बुधवार, 11 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR (Aug.11,2010)

हनुमत कृपा-निज अनुभव
गतांक से आगे 


प्रियजन. इस आत्म-कथा में कोई रहस्यवादी पुट नहीं है. आप सभी पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति हैं इस लिए आप इतना तो अवश्य जान गये होंगे क़ी इसमें मुझे लेकर कोई ऎसी भयंकर विस्फोटक घटना नहीं हुई. . इतना तो मैं भी आज अपने इस घिसे पिटे प्राचीन मस्तिष्क की मदद से समझ पा रहा हूँ  


यदि मुझको भारत के उस प्रवास में कुछ हुआ होता तो आज मैं आपको यह संदेश न भेज पाता .संभवतः इस समय परमधाम में मेरा प्रेम दीवाना मन या तो मीराबाई की भांति अपने "गिरिधर गोपाल के आगे-पद घुंघरू बाँध " कर मतवाला हो नाचता होता या नरसी ,चैतन्य सा शून्य की ओर बाहें फैलाये बावरों की तरह अपने परमप्रिय इष्टदेव को आवाज़ लगाता फिरता. 
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.मैं वहीं पर हूँ जहां तब २००७-०८ में था. ऊपर अपने पास पहुँच पाने का मौक़ा "उन्होंने"हमे दिया ही नहीं. शुरू में मुझे आश्चर्य होता था क़ी क्यों "वह" मुझसे आँख मिचौली खेल रहे हैं.उनके मन में मेरे भविष्य के लिए क्या योजना है?


क्यों ऎसी बात हो रही है? कल तक  पता चल जाएगा.


निवेदक:व्ही. एन.श्रीवास्तव "भोला"
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