हनुमत कृपा - निज अनुभव
गातांक से आगे
मेरे परम प्रिय पाठकगण,
मेरी मजबूरी देखिये मैं लिखना चाहता हूँ कुछ तो कोई मेरी कलम पकड़ लेता है . मेरे कम्प्यूटर जी भी नखरे करने लगते हैं. कल रात से कितना परेशान कर रहे हैं वह ?, मैं भुक्त भोगी चुपचाप झेल रहा हूँ,.
हाँ गतांक में मैं आपको अपनी वह "प्रेम-भक्ति-संयोगिनी " रचना बता रहा था और जैसे सियाही सूख गयी, कम्प्यूटर जी बैठ गये. मेरे जैसे ही बुज़ुर्ग हैं श्रीमान , उन्हें क्या दोष दूँ मुझे तो लगता है क़ी इसमें मेरे "उनकी" अनिच्छा ही बड़ी रुकावट है .अब,"उनकी" मर्जी के खिलाफ आपको वह रचना बताऊँ यह मुझसे नहीं होग़ा अस्तु चलिए वह प्रसंग भूल ही जायें और पुनः २००८ के हॉस्पिटल प्रसंग पर आ जाएँ
श्री महाराज जी के स्वप्न-दर्शन के बाद इंटेंसिव के कारा से छुटकारा मिला.अब दिन में कुछ समय के लिए परिवार के स्वजनों को मुझे देखने और मुझसे मिलने का अवसर मिलने लगा .पर मेरी बेहोशी / तन्द्रा /निंद्रा मस्ती ( समझ नह़ी पाता किस नाम से पुकारें उसे),वह अर्ध जागृत -अर्धसुप्तावस्था वैसी ही बरकरार रही .दिन रात ओक्सीजन मास्क लगा रहता ,थोड़ी थोड़ी देर में न्यूबलाइजर लगता ,कम्प्लीट बेडरेस्ट ,आई वी से रक्तदान (टेस्ट के लिए),और औषधियों का आदान और न जाने क्या क्या होता ही रहता.
पर मेरे प्रियजन आपको सच सच बताता हूँ ,क़ी हॉस्पिटल में मेरी इस काया के साथ चाहे जो कुछ भी हुआ मुझे कोई भी कष्ट नहीं हुआ,कोई भी पीड़ा नहीं हुई. मेरे पूर्णतः स्वस्थ होने के बाद मैंने सुना क़ी मेरे प्रमुख चिकित्सक ही नही बल्कि उनकी पूरी टीम और उनका स्टाफ अक्सर आश्चर्यचकित हो जाता था जब पीडाजनक प्रोसीजर्स के दौरान बेहोशी की हालत में भी मैं मुस्कुराता रहता था. अब जब सोचता हूँ क़ी ऐसा क्यूँ कर हुआ होगा तो चकरा जाता हूँ.कुछ भी समझ नही पाता. वह कृपानिधान मेरे जैसे कुसेवक पर भी इतने कृपाल क्यों हैं सूरदास जी की यह रचना मेरे मन की भावना व्यक्त करती है
मो सम कौन कुटिल खल कामी
जिन तन दियो ताहि बिसरायो ,ऐसो नमकहरामी,
मेरे जैसे नीच, कुटिल ,खल, कामी ,स्वार्थी, व्यक्ति पर भी मेंरे परमदयालु प्रियतम इतनी कृपा कर रहे हैं, मेरे प्रियजन, मै पूजा पाठ, जप तप ध्यान करना नहीं जानता फिर भी वह मेरे ऊपर इतने कृपालु हैं.,फिर आपसब तो हर प्रकार मुझसे श्रेष्ट हैं आप पर कृपा करने के लिए तो वह " शंख चक्र गदा- पद्म गरुड़ तजि --पधारेंगे , चिंता तज कर केवल प्रेम से उनको याद करना है. और फिर आप भी मेरी तरह "तुलसी" की ये चौपाइयां गा उठेंगे
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नाथ सकल साधन मैं हीना कीनी कृपा जानि जन दीना
नाथ आज मैं काह न पावा, मिटे दोष दुःख दारुण दावा
अब क्छू नाथ न चाहिय मोरे दीनदयाल अनुग्रह तोरे
अब प्रभु कृपा करहु एही भांती, सब तजि भजन करहूँ दिन राती.
क्रमशः
निवेदक:-व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला",
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