गतांक के आगे
हमारा मानव-जन्म हमारी इच्छा से नहीं हुआ ,"उनकी "कृपा से हुआ है . यह हम सब पर प्रभु की पहली अहैतुकी कृपा है. अब ये प्रश्न उठते हैं कि हमारा जन्म कहाँ हुआ?, कैसे परिवार में हुआ? संत-असंत, धनाढ्य -निर्धन, विद्वान-निरक्षर ? क्या ये सब हमने निश्चित किया ? नहीं, ये सब भी "उन्ही"की कृपा से हुआ.
अब ज़रा सोंचें क्या कभी हमने "प्रभु"को उनकी इन महती कृपा के लिए धन्यवाद दिया?
नहीं, हम तो इन बातोको कभी याद भी नहीं करते.
मेरा दृढ विशवास है की यदि हम दिवस में एक बार भी प्रभु की अनंत कृपाओं में से एक दो को ही याद कर लें ओर उनके लिए उन्हें हार्दिक धन्यवाद दें तो केवल "सिमरन" मात्र से ही हमारी उस दिन की उपासना संपन्न हो जायेगी. हमें इस कर्म का यथोचित फल प्रभु यथासमय देगा ही.
क्रमशः
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