अवध ईश वे धनुष धरे हैं , ये बृज माखन चोर
राम कृष्ण कहिये उठि भोर
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राम कृष्ण कहिये उठि भोर
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प्रियजन ! गृहस्थ संत माननीय शिवदयाल जी की कथा अभी समाप्त नहीं हुई है!
अगला अंक तैयार हो रहा है
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इस बीच इस शिथिल शरीर से आच्छादित मेरे अदृश्य चैतन्य मन में सहसा कुछ बहुत पुराने "भजनों का ज्वार" सा उमड आया है और मैं उन्हें अनायास ही गुनगुनाने भी लगा हूँ ! १९५०-६० की बनाई हुईं धुनों में इन भजनों का एक एक शब्द मेरे ८४ वर्षीय थके मांदे कंठ से स्वतः प्रवाहित हो रहे हैं !
( आप तो जानते ही हैं कि अब मेरी यह दशा है कि मैं कभी कभी अपने नाती पोतों के नाम तक भूल जाता हूँ ! मुझे इस हालत में ,इन शब्दों का यकायक याद आना अवश्य ही "मेरे प्यारे प्रभु" की इस इच्छा का प्रतीक है कि "उठो प्यारे गाओ प्यारे गाओ" )
उन अनेक भजनों में से सबसे पुराना , छोटी बहन माधुरी के रेडियो प्रोग्राम के लिए बनाई धुन में प्रियजन -मेरे प्यारे प्रभु के प्रतिरूप आप को सुनाता हूँ , जानता हूँ , आपके ज़रिये "मेरा प्यारा" भी सुन लेगा : मेरा स्वार्थ बस इतना है ! यह भजन "उन्हें" ही सुना रहा हूँ :
राम कृष्ण कहिये उठि भोर
अवध ईश वे धनुष धरे हैं , ये बृज माखन चोर
राम कृष्ण कहिये उठि भोर
इनके छत्र चंवर सिंघासन , भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण जोर
उनके लकुट मुकुट पीताम्बर नित गैयन संग नंद किशोर
राम कृष्ण कहिये उठि भोर
इन सागर में सिला तराई ,इन राख्यो गिरि नख की कोर ,
नंददास प्रभु सब तज भजिये जैसे निरखत चन्द्र चकोर ,
राम कृष्ण कहिये उठि भोर
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे
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प्रियजन
प्यारे प्रभु के आदेश से ,
उनके ही शब्द ,उनकी ही वाणी
उनका दासानुदास भोला
उनके श्री चरणों पर
पत्र पुष्प सरिस समर्पित कर रहा है!
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोगिनी: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति . .बधाई
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