गुरुवार, 13 मार्च 2014

हम रिटायर्ड लोग , जीवन कैसे जियें ? (१)


सेवा निवृत्ति के उपरान्त 
जीवन कैसे जियें ?
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जीवन के ८५ वें रंगींन वर्ष में 
बीते दिनों के रोजनामचे के पृष्ठ पलटने बैठा हूँ ! 

  ६०  वर्ष की अवस्था - (स्पष्टतः सन १९८९ तक) ,काजल की कोठरी के समान ,जैसी भी है वैसी मूलतः  ,
 तिरंगिनी अथवा केसरिया  केन्द्रीय सरकारों 
 तथा 
उनके समान ही कजरारे चरित्र वालीं ,
प्रातीय सरकारो तथा उनके द्वारा संचालित प्रतिष्ठानों से 
सेवा निवृत्त होकर , 
मैं ,
पिछले २४ - २५  वर्ष कैसे जिया ? 

सुना रहा हूँ :
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यह समझना और कहना ('क्लेम करना') कि "मैं" रिटायरमेंट के बाद एक आदर्श एवं अनुकरणीय जीवन जी रहा हूँ ,सर्वथा अनुचित  तो है ही , इसे समझदार व्यक्तियों द्वारा अहंकार प्रेरित ही कहा जाएगा  ! सो, जान बूझ कर यह अपराध तो मैं करूँगा नहीं परन्तु इतना अवश्य कहूँगा कि -जो भी हो ,आप माने या न माने "मेरे 'प्यारे प्रभु' मुझे बहुत प्यार करते हैं, और हाँ इस बात का 'अभिमान' मुझे अवश्य है !

अन्य प्रेमी भक्त जनों से प्रार्थना है  "बुरा न  माने ! मैंने कब कहा कि "वह" केवल मुझे ही प्यार करते हैं ? प्रियवर "वह" तो सब को ही प्यार करते हैं और निश्चय ही "वह" आपको , मुझसे कहीं अधिक प्यार करते होंगे ! "उनपर" अटूट विश्वास रखने वाले , "उनको" पूर्णतः समर्पित , सब प्रकार "उनके" शरणागतजन सतत ऎसी प्रीति का अनुभव करते हैं !

बात करनी थी रिटायरमेंट के बाद एक आदर्श जीवन जीने के विषय में और एक पागल प्रेमी की नाई मैं छेड़ बैठा ,'अपनी -"उनकी" - प्रेम  - कहानी' ! क्या करूं स्वजनों ,अब् उसके सिवाय और कुछ याद ही नहीं रहता !

सच पूछिए तो  यदि रिटायरमेंट के बाद के मेरेजीवन का ढंग किसी को आदर्श लगता है तो इसका श्रेय केवल  मेरे प्रति मेरे 'प्यारे प्रभु' की इस अटूट प्रीति "  को ही है ! प्रियजन मैंने तो अपनी ओर से इसके लिए कोई विशेष प्रयास किया  ही नही ! मेरे "वह", (चाहे मैंने माँगा नहीं माँगा) "वो" अनवरत मुझ पर अपनी अहेतुकी कृपा की अमृत वर्षा करते रहे और रिटायरमेंट के बाद का मेरा जीवन संवारता ही गया !  

मानव हूँ देवता नहीं अस्तु जीवन में सजा पाने योग्य  गलतियाँ भी मैंने की ही होंगी  ,लेकिन मेरे "उनकी" उदारता तो देखिये "वो सर्वज्ञ" न्याय मूर्ति (चीफ जस्टिस ऑफ द सुपर सुप्रीम कोर्ट) सब जानते बूझते  अनिभिग्य बने रहे !मुझे , सजा दी भी तो ऎसी जिसे झेलने में मुझे कष्ट कम आनन्द अधिक प्राप्त हुआ ! मुझे  "उनकी" दी हुई सजा में मज़ा ही मज़ा आया  !


