गतांक से आगे:
मेरे अतिशय प्रिय पाठकगण आप सोच रहे होंगे कि इस अवस्था में मैं ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रहा हूँ ! आज से साठ वर्ष पहले की कथा में मैं खुले आम अपनी एक नहीं दो दो प्रेयसियों की चर्चा कर रहा हूँ -एक वह सजीव - "देवी" जो बिना बुलाये मेरे घर मेहमान बनी थी और स्वयम मेरे माता पिता से मेरे साथ अपनी शादी का प्रोपोजल डिस्कस कर रही थी ,और दूसरी प्रेयसी वह निर्जीव -उनकी अति आकर्षक "अमरीकी कार"!
आगे की कथा
हम मोर्वी हॉस्टल के उस कमरे में ,चौकीदार को पटा कर गैर कानूनी ढंग से ठहरे थे ! उस कमरे में जून की वह गरम रात कितनी मुश्किल से कटी बयान करना कठिन है ! लकड़ी के तख्त पर करवटें बदलते बदलते , मेरी आँखों के सामने यूनिवरसिटी में बिताये पिछले दो वर्षों में घटीं सभी महत्वपूर्ण घटनाएँ एकएक कर,चलचित्र के समान आतीं जातीं रहीं ! नयी रिलीज़ होने जा रही फिल्म के प्रोमोज की तरह ,कानपूर में उन "कार" वाली कन्या के साथ अपने इंटरव्यू के दृश्य तथा उनकी उस नीली सफेद लिमोजिन का अपनी गली से निकलने का दृश्य बार बार सामने आ रहां था !
जितना मैंने चाहा कि वो कत्ल की रात जल्दी कट जाये वो उतनी ही लम्बी हो गयी ! उस समय मन में बस एक आकांक्षा थी कि जल्दी से सबेरा हो जाये और मैं B H U के रजिस्ट्रार ऑफिस के नोटिस बोर्ड पर अपना रिजल्ट देखलूं , तार से बाबूजी को खुशखबरी भेजूँ और , बाबूजी उस "कार वाली" बिना बाप की बिटिया का उद्धार करने के लिए उसके घर समाचार भेजें,मगनी और ब्याह की ,तारीखें फटाफट तय हो जाएँ,और कार वाली कन्या के पोलिटीशियंन भैया मुझे विवाह से पहले ही ,दिल्ली में सरकार के किसी मिनिस्टर पर जोर डाल कर कोई जबरदस्त जॉब दिलवा दें और फिर मुझे एक इम्पोर्टेड मौरिस मायनर , हिलमन , या वौक्स्हाल कार के साथ वह कार वाली कन्या भी मिल जाये !
जैसे तैसे सबेरा हुआ ! नहा धोकर सबसे पहले , B H U के प्रांगण में बने बाबा विश्वनाथ के मन्दिर की ओर दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और फिर ब्रोचा हॉस्टल के साथ वाली केन्टीन में चाय टोस्ट का नाश्ता कर के सीधे रजिस्ट्रार ऑफिस की ओर चल दिया ! नोटिस बोर्ड के आगे भीड़ लगी थी ! धक्कम धुक्का मची थी वहां ! मैं एक खाली बेच पर बैठ कर भीड़ छटने की प्रतीक्षा करने लगा ! अवसर पाते ही इस आशा में कि मेरा रोल नम्बर फर्स्ट डिवीजन वालों में छपा होगा मैंने अपनी लिस्ट का ऊपरी हिस्सा बार बार पढ़ा - उसमे मेरा नम्बर नहीं मिला ! थोड़ी निराशा हुई ! लिस्ट में नीचे सेकण्ड डिवीज़न वालों की लम्बी नामावली में अपना नम्बर ढूढने का प्रयास किया , एक बार फिर निराश हुआ ! बार बार ,अनेकों बार उस लिस्ट को ख्न्घाला ,प्रियजन उस लिस्ट में मेरा रोल नम्बर किसी डिविजन की पास नम्बरों में नहीं था !
