"अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता
अस बर दीन्ह जानकी माता"
ऐसा नही हो सकता क़ि ह्मारे इष्ट देव,महावीर जी यह जानते नहीं हों क़ि हमे क्या चाहिए,अथवा उनकी निधि में वह विशेष वस्तु है ही नहीं जिसकी मुझे आज इस समय आवश्यकता है. प्रियजन ,जिसे जानकी माता का यह वर प्राप्त हो क़ि वह "आठों सिद्धियाँ और नवों निधि" खुले हाथ से दान करे , उसको भला क्या अभाव .भाई कहते हैं न -
जाके राम धनी , वाको काहे की कमी.
पर जो भी हो ,मुझे तो वह पिछले २४ घंटे से लटका रहे हैं,मैं उनके दरवाजे पर झोली फैलाये खड़ा हूँ ,पर उन्हें क्या फ़िक्र क़ि--
ह्म आस लगाए बैठे हैं ,वो वादा कर के भूल गये
या मेरी झोली भर जाएँ या क़ह दें ह्म को याद न कर.
मेरी मांग बहुत बड़ी नहीं है , केवळ इतनी ही है क़ि वह कृपा कर के ,एक दो कण प्रेरणा के मेरी झोली में डाल दें जिससे मैं उनके प्रति अपनी अटूट श्रद्धा-विश्वास की सत्य कथाएं ,अपने प्रिय पाठकों को सुना सकूँ. पर वह हैं क़ि मेरी ओर देखते तक नहीं. मजबूरन मुझे गुनगुनाना पड्ता है ---
दिल जलता है तो जलने दे , आंसू न बहा फ़रियाद न कर
तू बजरंगी का आशिक है , यूं नामे वफ़ा बर्बाद न कर
अब उन्हें चाहे जैसा भी लग रहा हो,मेरे बेटे-बेटियाँ ,नाती-पोते,और गुडिया जैसीं मेरी प्यारी.प्यारी ग्रांड-पुत्रिओं से लैस ,दस से पचास वर्ष की पूरी टीम जिसकी धोनी जैसी चमत्कारी कप्तान हैं मेरी ७४ - ७५ वर्षीय धर्म पत्नी. ,अवश्य कहीं कम्प्यूटर पर बैठीं हौले हौले मुस्कुरा रहीं होंगी और सोच रही होंगी क़ि क्या हो गया है आज अचानक इस ८१-८२ वर्षीय बुजुर्गवार को.
आप भी सोचिये ,कल प्रातःतक .
शेष -उनकी प्रेरणा का संदेश पाने के बाद.
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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