शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

दैनिक प्रार्थना (मंगलवार)

दैनिक प्रार्थना
(गतांक से आगे)

कल पहली अक्टूबर को , पूज्यनीय "बाबू"- दिवंगत श्रद्धेय श्री शिवदयाल जी की पुण्यतिथि पर , हमने गीता व राम चरित मानस के वे विशेष सूत्र आपको बताये थे जिनका पालन करके श्री राम परिवार का सर्वान्गीण विकास हुआ ! स्वयम मैं ,तथा मेरे परिवार के सभी जन इनसे प्रतिपादित सूत्रों को सच्चाई से अपने जीवन में उतार कर कितने लाभान्वित हुए हैं , अपने मुंह से कहना उचित नहीं है !

चलिए आगे बढते हैं , हमारी अगले दिन की प्रार्थना में "गीता" से "इन्द्रियों व मन का निग्रह" तथा "मानस" से "सदाचार" के सूत्रों को उध्रत किया गया है ! सर्वप्रथम "गीता" प्रस्तुत है :



उपरोक्त श्लोकों का भावार्थ

इन सूत्रों से श्री कृष्ण ने हमसे कहा : वह व्यक्ति जो कर्म का त्याग करके विषय के चिंतन में लगा रहता है वह दम्भी है 'पाखंडी" है और वह व्यक्ति जो मन से अपनी इन्द्रियों को काबू में करके अपने कर्म करता रहता है वह "श्रेष्ट" है !!वह व्यक्ति दृढ़ प्रग्य है जो अपनी इन्द्रियों को वश में कर के योग युत होकर अपने सभी कर्म करता है !! चंचल और संशयवान मन को साधना कठिन है परन्तु नियमित अभ्यास से यह साधना सम्भव है !! आपका मन जहां जहां से भागता है , उसे रोक कर ,पुनः वहीं ले आओ और फिर उसे अपनी आत्मा के आधींन कर दो !! जो सभी को मुझ में देखता है और सर्वत्र ,सब में मुझे देखता है "मैं" उस व्यक्ति से दूर नहीं और वह "मुझसे" दूर नहीं !! द्वेश और इच्छाओं से मुक्त व्यक्ति ही नित्य सन्यासी है ! द्वनदों को तज कर मानव सर्व बंधन मुक्त हो जाता है !!

प्रार्थना और माधव की आवाज़ में उपरोक्त गीता का पाठ वैसे ही सुनिये
जैसे उनोने अपने बड़े मामा से बचपन में सीखा था !


मानस से "सदाचार"के सूत्र :-

मानस के निम्नांकित सूत्रों में तुलसी का कहना है कि "प्यारे प्रभु" तब ही प्रसन्न होते हैं जब साधक पूरी श्रद्धा से उनकी चरन वन्दना करते हैं ! वह व्यक्ति जो काम क्रोध मद मान मोह लोभ क्षोभ राग द्रोह दम्भ कपट और माया का परित्याग करता है उसके हृदय में ही "प्रभु" का निवास होता है !! जो सबके प्रति प्रेम रखे और सबका हितकारी हो , जो दुःख-सुख , प्रसंशा और बदनामी में सम भाव रहे , सोच विचार कर सत्य और प्रिय वचन बोले ,और एक मात्र प्रभु की शरण में ही रहे ,ऐसे जन के मन में "प्रभु" का निवास होता है !! जो पर स्त्री को मा तथा पर धन को "विष" समझे तथा अन्य लोगों की समृद्धि से प्रसन्न हो , जिनका मन दुखियों को देख कर व्यथित हो जाए ,और जो अपने प्रभु से असीम प्रीति करे ऐसे व्यक्तियों के "मन सदन" में "प्रभु" का निवास होता है !"( हम इन प्रभु को "राम नाम" से सम्बोधित करते हैं - आप अपने "इष्ट" को सिमर कर इसे पढ़ें - अवश्य कल्याण होगा )

मानस से "सदाचार" के सूत्र

सब करि मांगहि एक फलु राम चरन रति होउ !
तिन के मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदन दोउ !!

काम कोह मद मान न मोहा , लोभ न छोभ न राग न द्रोहां !!
जिन्ह के कपट दम्भ नहि माया, तिन्ह के हृदय बसों रघुराया !!
सब के प्रिय सबके हितकारी , दुःख सुख सरिस प्रसंसा गारी !!
कहहि सत्य प्रिय वचन बिचारी ,जागत सोवत सरन तुम्हारी !!
तुम्हहि छाड़ी गति दूसर नाहीं ,राम बसहु तिन्ह के मन माही !!
जननी सम जानहिं पर नारी , धन पराव विष तें विष भारी !!
जे हरषहिं पर सम्पति देखी , दुखित होहिं प्र विपति विशेषी !!
जिनहि राम तुम प्रानपियारे, तिन के मन सुभसदन तुम्हारे !!

स्वामि सखा पितु मातु गुरु जिनके सब तुम तात
मनमंदिर तिनके बसहु सीय सहित दोउ भ्रात !!
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सदाचार के उपरोक्त सूत्र अपनाकर अपना जीवन सुधारने की मंत्रणा हमारे पूज्यनीय बाबु ने हम सब को दी थी ! हमे गर्व है कि राम परिवार के अधिकाधिक सदस्य इससे लाभान्वित हुए चलिये इन सूत्रों को एक बार मेरे साथ गा लीजिए


धन्यवाद !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा जी, श्री देवी , प्रार्थना , माधव

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