सिया राम के अतिशय प्यारे,
अंजनिसुत मारुति दुलारे,
श्री हनुमान जी महाराज
के दासानुदास
श्री राम परिवार द्वारा
पिछले अर्ध शतक से अनवरत प्रस्तुत यह

हनुमान चालीसा

बार बार सुनिए, साथ में गाइए ,
हनुमत कृपा पाइए .

आत्म-कहानी की अनुक्रमणिका

आत्म कहानी - प्रकरण संकेत

सोमवार, 12 सितंबर 2011

राम बिनु तन को ताप न जाई

मेरे राम , प्यारे राम
तीन ताप हारी तव नाम
श्री राम जय राम जय जय राम
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अभी हाल में दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नम्बर ५ के रिसेप्शन के निकट हुआ एक भयंकर बम् विस्फोट ! वहाँ के हृदय विदारक दृश्य अमेरिकन टेलीविजन की खबरों में तत्काल ही दिखाई दिए ! अभी हम दिल्ली के दृश्यों को भुला भी न पाये थे कि यहाँ अमेरिका में भी अल्कायदा ने ९/११ के दसवीं वर्षगांठ पर आयोजित मेमोरिअल सभा में शक्तिशाली बम् विस्फोट कर के ,बिनलादेन की मृत्यु का बदला लेने की धमकी दे डाली ! इमरजेंसी जैसी स्थिति यहाँ भी हो गई ! दो दिन पहले दिल्ली के पीड़ित परिवारों का रुदन हमने देखा ,और कल ग्राउंड जीरो की मेमोरिअल सभा में ११,सितम्बर २००१ के आतंकवादी हवाई हमलो में मारे गए ३००० से भी अधिक निर्दोष अमेरिकन नागरिकों के सगे सम्बन्धियों का फफक फफक कर रोना भी ! मेरा मन दुःख से भर गया !

इसके पूर्व भी विश्व में जहां तहां आये विध्वंसकारी - सुनामी , भूकम्प, अतिवृष्टि के कारण बाढ , तथा आयरीन जैसे भयानक समुद्री तूफान के कारण हुई तबाही के दृश्य भी हमने देखे थे ! यहाँ ,हम तो बाल बाल बच गए थे क्योंकि महारानी आयरीन हमारे नगर की प्राचीर छूती हुई निकल गयीं ! लेकिन निकट के ही अन्य स्थानों में हजारों घरबार उजड़ गए ,लाखों लोग बेघर हो गए ! सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए ! मैं सोच में पड़ गया :
आखिर मानवता पर दुःख के इतने बड़े बड़े पहाड़ एकाएक क्यों फट पड़ते हैं ?

एक उत्तर मिला; मानव जीवन की ये आपदाएं -विपदाएं और उनसे नि:सृत सुख -दुःख केवल मानवीय कार्य - व्यापारों से ही उत्पन्न नहीं होते ;कभी कभी ये देवताओं के प्रकोप के फलस्वरूप , भयंकर प्राकृतिक आपदाओं तथा संक्रामक रोगों के रूप में आते हैं और इनके ; कारण मानव को भयंकर पीडाएं और दुःख भोगने पड़ते है ! जीव धारिओं के लिए ये सभी वेदनाएँ जन्मसिद्ध और अनुभवगम्य हैं !

हमारे पौराणिक ग्रंथों में सुख दुःख के तीन भेद बताए हैं ; इन्हें "त्रयताप" कहा गया है !

(१). आधिदैहिक , (२). आधिभौतिक और (३).आधिदैविक( आध्यात्मिक )

(१) आधिदैहिक ताप -विषय -वासनाओं से निसृत शारीरिक सुख दुःख : है . (२) आधिदैविक ताप देवताओं की कृपा या कोप से प्राप्त सुख दुःख है जो कभी दुखदायी और कभी आनंददायी कल्याणकारी और हितकारी प्रतीत होते हैं (३) आधिभौतिक ताप सृष्टि के बाहरी साधनों के संयोग से , मानव द्वारा निर्मित सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले दुःख -सुख है !
पर सच पूछो तो आज समस्त संसार की ही दशा दयनीय है .! ब्रह्मानंदजी ने अपनी एक रचना में आज के मानव की दुखद मनःस्थिति ,इन शब्दों में अभिव्यक्त की है :

सताया राग द्वेषों का, तपाया तीन तापों का ,
दुखाया जन्म म्रत्यु का ,हुआ है हाल तंग मेरा!!

दुखों को मेटने वाला तुम्हारा नाम सुन कर मैं
सरन में आ गिरा अब तो भरोसा नाथ है तेरा !!
आज मानवता एक के बाद एक विविध प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को झेल रही है ! कहीं सुनामी और भूकम्प ,कहीं "आयरीन" (विनाशकारी समुद्री तूफ़ान) तथा कहीं पर भयंकर महामारिया और संक्रामक रोग हमे आये दिन त्रस्त करते रहते है ! दूसरी ओर अधिभौतिक प्रगति के फलस्वरूप मिले न्यूक्लिअर विध्वंसक अस्त्र शस्त्र , तथा मानव की सेवा के लिए आविष्कृत वायुयानों जैसे उपकरणों का दुरुपयोग कर के मानव ही दानव बना मानवता को मिटाने का संकल्प किये बैठा है ! आज परिस्थिति यह है कि ----

काम रूप जानहि सब माया ,सपनेहु जिनके धरम न दाया !
करहि उपद्रव असुर निकाया , नाना रूप धरहि कर माया !!

तामसी दुष्प्रवृत्तियों से अपनी आधिभौतिक शक्ति और तकनीकी ज्ञान तथा आधुनिक उपकरणों के दुरूपयोग से मानवता को नष्ट भ्रष्ट करने की आसुरी प्रवृत्ति वाले दानव कब तलक हमें सताते रहेंगे ? अब तो यही लगता है कि उनका अंत करने के लिए "श्री राम" जैसी परम सात्विक शक्तियों को अवतरित होना होगा और समस्त विश्व में राम राज लाना ही होगा क्योंकि
देहिक दैविक भौतिक तापा !
रामराज नहीं काहुहि व्यापा !!

इस विषय में संत कबीर ने तो यहाँ तक कह डाला कि
राम बिनु तन को ताप न जाई
चलिये आप को सुना दूँ यह भजन स्वयम गा कर



राम बिनु तन को ताप न जाई
जल में अगनि रही अधिकाई
राम बिनु तन को ताप न जाई
तुम जल निधि मैं जल कर मीना
जल में रहहि जलहि बिनु जीना
राम बिनु तन को ताप न जाई

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा
दर्शन देहु भाग बड मोरा
राम बिनु तन को ताप न जाई

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला
कहे कबीर राम रमूं अकेला
राम बिनु तन को ताप न जाई
जल में अगनि रही अधिकाई

राम बिनु तन को ताप न जाई
(कबीर)
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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