कितना निराश और दुखी मैं उस समय हुआ , उसका वर्णन मैं आज नहीं कर सकता ! एक महत्वाकांक्षी बीस वर्षीय नवयुवक की मनः स्थिति ऎसी हालत में कैसी हुई होगी उसका अनुमान शायद आज के हमारे नवयुवक पाठक लगा पायें , मेरे लिए तो इस विषय में अभी कुछ भी कह पाना असंभव लग रहा है ! हाँ , भारत में उस जमाने की अब मेरी एक बड़ी भाभी बची हैं ,आज रात यहाँ से फोन पर उनसे पूछ कर आप को अगले सन्देश में बताऊंगा कि उस निराशा के बाद उनके प्यारे देवर भोला बाबू की क्या दशा हुई थी !
मैंने महापुरुषों के प्रवचनों में सुना है कि सब प्रकार से अपने प्यारे प्रभु की शरण में जा कर (अहंकार रहित हो कर ) जन हित में सत्य (पर अप्रिय नहीं ) वचन का बोलना अनुचित नहीं है ! अस्तु मुझे मेरे संस्मरण की यह अधूरी कथा पूरी कर लेने दीजिये विश्वास दिलाता हूँ इस प्रसंग का अंतिम परिणाम शिक्षाप्रद ही होगा ,उसमे तनिक भी अभद्रता आपको नहीं दिखेगी !
आगे की कथा
हम मोर्वी हॉस्टल के उस कमरे में ,चौकीदार को पटा कर गैर कानूनी ढंग से ठहरे थे ! उस कमरे में जून की वह गरम रात कितनी मुश्किल से कटी बयान करना कठिन है ! लकड़ी के तख्त पर करवटें बदलते बदलते , मेरी आँखों के सामने यूनिवरसिटी में बिताये पिछले दो वर्षों में घटीं सभी महत्वपूर्ण घटनाएँ एकएक कर,चलचित्र के समान आतीं जातीं रहीं ! नयी रिलीज़ होने जा रही फिल्म के प्रोमोज की तरह ,कानपूर में उन "कार" वाली कन्या के साथ अपने इंटरव्यू के दृश्य तथा उनकी उस नीली सफेद लिमोजिन का अपनी गली से निकलने का दृश्य बार बार सामने आ रहां था !
जितना मैंने चाहा कि वो कत्ल की रात जल्दी कट जाये वो उतनी ही लम्बी हो गयी ! उस समय मन में बस एक आकांक्षा थी कि जल्दी से सबेरा हो जाये और मैं B H U के रजिस्ट्रार ऑफिस के नोटिस बोर्ड पर अपना रिजल्ट देखलूं , तार से बाबूजी को खुशखबरी भेजूँ और , बाबूजी उस "कार वाली" बिना बाप की बिटिया का उद्धार करने के लिए उसके घर समाचार भेजें,मगनी और ब्याह की ,तारीखें फटाफट तय हो जाएँ,और कार वाली कन्या के पोलिटीशियंन भैया मुझे विवाह से पहले ही ,दिल्ली में सरकार के किसी मिनिस्टर पर जोर डाल कर कोई जबरदस्त जॉब दिलवा दें और फिर मुझे एक इम्पोर्टेड मौरिस मायनर , हिलमन , या वौक्स्हाल कार के साथ वह कार वाली कन्या भी मिल जाये !
