आधुनिक काल के गोस्वामी तुलसीदास कृत "रामचरितमानस" मे "छहों शास्त्र सब ग्रंथन को रस" समाहित है. युगदृष्टा तुलसी ने इसमें अपने निजी अनुभवों के आधार पर हमे यह विश्वास दिलाया है कि कलि काल के जीवों को गाते बजाते केवल नाम जाप, सुमिरन और भजन , कीर्तन से मुक्ति मिल जायेगी. उन्होंने कहा है:
"कलिजुग केवल नाम अधारा ,सिमिर सिमिर नर उतरहिं पारा .
चहु जुग चहु श्रुति नाम प्रभाउ ,कलि बिशेस नहीं आन उपाऊ .."
मानस में ही तुलसी ने अन्यत्र कहा है:
"एही कलि काल न साधन दूजा, जोग जग्य जप तप व्रत पूजा.
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि संतत सुनीअ राम गुन ग्रामहि.."
---------------राम भजे गति केहि नही पाई
इस प्रकार हम सौभाग्यशाली जीव, गाते बजाते , ब्लॉग लिखते लिखाते और इसी बहाने अपने इष्ट का स्मरण करते तथा ब्लॉग पढने वालों को उनके इष्ट का स्मरण कराते, स्वयं भी मुक्त हो जायेंगे और सहपाठियों को भी साथ ले जायेंगे..देखिये कितनी बड़ी कृपा की है हमारे प्यारे प्रभु ने हम- कलियुगी जीवों पर..
एक बात और है. प्रियजनों. मैं यह नही चाहता कि आप मेरे कहने पर अपने इष्ट के स्थान पर "मेरे राम'" को भजें. आप अपने इष्ट, जिन पर आपको श्रद्धा है कृपया उन्ही को याद करें, उन्ही का भजन कीर्तन करे, पर प्लीज़ जो भी करिये, पूरी श्रद्धा और पूरे विश्वास के साथ करिये .
फिर देखिये चमत्कार ----- सर्वत्र आनंद वर्षा, परम विश्राम की प्राप्ति
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