बुधवार, 22 मई 2013

स्वामी अखंडानंद जी सरस्वती


 गृहस्थसंत माननीय शिवदयाल जी पर 
 संतशिरोमणि स्वामी अखंडानंद जी सरस्वती 
की असीम करुणा
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अनंतश्री  स्वामी अखंडानंदजी

भारतीय वेदान्त-दर्शन  एवं  व्यावहारिक जीवन विज्ञान के मर्मज्ञ  अनंतश्री  स्वामी अखंडानंद जी बीसवीं सदी के  ऐसे सिद्ध संत थे जिनके  रोम रोम में पौराणिक धर्म ग्रंथों का तत्व रमा हुआ था ! उनकी वाणी में ऐसा  माधुर्य  था कि वे  इस अगम्य ज्ञान को अपनी रसमयी भाषा शैली द्वारा अति सहजता से साधारण से साधारण जिज्ञासु साधक को समझा देते थे !

प्रियजन , वैसे तो मुझको श्री महाराज जी के मंगलमय दर्शन शैशव एवं युवा अवस्था में कानपुर में कई बार हुए थे पर वे सब के सब दूर से दर्शन मात्र थे ! उनके अति निकट बैठ कर, उनसे एकांत में कुछ सुनने ,समझने तथा सीखने का सुअवसर मुझे मुंबई आने पर १९७०-७५  के दौरान हुआ ! यहाँ स्पष्ट कर दूँ ऐसा सौभाग्य मुझे अपने परम पूज्यनीय  "बाबू"- गृहस्थ संत माननीय श्री शिवदयाल जी की स्नेहिल कृपा से ही प्राप्त हुआ था !

आइये ! स्वामीजी की धूमिल सी याद जो १९७०-७१ तक मुझे थी वह केवल इतनी थी कि जब मैं बहुत छोटा था तब कानपुर के फूल बाग ,परमट घाट अथवा सरसैया घाट पर वर्ष में एक बार भागवत सप्ताह का आयोजन अवश्य होता था और इन समारोहों के प्रमुख प्रवचनकर्ता विद्वान संत श्री स्वामी अखंडानंद जी हुआ करते थे ! पढाई और खेल कूद में व्यस्त रहने के कारण मैं स्वयम तो ऎसे संतसमागमों में नहीं जाता था लेकिन मेरी प्यारी अम्मा उन्हें नहीं छोडती थीं ! वह यथासम्भव ऐसे सभी भागवत सप्ताहों में ,मोहल्ले की अपनी सहेलियों के साथ अवश्य शामिल होती थीं ! प्रवचन से लौटने पर अम्मा  हमे " व्यास गद्दी" पर आसीन - कथावाचक के विषय में बताती और कथा के सारतत्व से अवगत कराती थीं ! शुरू शुरू में केवल इतने से ही मेरा परिचय स्वामी अखंडानंद जी से हुआ था !

तत्पश्चात विश्व विद्यालय से शिक्षित दीक्षित होकर कानपुर में कार्यरत होने पर १९५२ - ६७  के बीच कभी कभी मुझे  हार्नेस फेक्टरी से घर लौटते हुए रास्ते में पड़ने वाले जयपुरिया हाउस में आयोजित ऐसे दो चार सत्संगों में शामिल होने का अवसर मिला था जहां मुझे अनंतश्री स्वामी अखंडानंद जी महाराज के साक्षात दर्शन हुए ! महाराजश्री वहाँ पर आयोजित भागवत सप्ताह में प्रभु की रहस्यमयी लीलाओं की कथा कह रहे थे !  मुझे महाराजश्री के  वचन सुन कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनके रोम रोम में रमा वैदिक ग्रन्थों का सारतत्व - "ज्ञानयोग , भक्ति एवं कर्म योग के समन्वित स्वरूप में "त्रिवेणी" के पतित पावन जल के सदृश्य उनके श्रीमुख से सतत प्रवाहित हो रहा है !

