प्रातःस्मरणीय सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज
के ५४ वे निर्वाण दिवस - नवम्बर १३, २०१४ को
हम जैसे सेवामुक्त वयोवृद्ध जीवों के लिए
उनका दिव्य सिखावन संजोये भजन
"राम ही राम भजो मन मेरे ,कलि क्लेश मिट जायेंगे तेरे "
प्रियजन ,
महीने महीने भर को कलम थम जाती है , पी सी निष्क्रिय हो जाता है ! इससे यह न सोचें कि मूल "विषय" भूल गया हूँ ! मेरे जैसे ही आप सब बखूबी जानते हैं कि परम सौभाग्य से प्राप्त इस दुर्लभ मानव तन में भी पशुओं के समान ही ,"विषय" हमे प्रतिक्षण घेरे हुए हैं ! हम विषयों के इस मायावी चंगुल से आजीवन कभी मुक्त हो पायेंगे या नही ,राम ही जाने !
अपनी दशा सुना चुका हूँ ! नेत्रों की ज्योति कम हो जाने से अब आँखें बंद रखना ही अच्छा लगता है ! जब आँखें खोल कर इधर उधर देखता हूँ तो सर्वत्र , - घर के अंदर आनंदरत सर्व जीवात्माओं की मधुर मुस्कानों में तथा चारों ओर करीने से सजी जड़ सजावटों से लेकर घर के प्रमुख दरवाजे के बाहर धरतीतल से ,अनंत गगन के एक छोर से दूसरे छोर तक, पुरवैया के झोंकों में ,पांखें फैलाए पंछियों के कलरव में ,फल-फूलों से लदे वृक्षों ,पौधों से गमकती सुगंधि में ,लहलहाती मखमली घास के मैदानों में, तथा मरुस्थल की गर्म छाती पर उभरे छोटे बड़े "सैंड ड्यून्स" के आकर्षक स्वरूप में , क्या दिखता है ?
समग्र दृश्य जगत के कण कण में , हमे प्रत्यक्ष दिखता है , "हमारा प्रियतम प्रभु" - हमे अपने वरद दिव्य उत्संग में लेने को आतुर , बेचैनी से हमारे आगमन की प्रतीक्षारत , जी हा "वह" और केवल "वह" ही !!
और जहां "वह" हो वहाँ अन्धेरा कैसा ? मेरी अधमुंदी आँखें भी सद्गुरु कृपा से कुछ रौशनी देख पाती हैं !"वह" प्रकाशपुंज गहन से गहन अन्धकार को निज ज्योति किरणों में लपेट कर नैराश्य की कालिमा को सदा सदा के लिए मिटा देता है ! सर्वत्र सौंदर्य ही सौंदर्य बिखर जाता है !
अब मेरी सुनिये आज भी देहिक आँखें अध् मुंदी हैं लेकिन उन परम सनेही प्रियतम की असीम करुणा से दासानुदास का सूक्ष्म अदृश्य "मन" अभी भी जीवंत है ! नाती पोतों ,पुत्र -पुत्रियों , बहुओं ,दामादों के नाम तो अभी भी सहजता से भूल जाता हूँ , लेकिन ऐसे में जब उन सब को वास्तविक प्रीति सहित "बेटा, गुडिया , मुनिया ,बिटिया कह कर पुकारता हूँ तब उनकी प्रफुल्लता का आभास पाकर कितना आनंदित होता हूँ उसका आंकलन कर पाना कठिन है !उस क्षण उन परम कृपालु "प्यारेप्रभु" के श्रीचरणों पर इस दासानुदास का मस्तक बरबस ही झुक जाता है, थोड़ा गौरवान्वित भी महसूस करता हूँ ! आप चौंक गये ? प्यारे , मुझे गर्व इसका है कि "मेरे प्यारे "वह" मुझे इतना प्यार करते हैं ! "उन्होंने" मेरी सेवकायी स्वीकार की है और पारिश्रमिक स्वरूप "वह" मुझे इतना आनंद दिये जा रहे हैं ! कैसे सम्भव हुआ यह ?
