ईश्वर बिना मांगे ही हमे वह सब देता रहता है जिसकी हमे आवश्यकता होती है. अक्सर प्रार्थना में की गयी हमारी मांगे प्रभु द्वारा पूर्व निर्धारित हमारी आवश्यकताओं से विलग होंती है. जैसे कोई प्रार्थना करता है की उसे एक लाख की लोटरी मिल जाये और प्रार्थना के फल स्वरूप वह दस लाख जीत जाता है अथवा केवल दस हजार ही जीतता है. प्रार्थी अति प्रसन्न होता है अधिक जीत कर और दुखी हो जाता है कम पाकर. स्वाभाविक है ऐसा होना.
अब आप मेरा निजी अनुभव सुने.. आज लगभग ६३ वर्ष बाद उन घटनाओं का वर्णन कर रहा हू, केवल एक उद्देश से कि, आप सब मेरे प्रियजन मेरे उपरोक्त कथन को सत्य मान कर, अति तल्लीनता और लगन के साथ प्रार्थना करे इस अडिग विश्वास के साथ कि परम कृपालु प्रभु हमारी प्रार्थना अनसुनी नही करेगा. उतना ही देगा हमारे कल्याण के लिए, जितने की हमे आवश्यकता है.
अस्तु हम मन वांछित फल न मिलने से दुखी न हो. और अधिक पा जाने पर अपना संतुलन न खोएं . वह पुरानी कहावत - "होइ ही सोई जो राम रची राखा" और वह उर्दू की कहावत जो हमारे परिवारों में बहुत प्रचिलित है "वही होता है जो मंज़ूरे खुदा होता है" सदा याद रखे.
निजी अनुभव अगले ब्लॉग में लिखूंगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें