गुरुवार, 5 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR

हनुमत कृपा के निज अनुभव 
गतांक से आगे.


बहुत देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. मेरी शिकायत कान में पड़ते ही ह्मारे इष्ट    करुनानिधान ,संकटमोचन श्री हनुमान जी ने अपनी अहेतुकी कृपा का द्वार खोल दिया.  मेरे जहन में ,एक के बाद एक,उनकी ह्म पर की हुईं ,अनंत कृपा के उद्धरण उभरने लगे. 


अब प्रश्न यह आया क़ि अनंत की कथा ,किस छोर से शुरू की जाये.प्रियजन, तब विचार आया क़ि जिन्होंने मुझे जीवन के अंत तक लाकर पुनः दौड़ा दिया,उनका क्या ठिकाना .न जाने कौन कौन से डर्बी ,वरली या मैसूर -बंग्लूरी  दौड़ में मुझे वह और दौडाना चाहते हैं. 


उनका मोल लिया अश्व हूँ जहाँ दौड़ायेंगे दौडूंगा. इस पर सूरदास जी का एक पद याद आया, जो बचपन से गाता आया हूँ और आज श्री हनुमान जी की प्रेरणा से पुनः याद आया है -प्रियजन मेरा गदगद कंठ, तो गुनगुनाने भी लगा है काश मेरी आवाज़ आप सुन सकते ,any way अभी केवल सूरदास जी के मर्म स्पर्शी शब्दों का आनंद ले लीजिये. इससे आप मेरी सामयिक मनः स्थिति अवश्य समझ लेंगे.  -


हमे नन्द्नंदन मोल लियो 
जम की फांसी काट मुकरायो अभय अजात कियो 
सब कौउ कहत गुलाम श्याम को,सुनत सिरात हियो 
सूरदास हरि जी को चेरो जूठन खाय जियो


( I am sold out to My LORD. The ONE who rescued me from the clutches of Yamraaj -saved my life and vanished all my fears and frustrations. I love, being addressed as the Slave of Shyam-Krishna, It is so soothing to my heart. I am so happy to live on the left out meals of my master as I am HIS bought out slave.)


प्रियजन यह न सोंचें क़ि मैं कथा कहने से कतरा रहा हूँ.बात ऎसी है क़ि जब सर्वस्व उन्ही के हाथों में सौंप दिया है,तब वही लिखूँगा ,वही पढूंगा वही गाऊंगा-बजाउंगा जो वह लिखवाना ,पढ़ाना,अथवा गवाना चाहते हैं. 


मुझे पूरा विश्वास है क़ि आपको मेरा यह कथन अवश्य पसंद आयेगा,क्योंकि यह जो कुछ भी है मेरा नहीं है ,सब कुछ उनका ही है .आप ही कहें मुरली मनोहर की मधुर मुरली-धुन, और उनका वेणु गीत किस चराचर प्राणी को नहीं भायेगा.
शेष अगले अंकों में.


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
ब्रूकलाइन,MA, USA . दिनांक.अगस्त ५ /६.२०१०  







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