प्रियजन , मानव जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है "सद्गुरु मिलन"
हमारे सद्गुरु स्वामी जी महाराज ने कहा है :
भ्रम भूल में भटकते उदय हुए जब भाग
मिला अचानक गुरु मुझे जगी लगन की जाग
मेरा सौभाग्य सूर्य भी उस क्षण उदित हुआ जब १९५९ के नवम्बर मास में मुझे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के दर्शन हुए ! अतिशय करुणा कर उन्होंने मुझे "नाम दान" से नवाजा !गहन अन्धकार में डूबे मेरे अन्तःकरण में "नाम" ज्योति प्रज्वलित हुई ! आज इस पल भी मेरा जीवन उस सौभाग्य सूर्य के दिव्य प्रकाश से जगमगा रहा है ! उनकी अनंत करुणा आज भी मुझे प्राप्त है ! हृदय परमानंद में सराबोर है !
उदाहरण स्वरूप कुछ दिनों पूर्व "उन्होंने "अतिशय कृपा कर मेरे कंठ की वयस जनिय अवरुद्धता घटा दी ! ८६ वर्ष के बालक की खांसी कम हो गयी ! साथ साथ स्मृति भी पुनर्जागृत हुई ! पुराने भूले बिसरे शब्दों की याद आई भजन नूतन कलेवर में याद आने लगे !शब्द याद आये लेकिन यह याद न आया कि इन शब्दों का स्रोत कहाँ है !
जी हाँ हाल में ही कृष्णा जी ने एक दिन ऐसे भजनों में से एक भजन मेरे सन्मुख रखा ! यह भजन एक अति जर्जर पुर्जे पर अस्पष्ट शब्दों में अंकित था ! पर्चा देख कर केवल यह बात याद आयी कि यह भजन, किसी साधना सत्संग में मुझसे भी बुज़ुर्ग किसी साधक ने वर्षों पूर्व मुझे यह कह कर दिया था कि यह रचना हमारे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की है ! ,प्रियजन मुझे अभी भी याद नही आया कि उन व्यक्ति विशेष का नाम क्या है ! शब्द पढे , लगा कि जैसे सचमुच महाराज जी के ही शब्द हैं ! प्रेरणा की लहर उठी , धुन बनी ,गा दिया तुरंत ही भजन रेकोर्ड भी हो गया और , कृष्णा जी ने चित्रांकन करके उसे यू ट्यूब के "भोला कृष्णा चेनेल" में डाल भी दिया !
स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के निर्वाण दिवस पर यह भजन आप की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ !
राम राम भजो मन मेरे , कलि क्लेश मिट जायेंगे तेरे
राम नाम आधार बनावो , सिमरो नाम सदा सुख पावो
राम नाम रखो मन माही , नाम बिना दुख जावत नाही
राम नाम से लागी प्रीति , व्यर्थ गयी अब लग जो बीती
राम नाम की धुन लगावो ,आप जपो औरों को जपावो
घट घट में है राम समाया , धन्य धन्य जिन नाम ध्याया
नाम की मूरत मन में राखो , राम नाम अमृत रस चाखो
राम हि जीव जन्तु के दाता ,राम हि पावन नाम विधाता
जिन जिन भजा राम रघुराया ,तिन तिन पद अविनासी पाया
( रचना - श्रीश्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ?)
गायक - श्रीवास्तव - "भोला"
,
अब आज्ञा दीजिए !
आँखें मूंद कर "उन्हें" याद करें ,गदगद हो "उन्हें" उनकी अनंत कृपाओं के लिए धन्यवाद देते रहें !
बडा मज़ा आता है , मज़ा लूटते रहिये !
http://youtu.be/ROFXxABxRcQ?list=UUPNIoVIa1-1eASYIQ8k84EQ
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निवेदन :
व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
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तकनीकी सहयोग और सम्पादन :
श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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