गुरुवार, 25 अगस्त 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"


अगस्त के प्रथम सप्ताह से ही अस्वस्थता के कारण मेरे ब्लॉग -लेखन की गति धीमी हो गयी! पिछले डेढ़ वर्षों में अनवरत संदेश भेज कर अनायास ही मैं इतना मूक हो गया !प्रभु की कृपा और प्रियजनों की शुभकामनाओं तथा दवा और दुआ से शारीरिक कमजोरी के रहते हुए भी मेरा ब्लॉग लिखने का प्रयास जारी रहा ! मैंने कृष्ण जन्माष्टमी की रात राम परिवार में अपने प्रियजनों की फरमाईश पर स्काइप वीडियो क्रोंफ्रेंसिंग करते समय भाव विभोर हो मीरा का यह पद गाया था -


करुना सुनो श्याम मेरी
मैं तो होय रही चेरी तेरी
करुना सुनो श्याम मेरी

दरसन कारन भयी बावरी ,बिरह व्यथा तन घेरी
तेरे कारन जोगन हूँगी , दूंगी नगर बिच फेरी
कुञ्ज बन हेरी हेरी
करुना सुनो श्याम मेरी
करुना सुनो श्याम मेरी , मैं तो होय रही चेरी तेरी !!

जब मीरा को गिरिधर मिलिया , दुःख मेटन सुख भेरी
रोम रोम साका भई उर में , मिट गयी फेरा फेरी
रही चरनन तर चेरी
करुना सुनो श्याम मेरी
करुना सुनो श्याम मेरी , मैं तो होय रही चेरी तेरी !!

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विश्व भर में फैले अपने राम परिवार के प्रिय स्वजनों को मीरा का उपरोक्त पद सुना कर मैंने अपने "श्याम" की कृपा दृष्टि पा ली !उन्होंने मेरी करुण पुकार सुन ली,और मुझे इतना सशक्त कर दिया कि मैं आज फिर ब्लॉग लिखने बैठ गया !
अब, पेश्तर इसके कि शरीर पुनः शिथिल पड़ जाये और मैं कुछ लिख न पाऊँ चलिए मैं सबसे पहले बहुत दिनों से अधूरी पड़ी अपनी और मुकेशजी की अंतिम मुलाकात की कहानी पूरी कर लूं ! आपको एक गुप्त भेद बताऊँ :मुकेश जी की कथा आगे बढ़ाने में मेरी अस्वस्थता के अतिरिक्त , जो विशेष व्यवधान था वह था , मेरा स्वयम का संकोच , मेरा अपना चिंतन , तथा श्री श्री माँ आनंदमयी से आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त अहंकार शून्य रहने की प्रेरणा !
हाँ तो में बतला रहा था कि उस दिन लाउंज के कोने में बड़े सोफे पर बड़े प्रेम से मेरे हाथ पकड़े हुए मुकेश जी ने कहा ," भइया रामायण का वह नया डबल एलपी एल्बम देख कर मैं बहुत निराश हुआ क्योंकि मैं सोचता था कि सेठ जी HMV द्वारा निर्मित मेरे द्वारा गायी हुई "रामायण" के रेकोर्ड भेजेंगे लेकिन उन्होंने भेज दी POLYDOR की कुछ साधारण गायकों द्वारा गायी "रामायण" ! मुझे बुरा तो लगा पर फिर भी मैंने उस एलबम के जेकेट पर बने राम दरबार को अपने माथे से लगाया और नर्स से कह कर उसका प्रथम भाग सुनना शुरू किया ! एक बार शुरू होने के बाद ,फिर इतना आनंद आया कि मैंने उसके चारों भाग सुने !
मुकेशजी ने कहा था " भोला जी , जितने दिन मैं उस हस्पताल में रहा मैं , ८० मिनिट की वह सम्पूर्ण रामायण नित्य प्रति सुनता रहा !उसे सुन कर मुझे जितना आत्मबल मिला ,जितना साहस मिला , "भगवत्भक्ति" की जितनी बड़ी खेप मुझे एकबारगी मिली , उसको बयान नहीं कर सकता ! मुकेशजी ने उसके बाद जिन शब्दों में उसके गायक पंकज उधास , अनुराग कुमार और गायिका मधु चन्द्र ,सीता शर्मा आदि (जो तब नवोदित कलाकार थे और आज प्रसिद्धि के शिखर छू चुके हैं) , द्वारा गाये रामायण की तारीफ़ की, उससे उनके हृदय की विशालता तथा प्रभु के प्रति उनकी अटूट आस्था का पता मुझे चला !




प्रियजनों , "श्री राम गीत गुंजन" की प्रशंसा में जो अन्तिम वाक्य मुकेश जी ने कहा उसे सुन कर मैं स्तब्ध रह गया ! उन्होंने कहा " सच पूछिए तो उस बड़े हार्ट अटेक के बाद मैं अपनी जीवन रक्षा का सम्पूर्ण श्रेय श्री राम गीत गुंजन को देता हूँ !"
पूरा श्रेय "श्री राम गीत गुंजन " को दे कर उन्होंने संगीत -कला के आध्यात्मिक प्रभाव की अनुभूति को व्यक्त किया !यह उनका बड़प्पन था !
मुकेशजी ने बहुत बड़ी बात कह दी थी ! मैंने उनसे कहा " दादा ! हम सब के सब ही एमेच्योर कलाकार हैं , स्वान्तः सुखाय रामायण गाते हैं ! आपकी रामायण से प्रेरणा लेकर ही हमने यह रेकोर्ड बनवाया था !


मुकेशजी ने कहा : "भोलाजी ! आप लोगों ने जिस भक्ति भावना से अपनी रामायण गायी है ,उतनी गहन श्रद्धा की भावना किसी और रामायण के रेकोर्ड में सुनने में नहीं आती , सच पूछिए तो मेरी रामायण में भी नहीं ,क्योंकि हमारे साथ गाने वाले सभी गायक गायिकाओं ने अर्थ लाभ के उद्देश्य से वह रामायण गायी है , जब आप सब ने केवल राम -भक्ति से प्रेरित हो कर निःस्वार्थ भाव से अपनी रामायण गाई है !" मुकेश जी के मुख से अपनी कृति "राम गीत गुंजन " की इतनी प्रशंसा सुन कर मैं निरुत्तर रह गया था !

उपरोक्त कथा १९७५ की है ! मुकेश जी के साथ इस मिलन के बाद फिर मेरा और उनका मिलन नहीं हुआ ! कुछ दिनों बाद मैं सपरिवार भारत छोड़ कर कंसल्टेंसी के एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में साउथ अमेरिका के देश गयाना पहुँच गया और १९७८ तक वहीं रहा !

इस बीच १९७६ के अगस्त के अंत में मुकेशजी, लताजी तथा अन्य बोलीवुड के कलाकारों के साथ ,एक कंसर्ट में भाग लेने के लिये USA के मिशीगन में आये ---




अभी बहुत कुछ बताना शेष है ! थोड़ी प्रतीक्षा और कर लीजिए !

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निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:

G.N.SHAW ने कहा…

काका जी प्रणाम - उसकी महिमा अपार है ! सब कुछ वह समझता है !