शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

"HIS GRACE"- --its identification & means to secure

"प्रभुकृपा" की पहचान और प्राप्ति के साधन. :

हम साधारणतः जीवन में अनुकूल परिस्थियों की प्राप्ति और प्रतिकूल परिस्थियों से मुक्ति को "प्रभु कृपा" का फल मानते हैं.. पर ये तो बहुत छोटी उपलब्धियां हैं जो जीवन में हमारे द्वारा किये उचित/अनुचित कार्यों के फलस्वरूप हमे प्राप्त होती हैं. इन छोटी सफलताओं अथवा असफलताओं को "प्रभु कृपा" कहना उचित नही है. ये तो मात्र "कर्म फल" हैं. प्रियजन, यथार्थ "प्रभु कृपा" इन भौतिक प्राप्तियों से बहुत उंची उपलब्धि है..


जब हमारा मन जड़तासे दूर जाने के लिए और चिन्मयता की प्राप्ति के लिए आकुल हो उठे एवं साधनमें लगने लगे और संत दर्शन तथा सत्संगों में सम्मिलित होने की लालसा मन में तीव्रता से जाग्रत हो जाये तब समझिये की हमे "प्रभुकी अहैतुकी कृपा" मिल रही है. यही है वास्तविक "प्रभुकृपा".


पर यह सब हो कैसे ? इसका एकमात्र साधन है- कुसंग का त्याग एवं सत्पुरुषों और संतों का "समागम" . जिसकी प्राप्ति के लिए भी हमारे लिए आवश्यक है "प्रभुकृपा "का सहारा. तुलसी ने कहा : . .

"गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन, :
बिनु हरि कृपा ना होइ सो गावही बेद पुराण" ,

अन्यत्र भी तुलसी ने इसी विषय में कहा है

"संत बिसुद्ध मिलहिं पर तेही . चितवहिं राम कृपा कर जेही " 


-------क्रमश: ----------

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