प्रियजन , वहाँ  त्रिवेणी के उस अमृततुल्य रस का पान  केवल साधारण श्रद्धालु श्रोता  ही नहीं अपितु मंच पर विराजित उस जमाने के अनेक जाने माने विचारक तथा सिद्ध संत भी कर रहे थे  ! मैंने देखा कि स समय महाराजश्री के साथ उस मंच पर आसीन  रहतीं  थीं देश की अनेकानेक  महानतम आध्यात्मिक विभूतियाँ जिनमे उल्लेखनीय हैं - ;परमपूजनीया श्रीश्री मा आनंदमयी ,वृन्दावन ,काशी,हरिद्वार,ऋषिकेश तथा बिठूर [ब्रह्मावृत] से  पधारे अन्य सिद्ध संतजन ! मंच महात्माओं से खचाखच भरा रहता था पर खेद है  कि अभी मुझे किसी अन्य संत का नाम याद नहीं आ रहा है ! 

 स्वामीअखंडानंद जी महाराज के श्रीचरणों के निकट बैठने का प्रथम सुअवसर  मुझे मुंबई में मिला ! १९७१ में  मैं मुम्बई में कार्यरत था ! ये वे दिन थे जब बड़े बड़े नगरों में प्रसिद्ध  फिल्मी "गायकों" की "नाइट्स" मनाईं जातीं थीं ! कहीं  "मुकेश नाईट" होती थी तो कहीं "मुहम्मद रफी नाईट",कहीं "गीता दत्त" नाईट और कहीं स्वर कोकिला "लता मंगेशकर जी की नाईट" होती थी  ! ऐसे माहौल में , भलीभांति यह जानते हुए कि उस फिल्मी चकाचौंध मे भजन संध्या जैसे प्रवचनात्मक संगीत कार्यक्रम का सफल होना असंभव है , कुछ  सत्संगी मित्रों के आग्रह पर  मैंने और मेरे बहनोई विजय  बहादुर चन्द्रा ने  [ जो उनदिनो भारत सरकार की फिलम्स डिवीजन में निदेशक थे ]   ,उन भडकीली फिल्मी नाइट्स" से टक्कर लेने के लिए मुम्बई में  पहली बार एक "संगीतमयी आध्यात्मिक संध्या" आयोजित करने का मन बनाया !

हमे इसकी प्रेरणा मिली थी गुरुदेव स्वामी सत्यानान्दजी महाराज के इस सन्देश से --

बृद्धि आस्तिक भाव की शुभ मंगल संचार 
भ्युदय  सद धर्म का राम नाम विस्तार !!

किस नाम का विस्तार ? किस "नाम " का प्रचार" ? ! प्रियजन  "अपने"  नाम का प्रचार अथवा विस्तार नहीं करना है ! स्वामी जी ने ,प्यारे प्रभु के राम नाम के प्रचार व विस्तार की बात कही है ! यह वही "नाम" है जिसके लिए तुलसी ने कहा था - 

राम नाम मणि  दीप धरु ,जीह  देहरी द्वार ,
तुलसी भीतर बाहरहु जो चाहसि उजियार !!  

निश्चित किया गया कि, आम जनता के लिए यह कार्यक्रम निःशुल्क होगा , प्रवेश हेतु कोई टिकट नहीं बेचे जायेंगे !  हम दोनों ने अपने निजी रिसोर्सेज से एक बडा सभागार बुक किया, म्यूजीशिय्न्स की तलाश की , उन्हें राजी किया तथा हमारे पूरे परिवार ने इस कार्यक्रम के आयोजन में हमारा सहयोग किया ! 

