़ जितनी देर सुन सकें सुन लें :


धन्यवाद
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"क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला , श्रीदेवी कुमार ,प्रार्थना ,माधव
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