सद्गुरु परम्परा
ब्रह्मा के पुत्र ,ज्ञान के स्वरूप, भक्ति मार्ग के आचार्य , देवर्षि नारद के विषय में
हमारे गुरुदेव स्वामी सत्यानान्दजी महाराज ने कहा है कि
ब्रह्मा के पुत्र ,ज्ञान के स्वरूप, भक्ति मार्ग के आचार्य , देवर्षि नारद के विषय में
हमारे गुरुदेव स्वामी सत्यानान्दजी महाराज ने कहा है कि
नारद हुआ गुणी शुभ ज्ञानी , भक्तराज मुनि उत्तम ध्यानी !!
भक्तिभाव में था बड़ भागी , उच्च कोटि का हरि अनुरागी !!
सुंदर स्वर में हरि गुण गाता, प्रेम पदों से राम रिझाता !!
गाता वह लेकर इकतारा, भरता भक्ति प्रेम रस भारा !!
उसके मधुर मनोहर गाने , होते प्रेम भगति से साने !!
उसके पद सुनता जन जोही, प्रेम मगन हो जाता सोही !!
नाम सुमहिमा उसने गाई , प्रेमभक्ति की विधि सिखलाई !!
नाम ध्वनी में लय हो जाता , ध्यान योग में अति सुख पाता !!
सनत कुमार से शिक्षा पाके , भगती सूत्र सरस गा गाके !!
नारद ने नर नारी तारे , पापी पामर पतित उभारे !!
नारद जी स्वयम तो "नारायण " नाम का संकीर्तन करते थे परन्तु उन्होंने अपने शिष्यों को उनकी अपनी निष्ठां ,रूचि एवं लक्ष्य के अनुसार प्रेम-भक्ति में मग्न होकर अपने अपने इष्ट विशेष से जुड़े रहने की प्रेरणा दी ! आपको याद होगा , ध्रुव को अपने पिता की गोद में बैठने की इच्छा थी ! नारद जी ने उन्हें "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" के महामंत्र से दीक्षित करके उन्हें "परम पिता" की गोद में बैठने का साधन बता दिया !पौराणिक सत्य यही है कि राजकुमार ध्रुव को ध्रुव पद दिलवा कर अजर अमर और अटल बनाने वाले उनके सद्गुरु नारद जी ही थे ! आप जानते ही हैं कि नारदजी के वरद शिष्य ध्रुव की तपश्चर्या से प्रसन्न होकर देवाधिदेव प्रभु को कहना पड़ा था कि "मै भक्तों के आधीन हूँ" !
प्रियजन अपने गुरुजन के संसर्ग में रह कर अब मेरा अपना मत भी यही है कि प्रह्लाद एवं ध्रुव जैसे नन्हे बालको को गुरुमन्त्र दे कर उनके समक्ष साक्षात् जगतनियंता को प्रगट करवा देने वाले तथा महाराज हिमांचल की दुलारी कन्या को गुरुमंत्र देकर उनसे तपश्चर्या करवा कर, उनके मनचाहे वर भोले शंकर से मिलवाने वाले , भक्ति परम्परा के प्रवर्तक देवर्षि नारद ही इस सृष्टि के सबसे पुरातन सद्गुरु हैं !
सतयुग,त्रेता द्वापर की बात तो बहुत दूर की है ! प्रियजन, अभी चौदहवीं शताब्दी की बात है ,महाराष्ट्र की साध्वी देवी जनाबाई को नारदजी ने स्वप्न में मन्त्र दीक्षा दी और साथ ही उनके पिताश्री को श्री स्वप्न में दर्शन देकर उनसे बताया कि उनकी पुत्री जनाबाई श्रीकृष्ण भक्ति में सराबोर बिट्ठल बिठोबा की प्रेम दीवानी है ! वह सामान्य बालिका नहीं है ! तुम इसे पंढरपुर के देवस्थान पहुचा आओ ! नन्ही जनाबाई के पिताश्री जब उन्हें लेकर वहाँ पहुंचे तो , मन्दिर में अपने प्रियतम प्रभु श्री कृष्ण की मनोहारी छवि का दर्शन करते ही जनाबाई ध्यान मग्न हो गयी ,भावावेश में अपनी सुध -बुध खो बैठी !
जनाबाई की भक्ति परिपूरित मनोस्थिति देखकर उनके पिताश्री ने अपनी सात वर्षीय लाडली बालिका को बिठोवा के अर्पित कर दिया ! नारद जी से प्राप्त गुरुमंत्र से जनाबाई ने पंढरपुर देवालय के बिठोवा कि आजीवन सेवा की और नामदेव जैसे महान संत का लालन पालन किया ! जनाबाई और उनके पिताश्री के स्वप्न सत्य हुए , है ! यह संत जनाबाई वही हैं, जो उपले थापते समय इतनी लगन से अपने इष्ट "विट्ठल" का नाम जप करती थीं कि उनके सूखे उपलों से भी बिट्ठल बिट्ठल की ध्वनि निकलती थी !
प्रियजन, श्रीरामशरणं के हम सब साधक भी सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा प्रतिपादित सतत नाम जप, नाम सिमरन एवं संगीतमय भजन संकीर्तन की साधना के द्वारा अपने इष्ट को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं ! गुरुदेव डोक्टर विश्वामित्र जी महराज ने इस पद्धति को प्रोत्साहित किया है ! इस बार भी महाराज जी ने सभी बैठकों में स्वयम संकीर्तन करके साधकों के हृदय अपार प्रेमाभक्ति से परिपूरित कर दिये !
सतयुग,त्रेता द्वापर की बात तो बहुत दूर की है ! प्रियजन, अभी चौदहवीं शताब्दी की बात है ,महाराष्ट्र की साध्वी देवी जनाबाई को नारदजी ने स्वप्न में मन्त्र दीक्षा दी और साथ ही उनके पिताश्री को श्री स्वप्न में दर्शन देकर उनसे बताया कि उनकी पुत्री जनाबाई श्रीकृष्ण भक्ति में सराबोर बिट्ठल बिठोबा की प्रेम दीवानी है ! वह सामान्य बालिका नहीं है ! तुम इसे पंढरपुर के देवस्थान पहुचा आओ ! नन्ही जनाबाई के पिताश्री जब उन्हें लेकर वहाँ पहुंचे तो , मन्दिर में अपने प्रियतम प्रभु श्री कृष्ण की मनोहारी छवि का दर्शन करते ही जनाबाई ध्यान मग्न हो गयी ,भावावेश में अपनी सुध -बुध खो बैठी !
जनाबाई की भक्ति परिपूरित मनोस्थिति देखकर उनके पिताश्री ने अपनी सात वर्षीय लाडली बालिका को बिठोवा के अर्पित कर दिया ! नारद जी से प्राप्त गुरुमंत्र से जनाबाई ने पंढरपुर देवालय के बिठोवा कि आजीवन सेवा की और नामदेव जैसे महान संत का लालन पालन किया ! जनाबाई और उनके पिताश्री के स्वप्न सत्य हुए , है ! यह संत जनाबाई वही हैं, जो उपले थापते समय इतनी लगन से अपने इष्ट "विट्ठल" का नाम जप करती थीं कि उनके सूखे उपलों से भी बिट्ठल बिट्ठल की ध्वनि निकलती थी !
प्रियजन, श्रीरामशरणं के हम सब साधक भी सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा प्रतिपादित सतत नाम जप, नाम सिमरन एवं संगीतमय भजन संकीर्तन की साधना के द्वारा अपने इष्ट को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं ! गुरुदेव डोक्टर विश्वामित्र जी महराज ने इस पद्धति को प्रोत्साहित किया है ! इस बार भी महाराज जी ने सभी बैठकों में स्वयम संकीर्तन करके साधकों के हृदय अपार प्रेमाभक्ति से परिपूरित कर दिये !
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निवेदक: व्ही . एन .श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती डॉक्टर कृष्ण भोला श्रीवास्तव
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2 टिप्पणियां:
काकाजी प्रणाम ...नारद जी के बारे में अभूतपूर्व जानकारी , तथा जनाबाई के बारे में जान कर हार्दिक प्रेरणा जगी , बश केवल इश्वर ही महान है !
bahut gyanvardhak post.aabhar bhola ji.
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