शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR




हनुमत कृपा - निज अनुभव 

कल (अगस्त ५) ,के संदेश से आगे 

आपने देखा "उनकी"प्रेरणा से कृपा-आख्यान-ग्रन्थ का ,अब तक लिखित अंतिम अध्याय ही खुला. मैं १८ वर्ष की अवस्था से कथा शुरू करना चाहता था "उन्होंने" मेरे जीवन के ८० वें वर्ष के विवरण से कथा प्रारम्भ करने का आग्रह किया .इष्ट देव की आज्ञा शिरोधार्य है.. 


प्रियजन आप सोचिये ,इस उम्र में ,एक साधरण इन्सान ,ऐसा कौन सा कमाल कर सकता है ,जिसका अफसाना बन जाये. फिर ,मेरे जैसा, नाना प्रकार के भव व्याधियों से ग्रसित व्यक्ति, जो पिछले अनेक वर्षों से USA के हावर्ड मेडिकल स्कूल की निगरानी में आधुनिकतम उपकरणों और औषधियों के सहारे जी रहा हो ,कौन सी ऎसी साधना कर सकता है जिससे वह अपने प्रियतम इष्ट को प्रसन्न कर सके और "उनकी" कृपा का पात्र बन सके.

पर अब आप देखेंगे क़ि ,मुझ कुपात्र को भी , घुमा फिरा कर "उन्होंने" कैसे अपनी कृपा का हकदार बना लिया. भाई "उनके" लिए क्या असंभव है.जामवंत जी ने झूठ तो नहीं कहा था  "कौन सो काज कठिन जग माही , जो नहीं  होई तात तुम पाही" 
और फिर जब उनके इष्ट ,मर्यादा पुरुषोत्तम "श्रीराम", स्वयम ह़ी  कुसेवको का  कल्याण करने से नहीं हिचकिचाते, जैसा उनके परम भक्त संत तुलसीदास जी महाराज ने रामचरितमानस में कहा है : .
"राम" सुस्वामि  कुसेवक  मोसो ,निज दिसि देखि दयानिधि पोसो.
लोकहूँ  बेद   सुसाहिब    रीती   ,    बिनय  सुनत  पह्चानत   प्रीती 
फिर ऐसे श्री राम के भक्त  सेवक अनुगामी मारूति नंदन हनुमान जी क्या कभी अपने सेवकों को निराश ,निराश्रय ,असहाय छोड़ सकते हैं.तो प्रियजन उन्होंने आपके स्नेही इस ८०-८१ वर्षीय ,अकर्मण्य कुसेवक स्वजन पर  कुछ न कुछ कृपा तो अवश्य ही कीं होगी इसका विश्वास आपको हो गया होग़ा..
चलिए अब थोड़ी आत्म-कथा भी हो जाये.
२००८ के भारतीय "मेरिज सीजन" में ,वहाँ स्वदेश में  ,कई निकटतम सम्बन्धियों के परिवारों में शादियाँ तय हो गयी.ऐसे अवसर पर बुजुर्गों के आशीर्वाद की बड़ी डिमांड होती  है. राम कृपा से ह्म दोनों अब इस स्पेशल कटेगरी में लगभग सर्वोच्च शिखर छू रहे  हैं. अस्तु अपनी जिम्मेदारी जानते हुए हमने भी इन "शुभ विवाहों" में शामिल होने का मन बनाया और जुलाई की उमस भरी गरमी में ह्म अमेरिका से भारत पहुँच भी गये.

शेष आगे के संदेशों में .
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"







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