प्रभु कृपा का प्रत्यक्ष दर्शन हमें अपने जन्म पर हुआ. उसके बाद भी,जीवन में,पल पल हमें, अपने कृपा स्वरुप "इष्ट" का दर्शन होता ही रहा.. आइये जन्म से ही शुरू करें अपने ऊपर हुई "उनकी" कृपा की गणना अपने ही शब्दों में - -------
"लाखों योनि घुमा कर प्रभु ने दिया हमें यह मानव चोला .
बुद्धि विवेक ज्ञान भक्ति दे दरवाज़ा मुक्ति का खोला .
ऐसे कुल में जन्म दिया जिस पर प्रभु तेरी कृपा बड़ी है .
"महावीर" रक्षक हैं, जिसके आगन उनकी ध्वजा गड़ी है .
प्रातः सायं नित्य प्रति प्रभु होती जहां तुम्हारी पूजा .
बिना मनाये तुमको हनुमत होता कोई काम न दूजा .."
प्रियजनो. ज़रा सोंचिये उपरोक्त सब क्या मेरे प्रयास से हुआ? एक ही जवाब है "नहीं". प्रज्ञाचक्षु श्री स्वामी शरणानंद जी के शब्दों में-------- "मैं नहीं ,मेरा नहीं, ये तन किसी का है दिया"
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें