सुंदर काण्ड के आरंभिक श्लोकों में तुलसी ने स्पष्ट शब्दों में हनुमान जी के , उन गुणों का उल्लेख किया है जिन के कारण वह एक साधारण कपि से इतने पूजनीय हो गये.
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजबनकृशानुम ग्यानिनामअग्रगण्यम
सकल गुण निधानं वानारानामधीशं
रघुपति प्रिय भक्तं वातजातं नमामि
तुलसी ने कहा "अतुलित बल के धाम, स्वर्ण के समान कान्तियुक्त कायावाले , दैत्यों के संहारक (दैत्य वन के लिए दावानल के समान विध्वंसक ), ज्ञानियों में सर्वोपरि , सभी श्रेठ गुणों से युक्त समस्त वानर समुदाय के अधीक्षक और श्री रघुनाथ जी के अतिशय प्रिय भक्त महावीर हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ".
अन्यत्र भी उनके स्थूल रूप की व्याख्या करते हुए तुलसी ने कहा कि हनुमान जी देखने में कपि - एक अति चंचल पशु हैं, उछलते कूदते वृक्षों की एक शाखा से दूसरी शाखा पर सुगमता से जा सकते है . मानस के उत्तर -काण्ड में हनुमानजी ने स्वयं ही अपना परिचय देते हुए भरत जी से कहा है:
"मारुत सुत मै कपि हनुमाना
नाम मोर सुनु कृपा निधाना "
सराहनीय है “महावीर विक्रमबजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी”, कपि-तन-धारी हनुमान जी का यह विनय और उनकी यह नम्रता . उनके अनेक सद्गुणों में यह एक विशेष गुण है जिसने उन्हें देवतुल्य बना दिया. हनुमान जी के सभी गुण अनुकरणीय हैं . आज का मानव जिसका जीवन मूल्य कहीं कहीं पशुता के स्तर से भी बहुत नीचे गिर चुका है, अपना स्वरुप सुधारने के लिए हनुमान जी के इन सद्गुणों को यदि अपनी जीवन शैली में उतार सके तो मानवता का कल्याण हो जाए. .
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