शनिवार, 3 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए
तोड़ गए बालम मेरा प्यार भरा दिल तोड़ गए
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(गतांक से आगे)

भारतीय मूल के ,गयाना के धनाढ्य व्यापारी - श्री जैक्सन (उस शाम के मेरे मेज़बान), मुझे अपनी भव्य कोठी का टूर दिला रहे थे ! बडे हॉल से निकलते ही उनका लेडीज़ लाउंज आगया, वही जहां जैक्सन मुझे कुछ समय पहले , अन्य अतिथिगण से मिलाने के लिए ले गये थे ! वही हाल जिसमे प्रवेश करते ही मुझे ऐसा लगा था जैसे मैं किसी देव स्थल में आगया हूँ ! लेकिन इस बार वह मुझे अंदर नहीं ले गए , मुझे दरवाजे पर ही छोड़ कर ,वह उस छोटे हॉल में अकेले ही प्रवेश कर गए और केवल उसमे झांक कर फटाफट बाहर आगये ! ऐसा क्यों ?
खुल जायेगा यह राज़ भी धीरे धीरे , थोड़ी सी प्रतीक्षा करे !

हॉल से निकल कर उन्होंने फिर मेरा हाथ पकड़ लिया ,और एक तरह से खींचते हुए मुझे एक अन्य प्रकोष्ट के बंद द्वार तक ले आये! धीरे से उन्होंने वह बंद द्वार खोला ! कमरे में घना अँधेरा था ! हम बाहर की चकाचौंध से उठ कर उस अँधेरे कमरे में आये थे ,हमे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था ! जैक्सन ने एक एक कर के कमरे के लाईट के सभी स्विच ओंन कर दिए !

कमरे में धीरे धीरे रोशनी की एक झीनी चादर पसर गयी जिसमे मुझे सबसे पहले नज़र आयी उसकी सजावट !अति गंभीर रंग के सिल्क के पर्दों से सुसज्जित था वह कमरा ! कोने में एक पलंग के साइज़ की चौकी, जिस पर बिछा था एक बहुरंगी चीनी रेशमी कालीन ! उस कालीन पर दो मसनदों (गोल तकियों) के सहारे टिका था मीरज (भारत) से आयातित एक अति सुंदर "सितार"! जैक्सन ने बताया कि वह सितार उनकी दिवंगता पत्नी भारत से लाई थीं , और यदा कदा उस पर रियाज़ किया करतीं थीं !

इस कमरे में ,दीवाल के सहारे लम्बी सी एक मेज़ पर करीने से रखे हुए थे औडीयो रेकोरर्डिंग और रेकोर्ड प्लेयिंग के फिलिप्स के लेटेस्ट ओरिजिनल , होलेंड से आयातित इक्यूपमेंट ! (मैं दूर से ही पहचान गया क्यूंकि गयाना में मेरे पास भी फिलिप्स का वही फोर ट्रेक रेकोर्डर था) उस कमरे में इसके अतिरिक्त था एक बड़ा सा H M V का रेडीयोग्राम और उसके निकट लंबे लंबे रैक्स में सैकड़ों लॉन्ग प्लेयिंग तथा २-३ मिनिट बजने वाले अनगिनत स्टेंडर्ड ग्रामाफोन रेकोर्ड ! (रेकोर्डों के उस हजूम के बीचोबीच खड़े ,मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं नयीदिल्ली में कनाटप्लेस स्थित "महराज लाल एण्ड संस " के रेकोर्ड बार में खड़ा हूँ !)

जैक्सन ने मुझे बताया कि वह कमरा उनकी दिवंगता पत्नी का म्यूजिक रूम था और अब वह उनकी बड़ी बेटी पूजा का कमरा है ! बड़ी होते हुए भी पूजा का विवाह अभी नहीं हुआ था ! कारण बता चका हूँ कि उन्होंने यह व्रत ले लिया था कि वह यदि शादी करेंगी तो भारत के ही किसी सुयोग्य वर से करेंगी अन्यथा करेंगी ही नहीं !

पति के लिए उसने जो मानक बना रखा था , वह था , बताऊँ ,चलो बता देता हूँ - मुकेश !

वह जानती थी कि मुकेश विवाहित हैं!"सरलबेन" से उन्होंने वर्षों पूर्व प्रेम विवाह रचाया था अस्तु मुकेशजी उसे इस जीवन में नहीं मिल सकते थे ! किसी तरह उसने अपने दिल को तो समझा लिया ,लेकिन किसी और से विवाह न करने का अपना व्रत वह तब ३८ वर्ष की अवस्था तक नहीं तोड़ पायी थी और अपना सारा समय इसी कमरे में मुकेशजी के गीत सुन सुनकर और उनके चित्र देखने में ही उनसे मिलन का आनद लेती हुई व्यतीत करती थी !

मेरी नज़र इस बीच कमरे की दीवालों पर लगी बोलीवुड की संगीत प्रधान फिल्मों के हीरो हीरोइंस के बीच मुकेशजी के अनेक चित्रों ,उनके ही बड़े बड़े रंगीन पोस्टर्स और लाइफ साइज़ कट आउट्स पर पड़ी ! मैं हक्का बक्का हो कर सोचने लगा कि मैं भारत की किसी फोटो आर्ट गैलरी में खड़ा हूँ जहां मुकेशजी के तस्वीरों की नुमाइश लगी है !

वही मुकेशजी जो अब हम सब को छोड़ कर परमानन्द के अथाह सागर में मिल चुके थे ! इस मंगल मिलन के बाद वह कहाँ गए "कोई जाने ना " ! याद आई शैलेन्द्र जी कि वह रचना जिसे मुकेशजी ने "तीसरी कसम " के लिए गाया था :

ताल मिले नदी के जल में ,नदी मिले सागर में ,
सागर मिले कौन से जल में " कोई जाने ना !

लेकिन ये गीत नहीं , आज मैं आपको मुकेशजी का एक दूसरा गाना सुनवाऊंगा ! अभी मुझे सामने की दीवाल पर "बंदिनी" फिल्म का वह पोस्टर नज़र आ रहा है जिसमे फिल्म की हीरोइन "नूतन" स्टीमर घाट में उदास बैठी है और नेपथ्य से माझी का दर्द भरा गीत सुनाई पड़ रहा है :
ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना
ये घाट जोहे बाट कहीं भूल न जाना


गायक : मुकेश , शब्दशिल्पी : शैलेन्द्र
संगीत :सचिन देव बर्मन
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शेष अगले अंक में
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
शिक्षक दिवस की बधाइयाँ

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम . पिछला पोस्ट भी पढ़ा ! बहुत रोचक और जैकसन जी की वेटी के बारे में जान कर दिल भर आया १