संकट मोचन कृपा निधान
मारूति नंदन , श्री हनुमान
अपनी प्यारी माँ की गोद में (१९२९ से -३४-३५ तक) श्री हनुमान जी से प्रथम परिचय हुआ उसके बाद,ह्मारे दादा परदादा पर विशेष अनुकम्पा कर उनका उद्धार करने वाले महावीर जी पर हमारा भरोसा बढ़ता गया. पितामह पर उनकी कृपा की कहानी पिछले संदेशों में सुना चुका हूँ. अब मैं उनकी कृपा के अपने निजी अनुभव सुनाउंगा.
१९४७ में कानपुर छोड़ कर पढायी के लिए बनारस (आज के वाराणसी) जाने पर ,हनुमान जी से हमारा सम्बन्ध और प्रगाढ़ हो गया. हनुमान जी ने ,मेरे वाराणसी प्रवास में , प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में मेरी बहुत रक्षा और सहायता की. अनेकों कथाएं हैं, जिनका क्रम आज से प्रारम्भ करने का विचार है .पर सर्व प्रथम मन मन्दिर में स्थापित विक्रम बजरंगी हनुमानजी की मनोहारी प्रतिमा का अभिषेक तो कर लूँ ,उनके सन्मुख ,उनसे ही प्राप्त प्रेरणा और सुबुद्धि से रचित उनकी वन्दना का यह पद गा कर
अंजनि सुत हे पवन दुलारे
हनुमत लाल राम के प्यारे
अतुलित बल पूरित तव गाता
असरन सरन जगत विख्याता
हम बालक हैं सरन तुम्हारे
दया करा हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे
सकंट मोचन हे दुख भजंन
धीर वीर गम्भीर निरन्जन
हरहु कृपा करि कष्ट हमारे
दया करा हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे
राम दूत सेवक अनुगामी
विद्या बुद्धि शक्ति के दानी
शुद्ध करो सब कर्म हमारे
दया करा हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे
तुम बिन को सागर तर पाता
लंका जारि सिया सुधि लाता
राम लखन का को धीर बंधाता
कैसे होते सब सुखियारे
दया करा हे पवन दुलारे
अन्जनि सुत हे पवन दुलारे
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
मंगलवार , अगस्त ३ , २०१० .
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