"आनंद की अनुभूति में हरि दर्शन "
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मेरे पिछले दो आलेखों पर मेरे लिए दो चार ही सही पर बड़े ही "आनंददायक" कमेन्ट आये ! प्रियजन ,मुझे तो इस "आनंद" में ही "आनंदघन - मेरे प्यारे प्रभु का दर्शन होता है" ! मैं धन्य हो गया ! मेरी साधना सफल हुई , मेरी हल्की आवाज़ भी आप सहृद स्नेहियों तक पहुंच रही है ! अपने प्यारे प्रभु का "प्रेम सन्देश" आप तक पहुचाने में मैं सफल हुआ ! मेरी सेवा , आप सब के हृद्यासन पर बिराजे , "मेरे मालिक" को पसंद आई इससे अधिक मुझे और कौन सा ईनाम चाहिए ? मेरा मन गदगद हो कर कह रहा है :
नाथ आज मैं काह न पावा , मिटे दोष दुःख दारिद दावा
अब कछु नाथ न चाहिय मोरे , दीन दयाल अनुग्रह तोरे
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सिंगापुर निवासिनी अपनी एक बहू (कृष्णा जी के भतीजे अनिल बेटे की धर्म पत्नी ,जिनको मैं स्नेहवश "रानी बेटी" ही कहता हूँ , के कमेन्ट के उत्तर में मैंने जो कहा ,नीचे लिख रहा हूँ ,पढ़ कर मेरे सब स्नेही स्वजन मेरे विचार तथा हृदयोद्गार से अवगत हो जायेंगे !
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रानी बेटी इंदुजा , राम राम ,
यह जान कर कि पाठकों को मेरे आलेखों में "आनंद घन - प्रियतम प्रभु " के दर्शन होते है मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं रहती ! मैं जानता हूँ कि यह भी "उनकी" ही अहेतुकी कृपा के फलस्वरूप है ! बेटा , मैं अपने इन निर्बल अंगों से क्या कर सकता हूँ ?
"उन" पर भरोसा बनाये रखो ! "उनसे" और "उनकी कृतियों" से प्यार करो और फिर प्यारे प्रभु के आनंद-अमृत का रसास्वादन करती रहो !
शुभाकांक्षी
तुम्हारा भोला फूफाजी
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चलिए गयाना के न्यू एम्सटरडम लौट चलें ! श्री जैक्सन की कोठी में मेरे स्वागत के लिए आयोजित उस शाम के संगीत समारोह का प्रारम्भ गयाना के एक गायक के द्वारा प्रस्तुत "हरि ओम शरण जी" के गणपति वंदन - " स्वीकारो मेरे परनाम से हुआ " !
शायद आप जानते हों कि "हरिओम शरण जी" तब तक ,अपने भजनो के जरिये ,केरेबियन के सभी देशों में बहुत मशहूर हो चुके थे ! वह वहाँ इतने प्रसिद्ध हुए कि , यह जानते हुए भी कि वह एक प्रकार से विरक्त सन्यासी हैं ,उन देशों - त्रिनिदाद टोबेगो , गयाना ,बारबेडोस ,एंटीगा , जमाइका आदि की अनेक भारतीय मूल की कन्याएं स्वदेश छोड़ कर ,उनके साथ भारत जा कर उनकी शिष्या तथा गृहणी तक बनने की इच्छुक हो गयीं थीं !
अन्त्तोगत्वा यहीं की एक कन्या उनकी धर्मपत्नी बनी और उनके जीवन के अंतिम क्षण तक वह उनका साथ अति श्रद्धा युक्त प्रेम से निभाती रहीं ! श्रद्धा इसलिए कि एक तरफ वह उन्हें अपना आध्यात्मिक और संगीत गुरु मानती थीं , और दूसरी ओर "हरी जी" उनके पति परमेश्वर तो थे ही !
१९८३ में , हरीओम शरण जी एवं उनकी धर्म पत्नी ( क्षमा करियेगा हम दोनों ही उनका नाम याद नहीं कर पा रहे हैं ) , कानपूर की हमारी सरकारी कोठी "टेफ्को हाउस" में दो दिनों के लिए हमारे मेहमान बन कर रहे ! इन दो दिनों में हमारी उनसे काफी घनिष्ठता हो गयी ! लेकिन उसके बाद हम उनसे नहीं मिल सके ! हरी जी के निधन के बाद अब उनकी धर्मपत्नी कहाँ है हम नहीं जानते ! हम स्वयम पिछले ७-८ वर्षों से , भारत से हजारों मील दूर यहाँ नोर्थ अमेरिका में पड़े हैं !
जो चित्र आप नीचे देख रहे हैं उसमे "हरी जी" और उनकी धर्मपत्नी "नंदिनी जी " ( देखा आपने कैसे ,एक साथ ही मुझे और कृष्णा जी दोनों को ही ,भूला हुआ उनका नाम एकाएक याद आगया ) को , कृष्णा जी अपनी कानपूर की कोठी में स्वयम अपने हाथों से भोजन परस रहीं हैं ! अन्य अथिति और मैं मेज़ के दूसरे छोर पर बैठे हैं !
कृष्णाजी , हरि ओम शरण जी तथा उनकी पत्नी नंदिनी जी
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हमारे प्रमुख सम्पाद्क महोदय (प्यारे प्रभु) कब कहाँ और कैसे मेरी कथा को घुमा देते हैं वह ही जानें ! मैं तो वही लिखता हूँ , "वह" जो लिखवाते हैं !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:
काकाजी और काकी जी को प्रणाम - आप इतनी सुन्दरता से अपनी बात रखते है की क्या कहने ? हरिओम जी तो एक अद्भुत रूप थे ! उनकी आवाज बर बश किसी को भी आकर्षित कर लेती है ! मेरे घर के शेफ में भी उनकी कई एलबम पड़े है - भक्ति युक्त ! संपादक जी को प्रणाम !
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