एकाध नामी अतिथि कलाकारों के अलावा सभी प्रमुख गायक हमारे परिवार के ही थे ! परिवार के बच्चों ने हाल की सजावट की थी ! इन बच्चों ने ही  कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं में प्रसाद स्वरूप वितरित करने के लिए "पारसी डेयरी" के स्वादिष्ट पेड़े तथा राम नाम अंकित बेल पत्र प्लास्टिक के लिफाफों में भरे थे ! वितरण भी बच्चों ने ही किया ! प्रियजन मुम्बई में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी सार्वजनिक निःशुल्क कार्यक्रम में प्रसाद भी वितरित हुआ ! 

गायकों में मंच पर थे स्वनाम धन्य सर्वश्री पंडित गोविन्द जी (जयपुर वाले) - जिन्होंने "जनम तेरा बातों ही बीत गयो " गाया ,संगीत निदेशक - सुरेन्द्र कोहली जी जिन्होंने गाया था " राम से बड़ा राम का नाम" , सुप्रसिद्ध प्ले बेक गायिका श्रीमती वाणी जयराम तथा  इन अतिथि कलाकारों के अलावा स्वयम मैं , मेरी छोटी बहन श्रीमती मधु चंद्र तथा मेरे भतीजे कीर्ति अनुराग थे ! सूत्रधारक  - बहनोई चन्द्रा साहेब थे ! लाइव साउंड रेकोर्डिंग बेटी श्रीदेवी [ १२ वर्षीय] और बड़े पुत्र राम जी  [१० वर्षीय] कर रहे थे ! 

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प्रियजन , आप ठीक ही सोच रहे हैं कि- 

अपने मुंह मियामिटठू "भोला" तब तक नहीं रुकेंगे जब तक कोई उन्हें अंकुश न चुभाएगा !, लेकिन विश्वास करें कि उनका उपरोक्त कथन अक्षरशः सत्य और पूर्णतः प्रासंगिक है ! क्यूँ और कैसे ?  

महापुरुषों का कथन है कि सर्व मंगल हेतु निःस्वार्थ भावना से संकल्पित कोई कार्य कभी  निष्फल नहीं होता ! ऐसे कर्म एवं कर्ता  पर गुरुजनों के आशीर्वाद तथा उनकी अहेतुकी कृपा सतत बरसती  रहती है ! हमारे कार्यक्रम में भी कुछ ऐसा ही हुआ ! 

अनंतश्री स्वामी अखंडानंद जी महाराज ने उस कार्यक्रम के दौरान [हमारी जानकारी के बाहर] हमारे पूरे परिवार को अपनी कृपामयी "दृष्टिदीक्षा" से नवाजा ! उन्होंने लगातार दो घंटों तक सभागार में उपस्थित रह कर वहाँ के वातावरण को परमानंद रंजित  एक अनूठी  दिव्यता से भर दिया ! हम धन्य हुए उन्होंने हमारी भक्तिमयी विनती "प्यारे प्रभु"  के दरबार तक पहुचा दी ! उसका विस्तृत विवरण अगले अंक में भेजने का प्रयास करूँगा ! 

आत्म कथा का उपरोक्त अंश मैंने अपने सभी पाठकों स्वजनों तथा परिजनों के हितार्थ सुनाया ! इस आत्म कथा द्वारा मैं आपको यह अवगत करा रहा हूँ कि 
सत्य-प्रेम एवं करुणा मय "धर्म पथ" 
पर चल कर कैसे यह नाचीज़ [निवेदक]  सन.१९२९ से आज तक की,
 दिनों दिन बढ़तीं अश्लील एवं भ्रष्ट परिस्थियों में सिर उठा कर जी सका है !
 हमारी भविष्य की पीढियां भी उस धर्मपथ पर चलें ऎसी हमारी मनोकामना है ! 


पूज्यनीय "बाबू"की शुभेच्छा से मुझे, कब और कैसे ,
स्वामी अखंडानंद जी महाराज के साथ 
आत्मीय सम्बन्ध बनाने का सुअवसर मिला उसका विवरण भी आगे दूँगा, 

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निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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