शनिवार, 3 अप्रैल 2010

भजन - लंक में हनुमत त्राहि मचायी

लंक में हनुमत त्राहि मचायी

पहले तो बाटिका उजारी
मारे रक्षक भारी भारी
जाय चढ़ा फिर कनक अटारी
और फूंक दी लंका सारी
सब जन चले परायी ।
लंक में हनुमत त्राहि मचायी

राम दूत बानर ने भैया, लंका दयी जरायी
लंक में हनुमत त्राहि मचायी


हाथ जोड़ कर कहत विभीषण
भाई ठान न तपसिन सों रन
सीता दे लौटायी ।
लंक में हनुमत त्राहि मचायी

कहत मंदोदरि सुनु प्रिय स्वामी
शंकर भगत परम विग्यानी
मति तोरी भरमायी ।
लंक में हनुमत त्राहि मचायी

अन्त काल जब आवत नेरे
मति भ्रम जात कुसंकट प्रेरे
सोइ गति रावन पायी ।
लंक में हनुमत त्राहि मचायी
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अपने पहले डबल एल पी अल्बम श्री राम गीत गुन्जन के लिये १९७३ में लिखा .

यह भजन 'अंतर्ध्वनि' पुस्तिका में हनुमान भजनों के अंतर्गत संकलित है .

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