रविवार, 22 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPISOOR ( Aug.22,'10)


हनुमत कृपा- निज अनुभव 
गतांक से आगे 

आप देख रहे हैं "उनकी" कलाकारी ,निज स्वभावानुसार "उन्होंने" प्रेरणा प्रवाह में फिर एक मोड़ ला दिया.अच्छा खासा होस्पिटल का प्रसंग चल रहा था "उन्होंने"महाराज जी की मधुर स्मृति का तड़का लगा कर मेरी अनुभव गाथा को और अधिक स्वादिष्ट बना दिया. हाँ,मेरी कथा अवश्य ही ४-५ वर्ष पीछे २००४-०५ तक सरक गयी पर बन गयी पहले से भी कहीं अधिक सरस

२००१ से ही धीरे धीरे भारत छूट रहा था.ह्मारे ३ बच्चे अमेरिका में थे दो भारत में..मेजोरिटी यहाँ यू.एस.वालों की थी उनकी मांग स्वीकार करनी पड़ी इन्होने पीछे पड़ कर ग्रीन कार्ड भी बड़ी आसानी से बनवा दिया.हमारा ६ महीने भारत और ६ महीने यू.एस का सिलसिला चल गया.

२००४  में एक ऎसी ही भारत यात्रा से लौटते समय,महाराज जी के दर्शनार्थ विशेष समय मांग कर श्री राम शरणं लाजपतनगर गया. जैसा अनुभव संभवतः सब प्रेमियों को होता है ,मुझे भी हुआ , 
               
          "उनके  दर्शन  से  मेरे    हाथ पाँव    फूल गये ,
            न सुना कुछ भी जू कहना था वो भी भूल गये
जुबां की बेवफाई कैसे भला मुआफ करूं,
बेरहम हिली न ,ह्म ज़िक्रे वफा भूल गये. 
                     न कहा कुछ भी सुना भी नहीं दीवाने ने 
                     रह गया देखता, कांटे भी गये  फूल गये 
"भक्ति" वो शय है जो आयेगी उनके हिस्से ही ,
"प्यार" की  खोज  में जो  बन्दगी  भी भूल  गये.


गुरुदेव श्री विश्वामित्र जी महाराज के साथ उस मूक मिलन  के बाद जब ह्म वापस जाने के लिए उठे ,श्री  महराज जी मुझे छोड़ने के लिए श्रीराम शरणम् के गेट तक आये, गाड़ी दूर खड़ी थी इसलिए उन्होंने वाच मेंन को स्वयम आदेश देकर गाड़ी मंगवायी और मुझे गाड़ी पर सवार होने से पहले मेरा हाथ पकड़ कर धीरे से कहा "श्रीवास्तव जी सेहत का ख्याल रखियेगा"


विचारणीय है क़ी उन दिनों मैं बिलकुल स्वस्थ था.लेकिन यू.एस.पहुँचते ही 
दो माह में मुझे जीवन का पहला हार्ट अटैक हो गया. महाराज जी ने इसी की पूर्व सूचना मुझे श्री रामशरणं में दी थी.,गुरुजन कितना सोचते हैं प्रिय साधकों के विषय में. ह्म आप नहीं आँक सकते  ---------क्रमशः 


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला".


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