गृहस्थ संत - हमारे "बाबू" - माननीय शिवदयाल जी
गतांक से आगे
"बाबू" के जीवन पर उनके दीक्षा गुरु से प्राप्त मंत्र के जाप से ,श्रीजपुजी साहिब के नित्य पाठ से , उनकी माँ के "पय" में मिश्रित सुमधुर " रामचरितमानस" के रसास्वादन से , तथा "श्रीमद भगवद्गीता" एवं "श्रीअमृतवाणी जी" आदि सद्ग्रन्थों के दैनिक पारायण से और भारत के प्रख्यात "आध्यात्मिक-विज्ञानी" सर्वश्री स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानंद ,श्री अरविन्द आदि धर्मगुरुओं के जीवन तथा विचारों के पठन-पाठन का अनिर्वचनीय प्रभाव पड़ा !
इसके अतिरिक्त "बाबू" आजीवन अपने समकालीन अनेक महान संतों से निजी स्तर पर मिलते रहे ,उनसे पत्र-व्यवहार करते रहे , उनसे मार्ग दर्शन प्राप्त करते रहे ! इस प्रकार बाबू को उन सभी महापुरुषों के सान्निध्य से ,उनकी दिव्य अनुभूतियों का सार ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा ! आगे, मैं वैसे कुछ दिव्यात्माओं के विषय में जिनके सुमधुर सत्संग ने बाबू का जीवन भी दिव्यता से आलोकित किया प्रकाश डालने का प्रयास करूँगा !
प्रियजन सर्वप्रथम मैं आपको पूज्य बाबू और महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानन्द जी के पारस्परिक अन्तरंग स्नेह से अवगत कराना चाहता हूँ ! १९६० के दशक में दोनों का परिचय आध्यात्मिक -साधना विषयक विचारों के आदान-प्रदान से हुआ ! पूज्यपाद स्वामीजी ने बाबू में सर्वांगीण विकसित व्यक्तित्व की झलक देखी , मानवीय गुणों से संपन्न युग पुरुष के रूप में उन्हें आंका ,उनकी आध्यात्मिक साधना ,कर्मठता ,सरलता नियमितता , विनम्रता ,ज्ञान एवं विद्वता को सराहा !
निवर्तमान शंकराचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंदजी महाराज के साथ दिवंगत
गृहस्थ संत माननीय श्री शिवदयाल जी
"बाबू" के देहावसान से पूर्व मार्च २००३ में जबलपुर में उनके अभिनन्दन हेतु आयोजित एक जन सभा में स्वामी जी ने यह सन्देश दिया था कि " जबलपुर की आधी से अधिक जनता को आध्यात्म की तरफ प्रेरित माननीय जस्टिस शिवदयाल जी ने किया है और आप सभी जो प्रातः श्री रामचरितमानस का गायन रेडियो पर सुनते हैं उसको प्रारम्भ करने का पूरा श्रेय भी माननीय शिवदयाल जी को ही है ! उन्होंने ही A.I.R भोपाल से इसे शुरू करवाया था और आज उसका प्रसारण पूरे देश में हो रहा है ! "
बाबू के ब्रह्मलीन होने पर महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंदजी ने अपनी हृदयांजलि अर्पित करते हुए कहा :"उन जैसे सद्पुरुष कभी कभी ही धरती पर आते हैं !
चलिए अब उन अन्य दिव्यात्माओं की चर्चा हो जाए जिनका स्नेहिल आशीर्वाद और मार्गदर्शन बाबू को प्राप्त हुआ !
१. उनके दीक्षागुरु ,नानकपंथी बाबा नारायण रामजी [ गुरुद्वारा रानोपाली अयोध्याजी]
बाबू के दीक्षा गुरु ने जो गुरुमंत्र उन्हें सात वर्ष की अवस्था में दिया उसका जाप वह आजीवन अति निष्ठा पूर्वक करते रहे ! केवल इतना ही नहीं बाबू ने उस मंत्र को परिवार की सामूहिक प्रार्थना में सर्वोपरि स्थान दिया ! 'जपु जी साहिब' का पाठ करने से उस ग्रन्थ के प्रारम्भ में आया यह "बीज मंत्र" समस्त परिवार को भी कंठस्थ हो गया !
"एक ओमकार सतनाम करतापुरुख, निरभउनिरवैर अकालमूरती अजूनी सैभं गुरुप्रसाद"
यह था बाबू की आध्यात्मिक यात्रा का पहला सोपान ! धर्म का वास्तविक शाश्वत स्वरूप दर्शाता ज्ञान का यह वह अलौकिक प्रकाशपुंज था जिसने उस छोटी अवस्था में ही उनको "परम सत्य" का दर्शन करवा दिया !