मिर्ज़ा गालिब साहिब ने कदाचित ऐसे अनुभवों के   बाद
 ही फरमाया होगा :

रहमत पे "उनकी" मेरे गुनाहों को नाज़ है 
बंदा हूँ जानता हूँ "वो" बंदा नवाज़ है !
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एकबार फिर याद दिला दूँ दोस्तों कि 
मेरे "वो" ,
जो मुझे सबसे अधिक प्यार करते हैं , 
"मेंरे  प्यारे प्रभु" ही हैं !
 अवश्य ही ग़ालिब साहेब के "वो" भी "वही
कृपा निधान ,सर्व शक्तिमान, सर्वज्ञ 
परमेश्वर ही थे !
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बार बार "मेरे प्यारे प्रभु - मेरे प्यारे प्रभु" की बात छेड़ कर आपको 
क्यूँ उत्तेजित करता रहता हूँ ?  - 
कदाचित किसी आतंरिक प्रेरणा से , 
जब भी इसका कारण मुझे समझ में आ जायेगा आपको अवश्य बताउंगा !

हाँ तो अभी केवल यह समझ में आया है कि मैं एक अति साधारण मानव हूँ अस्तु एक साधारण स्वार्थी व्यक्ति की भाँति मैं केवल उन व्यक्तियों , वस्तुओं और परिस्थितियों को ही प्यार करता  हूँ जिनके द्वारा मेरे  निजी स्वार्थ की सिद्धि होती है !

अब् देखिये मेरे जीवन में , इतना उदार वह कौन "दाता" है जो मेरे द्वारा बिना मांगे ही मेरी सारी आवश्य्क्ताओं (ज़रूरियात)  की पूर्ति कर देता है और  इस पे तुर्रा ये कि मुझे  अनमोल उपहार  देकर "वह"  मुझसे उसका कोई मोल;- (उसकी कीमत) भी नहीं माँगता !  


गोस्वामी तुलसीदास ने उस परम कृपालु सत्ता को पहचान कर जो कहा  -
आपको गाकर सुना रहा हूँ 

ऐसो को उदार जग माही !!
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर  "राम" सरिस कोउ नाही !!



जो गति जोग  बिराग जतन कर नहि पावत मुनि ज्ञानी ! 
सो गति देत गीध सबरी कहं , प्रभु न बहुत जिय जानी  !!


ऐसो को उदार जग माही !!


जो सम्पति दस सीस आरप करि रावण शिव पहँ लीनी !
सों सम्पदा विभीषन कहन अति सकुच सहित हरि दीनी !!
ऐसो को उदार जग माही !!

तुलसिदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि  मन मेरो, 
तो भजु राम काम सब पूरन करहिं कृपा निधि तेरो !!


ऐसो को उदार जग माहीं  !!
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प्रियजन मेरा दृढ विश्वास है कि प्यारे  प्रभु की अहेतुकी उदारता का पात्र केवल अकेला मैं ही नहीं हूँ बल्कि वे सब रिटायर्ड सरकारी अधिकारी भी हैं जिन्होंने  नेकनाम और बदनाम सभी सरकारी  विभागों में सेवाओं के दौरान  पूरी सच्चाई से अपनी ड्यूटी  बजाई है जिन्होंने अनैतिक नेताओं तथा उच्चाधिकारियों की संतुष्टि हेतु मजबूरन गलत काम नहीं किये और हुक्मुदीली करने पर हँस हँस कर ऎसी सजाएं झेलीं जैसे असामयिक एवं कष्टप्रद समझी जाने वाली जगहों पर पोस्टिंग ! ऐसे सभी व्यक्तियों को वैसा ही मज़ा आया होगा जैसा मुझे आया और अभी भी आ रहा है !!


 नेताओं और उच्चाधिकारियों की 'मार' झेल झेल कर , 
आपका यह बुज़ुर्ग स्वजन सरकारी   
काजल की कोठरी की कालिख से अछूता ,बेदाग़ निकल आया
र आज ८५ वर्ष की अवस्था में भी सम्मान सहित  
रिटायर मेंट के दिन जी रहा है    
क्यूँ और कैसे ? 
क्रमशः पढ़िए 
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 निवेदक : व्ही  एन श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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