हनुमत कृपा - निज अनुभव
गतांक से आगे
महात्माओं का कथन है ,"ईश्वर प्रेम है " (God is LOVE). आज के कलि काल में हम केवल प्रेम से ही "उन्हें" पा सकते हैं.अनेकों प्रकार के योग,जप,तप, दान,यज्ञ ,व्रत ,नियम करने वाले भी प्रभु की उस अहेतुकी कृपा के अधिकारी नहीं बन पाते जो क़ी उनसे अनन्य प्रेम करने वाले भक्तों को ह्मारे प्रभु निःसंकोच प्रदान करते हैं..
उमा जोग जप दान तप नाना मख व्रत नेम !
राम कृपा नहिं करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम !!
अब प्रश्न यह उठता है इतना प्रेम ह्म साधारण प्राणी कहां और कैसे पायें जिसे "उनके" श्री चरणों पर अर्पित कर ह्म "उनके" बन सकें ,"उनको" अपना बना सकें..और यदि सौभाग्य से कोई रोज गार्डेन मिल भी जाये तब यह समस्या होगी क़ी ह्म .उस निराकार प्रेमी को कैसे अपनी पुष्पांजली का लाल गुलाब पेश करें?
प्रियजन ! ह्म सब अति भाग्यशाली हैं. अपने जन्म से ही ह्म प्रेम के प्रतीक लाल गुलाब के सबसे बड़े बाग़ में खेल रहे हैं. यह रोज़ गार्डेन है हमारी जननी माँ की ममतामयी गोदी, जहाँ ह्म माँ के बक्षस्थ्ल से प्रवाहित प्रेम रस का पान करते हैं और पुष्ट हो कर वही प्रेम रस जन जन में वितरित करने को समर्थ होजाते हैं..जीवन पथ पर आगे बढने पर-
भ्रम भूलों में भटकते उदय हुए जब भाग
मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग
ह्म पर प्रभु की अहेतुकी कृपा होने पर हमारे सद्गुरु ह्म पर विशेष करूणा करते हैं .हमें अपना प्रेम पात्र बना लेते हैं.और हमारा हृदय प्रभु प्रेमाँमृत से भर देते हैं.
निगमाँगम पुरान मत एहा ,कहाहि सिद्ध मुनि नही संदेहा
संत बिसुद्ध मिलहिं पर तेही , चितवहि राम कृपा कर जेही.
गुरुदेव के प्रांगण में प्रवाहित ज्ञान गंगा में स्नान कर ह्म अपने कलुषित मन,बुद्धि की कालिमा धो डालते हैं. प्रियजन ! हमने गुरुजन से ही यह जाना है क़ी " सम्पूर्ण मानवता पर अहेतुकी कृपा करने वाला बस एक ही है और वह एक है हमारा परम पिता परमात्मा " अपने अनुभव से आपको बताता हूँ क़ी भैया ! ह्म सीधे (directly)उनसे नहीं मिल सकते. हमे पहिले उनके पी.ए..से मिलना पड़ेगा.
प्रियजन ! हमे "उनके" पी. ए . की खोज में बहुत दूर नहीं जाना होग़ा."उन्होंने" अपने प्रतिनधि (Counsel) साधु महात्माओं के रूप में ह्मारे पास भेज रखे हैं वे प्रतिनिधि हैं ह्मारे आपके सद्गुरु.हमे केवल उनको पहचानना है और उनकी शरण में समर्पित हो जाना है .सद्गुरु पा लेने के बाद हमे कुछ भी नहीं करना है
जननी माँ का "पय- प्रेम-अम्रूत" तथा सद्गुरु का "प्रेम-ज्ञान गंगाजल" पान कर लेने पर और हमे क्या चाहिए अब तो अंजुली भर भर कर माँ से मिला यह प्रेमामृत ,और गुरुदेव का यह "प्रेम -गंगाजल" सब प्रेम -पियासों को पिला पाऊँ ,एक यही कामना है. .
जय जय जय माँ ,जय गुरुदेव
क्रमशः :
निवेदक: वही. एन. श्रीवास्तव."भोला" .
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