२. तत्पश्चात १९४८ में "बाबू" को मुरार ग्वालियर में , डॉ देवेन्द्र सिंह बेरीजी के निवास स्थान पर प्रातःस्मरणीय ब्रह्मलीन श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज [श्री रामशरणम ] के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ और १९५२ में स्वामीजी महाराज के कर कमलों से अधिष्ठान भी मिला, जिसके सन्मुख बाबू विधिपूर्वक आजीवन ध्यान -जाप करते रहे ! पंचरात्री -के साधना सत्संग के अनुरूप वे ब्रह्म मुहूर्त में जाप-ध्यान करते फिर पारिवार के साथ प्रार्थना और अमृतवाणी पाठ करते ,प्रातराश में "दूध दलिया" लेते ,भोजन से पूर्व की और बाद की प्रार्थना करते तथा यथासम्भव परिवार के साथ ही रात्रि का भोजन करते और उसके बाद हास्य परिहास युक्त एक "विनोद सभा" करते ! उनकी यह दिनचर्या आजीवन बनी रही !
पूज्यपाद स्वामीजी महाराज बाबू की साधना तथा उनकी आध्यात्मिक उपलब्धियों से भली भाँति परिचित थे और उन्हें समुचित स्नेह व आदर देते थे ! [ स्पष्ट करदूं कि तब बाबू हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नहीं थे ! तब वह ` पारिवारिक जिम्मेदारियों को लिए हुए एडवोकेट थे ,जब जज हुए तो पंचरात्री सत्संग में उनके लिए अमृतवाणी के समय खुला सत्संग महाराजजी ने प्रारम्भ करा दिया था !
३ ऋषिकेश सदैव से ही , संत-महात्माओं के आश्रमों और योग केन्द्रों का विश्व प्रसिद्ध स्थल रहा है ! गंगाजी के पावन तट पर , सिद्ध -महापुरुषों के समागम से लाभान्वित होने के लिए व आध्यात्मिक शिविर की भांति साधनामय जीवन जीने के लिए बाबू परिवार सहित ग्रीष्मावकाश में वहाँ जाते रहते थे !
ऋषिकेश में गंगा के उस पार स्थित Divine Life Society, The Yoga Vedant Forest University तथा शिवानंद आश्रम ऋषिकेश के प्रणेता एवं संस्थापक - श्री श्री स्वामी शिवानन्दजी महाराज ,"बाबू" से अतिशय स्नेह करते थे और उन्हें "संन्यासी" कह कर संबोधित करते थे !
बाबू को श्रद्धांजिली देते हुए जस्टिस उषा कान्त वर्मा जी ने उनके संस्मरण में लिखा है कि उन्होंने स्वयम स्वामी जी को ,"बाबू" को "सन्यासी" कहकर संबोधित करते हुए देखा है ! वह लिखते हैं कि - " I recall having met H.H.Sri Swami Sivanand --on the bank of Ganga --the great saint noticing Babu instantly greeted him with a sparkle of joy , loudly acclaiming "Here, is the SANYASI JUDGE "
विवाह से पूर्व कृष्णा जी स्वामी जी का आशीर्वाद प्राप्त कर चुकीं थीं ! स्वामी जी ने निज हस्ताक्षर के साथ यह लिखकर "Sm. Krushnaa, May Lord bless you " Sivananda , अपनी निजी भक्ति रचनाओं की पुस्तक INSPIRING SONGS and KIRTANS - Sri Swami Sivananda भेंट की थी ! उनके आशीर्वाद स्वरूप दी गयी इस पुस्तक से वेदांत ,उपनिषद ,संक्षिप्त रामायण ,को कीर्तन के रूप में गाया और समझा जा सकता है ! इस पुस्तक का एक पद , "पढ़ो पोथी में राम " बाबू को अतिशय प्रिय था ; बाबू ने इसे परिवार के बच्चे बच्चे को सिखाया और दैनिक प्रार्थना में वह इसे किसी न किसी से सुनते ही थे !
स्वामी शिवानंद जी महाराज के देहावसान के बाद भी आश्रम के अन्य संतजन बाबू को उतना ही आदर देते रहे ! स्वामीजी की शिष्या साध्वी स्वामी शान्तानंदा जी भी बाबू का बहुत सम्मान करतीं थीं ! हम दोनों [भोला कृष्णा] जब एक बार बेंगलूर के आश्रम में साध्वी जी से मिले तब वह अधिक समय तक 'बाबू' के उच्च आध्यात्मिक स्थिति के विषय में ही चर्चा करती रहीं ! उन्होंने हम दोनों को भी अपना अति स्नेहिल आशीर्वाद प्रदान किया !
४ . ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के संस्थापक पूज्य श्री स्वामी शुकदेवानंद जी , स्वामी भजनानंदजी , स्वामी प्रकाशानंद जी , स्वामी धर्मानान्द जी, स्वामी सदानंद जी ,तथा स्वामी चिदानंद "मुनि" जी महाराज आदि महात्माओं के साथ बाबू का अति आत्मीय - घनिष्ठ सम्बन्ध था ! इन संत महात्माओं के सत्संग ने बाबू के समग्र जीवन को संतत्व से परिपूरित कर दिया ! परमार्थ निकेतन की प्रातः कालीन प्रार्थना की छाप बाबू कि पारिवारिक प्रार्थनाओं में प्रचुरता से झलकती है ! वहाँ से प्राप्त उपदेशों को बाबू स्वयम तो अपने आचरण में लाते ही रहे ; उसके साथ साथ ही वह अपने समग्र परिवार को भी उन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते रहे !
परिवार के सदस्यों को अनुशासित करने और उनके जीवन में ईश्वर के प्रति निष्ठां तथा श्रद्धा का संस्कार आरोपित करने के उद्देश्य से बाबू ने यहाँ के ही संत श्री स्वामी एकरसानंद जी सरस्वती के निम्नांकित १० सूत्रीय उपदेशों को राम परिवार की दैनिक प्रार्थना में शामिल कर लिया और उसे परिवार के छोटे से छोटे सदस्य को कंठस्थ करवा दिया !
पहला - संसार को स्वप्नवत जानो
दूसरा - अति हिम्मत रखो
तीसरा - अखंड प्रफुल्लित रहो , दुख में भी
चौथा - परमात्मा का स्मरण करो , जितना बन सके
पांचवा - किसी को दुःख मत दो , बने तो सुख दो
छठा - सभी पर अति प्रेम रखो
सातवाँ - नूतन बालवत स्वभाव रखो
आठवाँ - मर्यादानुसार चलो
नवां - अखंड पुरुषार्थ करो ,गंगा प्रवाह वत ; आलसी मत बनो
दसवां - जिसमे तुमको नीचा देखना पड़े , ऐसा काम मत करो
परमार्थ निकेतन के वर्तमान अध्यक्ष श्रद्धेय श्री स्वामी चिदानंद जी "मुनि" महाराज , हमारे पूज्यनीय "बाबू" को "बाबूजी" नाम से पुकारते थे ! वह बाबू के व्यक्तित्व में "श्री राम के परम भक्त हनूमान" के स्वरूप का दर्शन करते थे ! श्रद्धेय मुनि जी बाबू के जीवन को , भक्ति, कर्म एवं ज्ञान योग का परम पवित्र संगम मानते थे !
बाबू के दिवंगत होने पर उनकी दिव्य स्मृति को अभिनंदित करते हुए मुनि जी महाराज ने उनकी दिव्यात्मा को प्रणाम करते हुए कहा -
"उनका प्रत्येक कर्म परमार्थ के लिए और अंतकरण की शुद्धि के लिए था"
"उनका जीवन श्री राम की भक्ति में श्री राम मय हो गया" तथा
"एक ज्योति जो जीवन पर्यन्त
तेज और प्रकाश बिखेरती रही
आज बुझ कर भी सुगंध दे रही है"
[शेष अगले आलेख में]
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निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव"भोला"
सहयोगिनी: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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4 टिप्पणियां:
MANNIY SHIVDAYAL JI SE ITNEE AATMIYATA SE MILVANE AUR DAS SOOTRIY UPDESH YAHAN PRASTUT KARNE KE LIYE AABHAR .
जय श्रीराम! रामनवमी की शुभकामनाएं!
स्नेहमयी शालिनी जी , प्रियवर अनुराग जी , धन्यवाद !आप को भी श्री राम जनम की हार्दिक बधाई ! श्री राम कृपा आप सब पर सदा सर्वदा बनी रही !
धन्यवाद शालिनी बेटा ! स्वदेश की दुर्दशा दर्शाते आपके आलेख पढ़ कर तथा भारतीय समाचार चेनलों पर वहाँ की वास्तविक स्थिति से अवगत हो कर मन बहुत दुखी होता है ! मजबूर हो जाता हूँ यह सोचने को कि काश इन गुनाहगारों ने स्वामी एकरसानंद जी का केवल एक [हाँ केवल एक] अंतिम [दसवां] सूत्र - "जिसमे तुम्हे नीचा देखना पड़े , ऐसा काम न करो " , अपने 'मा-बाप' से सुना होता , उनसे सीखा होता !
दैनिक प्रार्थना में , हमारे आदरणीय 'बाबू' यह सूत्र परिवार के सबसे छोटे बच्चे से बुलवाते थे ! छोटा बच्चा तुतुला कर यह सूत्र बोलता था और सब बड़े [जिनमे चीफ जस्टिस महोदय स्वयम भी होते थे] उसको दुहराते थे ! बच्चा अपना गुरुत्व महसूस करता था ,अमिट हो जाता था यह सूत्र उसके अन्तःकरण पर जीवन भर के लिए !
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