घंटे दो घंटे को जो नींद आयी उसमें भी सपने में इम्पोर्टेड गाड़ियाँ और उनमें मेरे बगल में बैठीं वो कन्या दिखाई देती रहीं !कितना लालची और मतलबी होता है मानव ? तब २० वर्ष की अवस्था में मैं भी वैसा ही था ! उन दिनों कायस्थों के शादी बाज़ार में भयंकर मेह्न्गाई चल रही थी ! यू पी के पूर्वांचल और बिहार में अच्छे लडकों की भयंकर किल्लत थी , मार्केट में डिमांड अधिक और सप्लायी नदारत ! इसलिए रेट्स बहुत ऊंचे चल रहे थे ! उन दिनों सरकारी दफ्तर के लिपिक वर महोदय के लिए एक लाख रूपये और एक इंग्लेंड क़ी रेले या हरक्यूलिस साइकिल, बड़े बाबू के लिए दो लाख और एक यामहा या लेम्ब्रेटा ,दरोगा के लिए तीन लाख और एक रोयल एनफील्ड ,Dy.Collector ,PCS अफसरों के लिए पांच लाख और पसंद की सवारी खरीदने के लिए १० हजार अलग से ऑफर किये जाते थे ! हमारी केटेगरी के ऊंचे परिवार के , टेक्नोलोजिस्ट लडकों और डोक्टर ,तथा I A S या / I P S के लिए मुंह मांगी कीमत मिलती थी ! इनके लिए १०-१५ लाख रूपये मिनिमम कैश और एक हिंदुस्तान लैंडमास्टर कार की ऑफर लडकी वाले अपनी तरफ से ही करते थे ! ऐसी स्थिति में आप ही कहो प्रियजन क्या मेरी अनकही डिमांड जिसमे किसी धन राशी का उल्लेख नहीं था कुछ अनुचित थी ? मैं तो उन देवी जी के अतिरिक्त केवल एक इम्पोर्टेड कार ही पाना चाहता था !
जैसे तैसे सबेरा हुआ ! नहा धोकर सबसे पहले , B H U के प्रांगण में बने बाबा विश्वनाथ के मन्दिर की ओर दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और फिर ब्रोचा हॉस्टल के साथ वाली केन्टीन में चाय टोस्ट का नाश्ता कर के सीधे रजिस्ट्रार ऑफिस की ओर चल दिया ! नोटिस बोर्ड के आगे भीड़ लगी थी ! धक्कम धुक्का मची थी वहां ! मैं एक खाली बेच पर बैठ कर भीड़ छटने की प्रतीक्षा करने लगा ! अवसर पाते ही इस आशा में कि मेरा रोल नम्बर फर्स्ट डिवीजन वालों में छपा होगा मैंने अपनी लिस्ट का ऊपरी हिस्सा बार बार पढ़ा - उसमे मेरा नम्बर नहीं मिला ! थोड़ी निराशा हुई ! लिस्ट में नीचे सेकण्ड डिवीज़न वालों की लम्बी नामावली में अपना नम्बर ढूढने का प्रयास किया , एक बार फिर निराश हुआ ! बार बार ,अनेकों बार उस लिस्ट को ख्न्घाला ,प्रियजन उस लिस्ट में मेरा रोल नम्बर किसी डिविजन की पास नम्बरों में नहीं था !
कितना निराश और दुखी मैं उस समय हुआ , उसका वर्णन मैं आज नहीं कर सकता ! एक महत्वाकांक्षी बीस वर्षीय नवयुवक की मनः स्थिति ऎसी हालत में कैसी हुई होगी उसका अनुमान शायद आज के हमारे नवयुवक पाठक लगा पायें , मेरे लिए तो इस विषय में अभी कुछ भी कह पाना असंभव लग रहा है ! हाँ , भारत में उस जमाने की अब मेरी एक बड़ी भाभी बची हैं ,आज रात यहाँ से फोन पर उनसे पूछ कर आप को अगले सन्देश में बताऊंगा कि उस निराशा के बाद उनके प्यारे देवर भोला बाबू की क्या दशा हुई थी !
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क्रमशः
निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव " भोला "
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3 टिप्पणियां:
मन के भावों को बहुत ही सुन्दरता के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं आप .आभार .
कथा रोचक हो गयी है, अगली कडी का इंतज़ार है।
काकाजी प्रणाम ..यह कड़ी भी अच्छी रही !
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