रविवार, 1 अगस्त 2010

JAI MAA JAI MAA

जय माँ जय माँ
श्री श्री माँ आनंदमयी के वचन 

श्री माँ के जीवन में, जितना ज्ञानामृत ,उनके श्रीमुख से अवतरित हुआ उससे कहीं अधिक आध्यामिक सूत्र, उनकी ज्योतिर्मयी आँखों से और उनके दिव्य मूक विग्रह की गंगोत्री से पवित्र गंगा जल के समान निर्झरित हुआ और जिस जिज्ञासु की गंगाजली में जितना समा पाया उसने उतना भर लिया...

मेरे हिस्से भी जितना आया, मैंने उतना पाया. जहाँ मुम्बई में उन्होंने अपने श्रीमुख से मुझे संबोधित कर अहंकार शून्य रहने का आदेश दिया ,वहीं दूसरे दिन उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से मेरे मन को परमानंद के पवित्र गंगाजल से भर कर मुझे प्रेमाभक्ति के प्रथम सोपान पर चढा दिया. आज, लगभग ४० वर्ष बाद भी माँ की कृपा से प्राप्त ,मेरे अन्तर का भक्ति-प्रेमामृत, छलक छलक कर,मेरे ही नहीं अपितु अनेकों साधकों के मन को प्रेमाद्र कर रहा है.

आगरे के टूर पर निकलने के एक रात पहले मेरे मन में माँ का दर्शन करने की ज़ोरदार हूक उठी थी,,ह्म दोनों ने (मैंने और मेरी धर्म पत्नी ने)उस रात बड़ी देर तक माँ के विषय में बहुत सी बातें की थीं और उनका सुमिरन करते करते ही सोये थे.उस रात ह्मारे वार्तालाप का अंतिम वाक्य था "क्या जाने कब ह्म अब माँ का दर्शन कर पाएंगे" और जैसा आपको विदित ही है, अगले दिन ही माँ ने अति चमत्कारी परिस्थितिमेंमुझे,कानपूर स्टेशन के प्लेटफोर्म पर साक्षात दर्शन दे दिया. जय माँ जय माँ

कानपुर वाले दर्शन से स्पष्ट हुआ क़ि उस ऊपर वाले "परम" के समान ही हमारी श्री श्री माँ आनंदमयी भी अपनी संतान को कभी नहीं भूलतीं,और जब कभी भी मेरे जैसा उनका कोई नादान बालक उनकी याद करता है वह दौड़ कर आ जातीं हैं और अपनी ममतामयी आंचल तले, उसे स्नेह ,सुबुद्धि ,संबल और आत्मशक्ति का पयपान करा कर, जीवन रण में उसे विजयश्री दिला देती है.

आइये ह्म सब मिल कर माँ की जय जयकार करें

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

जूलाई ३१, और अगस्त १, २०१०

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