मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

शरणागति

शरणागतवत्सल परमेश्वर
"अर्जुन की शरणागति"

(गतांक से आगे)

संत महात्माओं और महापुरुषों का कथन हँ कि " भगवान की कुपा पर अटूट भरोसा रखना ही 'शरणागति' है" ! आध्यात्मिक आख्यानों में "शरणागति" के अनेकानेक उदहारण मिलेंगे ,पर इस संदर्भ में हम् यहाँ पर आपको महाभारत की एक कथा सुना रहे हैं :

महाभारत के युद्ध में एक दिन, दुष्ट दुर्योधन के कटाक्षों से आहत होकर, आजीवन कुरुवंश की रक्षा हेतु वचनबद्ध पितामह भीष्म ने प्रतिज्ञा कर ली कि अगले दिन के युद्ध में वह या तो अर्जुन को मार देंगे या स्वयम हताहत होंगे ! भीष्म की इस प्रतिज्ञा ने श्रीकृष्ण को विचलित कर दिया और उनकी आँखों की नींद गायब हो गयी ! उनके प्रिय सखा अर्जुन और उसके चारों भाईयों के लिए यह अति संकट का काल था ! श्रीकृष्ण को चिंता हुई ! तत्काल ही अश्वों के सेवा की व्यवस्था कर के पार्थसारथी कृष्ण मध्यरात्रि में ही पांडवों के शिविर में पहुंच गए !
श्रीकृष्ण सोच रहे थे कि भीष्म प्रतिज्ञा सुन कर पांडू शिविर में कोहराम मचा होगा , विचार विमर्श व गहन चिंतन हो रहा होगा कि कैसे इस संकट से निपटा जाये ! लेकिन श्रीकृष्ण को पांडु शिविर में वैसा कुछ भी नहीं दिखा ! सब निश्चिन्त हो , दिन की थकावट मिटाते हुए , गहरी नींद में सो रहे थे ! कैसे सम्भव है यह शांति ? श्रीकृष्ण चक्कर में पड़ गए !

कौतूहलवश श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम अपने प्रियतम सखा अर्जुन को जगाया ! अर्जुन घबरा कर उठ बैठा और इस सोच में पड़ गया कि , इतनी रात को श्रीकृष्ण यहाँ क्यों आये होंगे ? अर्जुन के बिन बोले ही कृष्ण उसका मनोभाव जान गए , और बोले "पार्थ क्या तूने पितामह की वह प्रतिज्ञा नहीं सुनी ,वह कल तक तुम को समाप्त करने की योजना बना चुके हैं ! पर तुझे तो जैसे उनकी प्रतिज्ञा से कुछ लेना देना ही नहीं है ! तुझे कोई चिंता नहीं कोई भय नहीं कोई घबराहट नहीं, तू निश्चिन्त होकर खर्राटे भर रहा है ! देख मै कितनी चिंता कर रहा हूँ पार्थ ! मैं तुझसे कल के युद्ध की योजना जानने आया हूँ !"

अर्जुन ठहांका मार कर हंसते हुए बोला ," मेरी योजना ? मैं कौन हूँ योजना बनाने वाला ?"

कृष्ण ने कुछ क्रोधित होकर उत्तर दिया ," भीष्म प्रतिज्ञा के प्रत्युत्तर में अपनी कल की योजना, पार्थ ! तू नहीं तो और कौन निर्धारित करेगा कल की रण नीति ?"

अर्जुन ने सहज भाव से कहा कि " बहुत भुलक्कड़ हो गए हो तुम कृष्ण ! अपनी कही बात ही भूल गए , तुम्हे याद नहीं, तुमने ही तो उस दिन मुझसे कहा था

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणम व्रज !
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच :!

भावार्थ :

तज धर्म सारे एक मेरी ही शरण को प्राप्त हो !
मैं मुक्त पापों से करूँगा तू न चिंता व्याप्त हो !!
(श्री हरि गीता )

अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कृष्ण से कहा " जब मेरे लिए चिंता करने वाला तथा मेरा योगक्षेम करने वाला मेरा बाल सखा कृष्ण हर घडी मेरे अंग संग है तब मुझे काहे की चिंता ? और फिर तुमने मुझसे खुद ही कहा है :

अय पार्थ न कर फ़िक्र न कर दिल में जरा सोच
श्री कृष्ण के होते हुए क्या फ़िक्र है क्या सोच

अल्ताफे इलाही पे भरोसा करअय अर्जुन
इकरामें कृष्ण देख , न कर मर्दे खुदा सोच

इक वख्त मुकर्रर है हरिक काम का अय पार्थ
बेकार तेरी फ़िक्र है बेकार तेरी सोच

कोई क्युंकरे फ़िक्र खुदअपनी बता तूही
जब मालिके आलम करे है सब्की फिक्रोसोच

(नानाजी मरहूम मुंशी हुबलाल साहेब "राद"की एक गजल का संशोधित प्रारूप )
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क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला
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