शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है


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अगस्त १९७6 की उस शाम
अमेरिका के डेट्रोयट (मिशीगन) में एक कंसर्ट में स्टेज पर आते आते
हमारा दिलेश- मुकेश , खुदा के पास चला गया
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सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है
न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

तुम्हारे महल चौबारे यहीं रह जायेंगे सारे
अकड किस बात की प्यारे ,ये सर फिर भी झुकाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

भला कीजे भला होगा बुरा कीजे बुरा होगा
बही लिख लिख के क्या होगा यहीं सब कुछ चुकाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

बचपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया
बुढ़ापा देख कर रोया वही किस्सा पुराना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है
न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है
(गीतकार : शैलेन्द्र , गायक : मुकेश )

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उस दिन मैं गयाना की राजधानी जोर्जटाउन से लगभग १०० किलोमीटर दूर न्यू एम्स्टरडम में अपने प्रोजेक्ट साईट पर आया था और हिंदुस्तानी संगीत में मेरी रूचि के मद्देनजर उस नगर के मेयर ने वहाँ के एक सम्रद्ध ,संगीत प्रेमी व्यापारी (कामरेड) जैक्सन की कोठी में मेरे लिए एक विशेष संगीतमय भोज आयोजित किया था !

स्थानीय कलाकार मुझे हिंदुस्तानी भजन और फिल्मी गीत सुनाने की पूरी तैयारी करके आये थे ! उन कलाकारों को मुझसे परिचित कराते समय मेयर महोदय ने उनमें से किसी को गयांना की 'लता', किसी को 'आशा' और किसी को 'गीता' नाम से पुकारा ! पुरुषों में भी कोई 'मन्नाडे' ,कोई 'मुकेश' और कोई 'मोहम्मद रफी' कह कर परिचित कराया गया !

हाँ , एक गायिका से परिचित कराते समय उन्होंने कहा " ये है "सीलिया" ,गयाना की दूसरी "लता मंगेशकर" ! हमारी पहली 'लता' तो भारत के 'हरिओम शरण' की पत्नी बन कर अब भारत में ही बस गयी है" ! (प्रियजन तब मैं कहाँ जानता था कि गयाना की उन पहली 'लता' - 'नंदिनीजी " और उनके पतिदेव 'हरीओम जी' से हमारी भेंट, ७ - ८ वर्ष बाद अपने भारत के घर में ही होने वाली है )

कार्यक्रम के बीच बातें करते हुए कामरेड जैक्सन ने मुझसे कहा , " हमारा पूरा परिवार जबर्दस्त संगीत प्रेमी है ! मेरी बीवी तो वर्षों पहले भारत में लखनऊ के मेरिस म्यूजिक कोलेज से सितार सीख कर आयीं थीं ! छोटी बेटी "पोर्ट ऑफ स्पेन" (त्रिनिदाद) के मशहूर संगीत प्रेमी "मोहम्मद" परिवार में ब्याही है ! लेकिन बड़ी बेटी "पूजा" अभी अविवाहित है !ऐसा लगता है जैसे वह संगीत के लिए ही जी रही है ! प्रातः से रात्रि तक वह संगीत में ही डूबी रहती है !जब भी उससे शादी की बात चलाता हूँ ,वह गयाना की पहली "लता"- (अब भारत की नंदिनी) की तरह अपना यह व्रत दुहरा लेती है कि यदि वह विवाह करेगी तो केवल किसी भारतीय संगीतग्य के साथ ही करेगी ! उसकी पसंद भी ऐसी है जो मैं इस जीवन में पूरी नहीं कर सकता" ! इतना कह कर वह चुप हो गए ! उनके नेत्र सजल हो गए ! जैसे वह मुझसे कह रहे हों कि मैं उनकी बड़ी बेटी के लिए कोई सुयोग्य भारतीय संगीत प्रेमी "वर" बताऊं !

इस बीच गाना थम गया ! स्टार्टर्स सर्व होने लगे ! ड्रिंक्स की ट्रेज़ मेहमानों के बीच घूमने लगीं और मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे अपनी कोठी का टूर दिलाने चल पड़े !

शेष अगले अंक में

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निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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6 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

मुकेश जी के तो हम भी दीवाने हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज 03-09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रोचक संस्मरण

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

संगीता जी , इस अवस्था में - ८३ वर्ष के घिसे पिटे , असक्त रोगों से घिरे शरीर से उतना ही लिख पाता हूँ जितना "वह" याद दिलवाते हैं और मेरा हाथ पकड़ कर लिखवा देते हैं !- आपको पसंद आया ,धन्यवाद आभार ! नतमस्तक हूँ उनके श्री चरणों पर !


वंदना जी , मुकेशजी से इस जीवन में दो बार ही मिला हूँ ! उनके आकर्षक व्यक्तित्व ने जो छाप मेरे मानस पर छोड़ी है वह अमिट है ! उसका ध्यान आते ही रोमांचित हो जाता हूँ !

Nidhi ने कहा…

बहुत रोचक...दिल को छू लेने वाला संस्मरण .

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
श्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता
रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा