शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

श्री गुरुवे नमः # ४ ० २ -


गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर बधाई हो बधाई
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परम गुरु जय जय राम
स्वीकारो सबके प्रणाम
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जुलाई १५ , २०११
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गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले
जो न जानता हो निज को उस को अपनी पहचान मिले
गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले

साधक ने गुरु की करुना से अपना सत्य रूप पहचाना
वह तन नहीं, एक दिन जिसको होगा मिट्टी में मिल जाना
अजर अमर वो "ईश अंश"है ,उसको "परमधाम" ही जाना
भीतर झांक तनिक जो देखे निज घट में श्री राम मिलें

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले

समझा अपना सत्य रूप जो, औरों को भी जान गया
केवल खुद को नहीं ,व्यक्ति वह, दुनिया को पहचान गया
जो मैं हूँ वह ही सब जन हैं ,परम सत्य यह मान गया
ऐसे साधक को सृष्टि के कण कण में भगवान मिले

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले

धन्यभाग वह साधक होता सदगुरु जिसकी ओर निहारे
केवल उसको नही परमगुरु उसके सारे परिजन तारे
गीधराज शबरी ऋषि पत्नी को जैसे श्री राम उद्धारे
प्रेमी साधक को वैसे ही सद्गुरु में श्री राम मिले

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले

उसको जप तप योग न करना घर ब्यापार नही है तजना
कर्म किये जाना है उसको फल की चिंता कभी न करना
गुरु चिंता करता है उसकी ,निर्भय हो कर उसको रहना
ऐसे जन को उसके कर्मो के सुन्दर परिणाम मिले

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले

जान गया है अब वह यह सच 'माया आनी जानी है'
धन दौलत की चाह न उसको 'गुरु करुना' ही पानी है
दर दर भटक भटक कर उसको झोली ना फैलानी है
ऐसे जन को बिन मांगे ही सकल सुखों की खान मिले

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले

"भोला"














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चित्रों में हमारे गुरुजन , ऊपर से नीचे:

१. जन्मदात्री माँ , जिनकी गोद में "प्यारे प्रभु" से प्रथम परिचय हुआ !

२. दिवंगत गृहस्थ संत, धर्म पत्नी कृष्णा जी के बड़े भाई
जिनके घरेलू दैनिक सत्संग से हमारा आध्यात्मिकता से परिचय हुआ !

३. दिवंगत श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ,मेरे अध्यात्मिक दीक्षा गुरु
जिनसे प्राप्त "नाम" ने मुझे वैसा बनाया जैसा मैं आपको आज नजर आता हूँ !

४. दिवंगत श्री प्रेमजी महाराज , स्वामी जी के बाद,
१९६१ से १९९१ तक श्री राम शरणम के आध्यात्मिक अध्यक्ष !

५. (दिवंगता) श्री श्री माँ आनंदमयी जिन्होंने १९७४ में अनायास ही, मेरी भजन सेवा
स्वीकार कर अपनी प्रेममयी दृष्टि दीक्षा से मुझे अहंकार शून्य कर दिया!
तथा मेरा अंतःकरण अखंड आनंद से भर दिया !

६. श्री डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज ,
श्री राम शरणं दिल्ली के वर्तमान आध्यात्मिक अध्यक्ष ,जिनकी दिव्य प्रेममयी
प्रेरणा ने मुझे भजन रचने तथा गाते रहने का सामर्थ्य प्रदान किया !

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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती श्रीदेवी कुमार (चेन्नई)
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2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

जान गया है अब वह यह सच 'माया आनी जानी है'
धन दौलत की चाह न उसको 'गुरु करुना' ही पानी है
दर दर भटक भटक कर उसको झोली ना फैलानी है
ऐसे जन को बिन मांगे ही सकल सुखों की खान मिले

गुरु की कृपा दृष्टि हो जिस पर उसको अंतर्ज्ञान मिले
बहुत सुन्दर प्रेरणादायक प्रस्तुति.आभार भोला जी.

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रेरणादायक प्रस्तुति|गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई हो|