हनुमत कृपा-निज अनुभव
भारत जाने से पहले २००७-०८ में जो "उन्होंने" लिखवाया था उसके दो नमूने मैंने पिछले संदेश में दिए थे. आइये अब उन दिनों जो "उन्होंने" मुझसे सुनना पसंद किया वो भी बता दूँ . प्रियजन उन्हें राम-भक्त संत तुलसी, श्याम की मतवारी-मीरा,सहज योगिनी सहजो बाई, प्रभु मोती के धागा एवं प्रभु चन्दन के पानी-संत रैदास जी,अथवा "राम धन धनी" मलूकदास जी तथा नामानुरागी सद्गुरु नानक देव जी की भक्ति रस पूर्ण रचनाओं के स्थान पर वह मुझसे कबीरदास जी के दो अर्थ वाले पद सुनना अधिक पसंद करते थे.मैं
अक्सर उनके निम्नांकित पद गुनगुनाता रहता था .
आयी गवनवा की सारी हो, आयी गवनवा क़ी सारी
उमिर अबहीं मोरि बारी हो, आयी गवनवा ----------
बिधि गति बाम कुछ समझ परत ना,बैरी भयी महतारी,
रॉय रॉय अंखिया मोरि पोंछत,घरवा से देत निकारी ,
भयी ह्म सब का भारी, आयी गवनवा -------------
----------------- ---------------- -------------
कहत कबीर सुनो भाई साधो ,ये सब लहू बिचारी,
अब के जाना बहुरि नही आना करि लो भेंट करारी ,
करम गति जाय न टारी , आयी गवनवा की सारी
ऐसा ही एक अन्य पद था
कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो,
चन्दन काठ के बनल खटोलना ,तापर दुल्हिन सूतल हो ,
उठू रे सखी मोरि मांग सवारू , दूल्हा मोसे रूसल हो.
कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो.
ये सारे पद मैं बचपन से गाता रहा हूँ.,शादी ब्याह में और मंदिर-आश्रम के भजन कीर्तन के कार्यक्रमों में.सब जगह गाया है मैंने इन्हें पर कभी भी इन पर ऐतराज़ नही हुआ. लेकिन इधर अमेरिका में मेरे हार्ट अटेक के बाद लोग इन शब्दों का वह गम्भीर वाला जीवन मरण सम्बंधित अर्थ ज्यादा लगाने लगे हैं.इसलिए लोग.टोक भी देते हैं,शायद उन्हें लगता है मैं अपना अंत निकट देख कर ऐसे पद गा रहा हूँ.
कहां तक सच्चायी है लोगों की सोंच और हमारी तत्कालीन मनः स्थित में,कल बताउंगा .
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें