मंगलवार, 31 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPISOOR ( Aug.31, '10)

हनुमत कृपा -निज अनुभव

गातांक से आगे 

प्रियतमप्रभु  के प्रतिनिधि- ह्मारे  माता  पिता तथा आध्यात्मिक सद्गुरु श्री श्रीब्रह्मलीन  सत्यानंदजी महाराज और उनके आशीर्वाद के फलस्वरूप इस जीवन में ह़ी  मिलीं श्री श्री माँ आनन्दमयी की  मूक प्रेमाभक्ति दीक्षा  ने ह्मारे  शुष्क हृदय को प्रेम रस से भर दिया है. इस प्रकार हमे वहपुष्पवाटिका तो मिल गयी जिस के लाल गुलाबो की माला ह्म अपने प्रियतम इष्ट के कंठ में डाल सकते हैं

अब शेष है यह समस्या क़ी वह "अदृश्य  " मनमोहन कहाँ मिले ? प्रियजन ! यह कोई उतनी कठिन समस्या नहीं है. ह्म अनादि काल से इसका हल जानते हैं पर स्वभाववश भुला बैठे हैं .याद करें महाभारत काल में योगेश्वर कृष्ण ने महारथी अर्जुन से क्या कहा था. .              
 "ईश्वर: सर्वभूतानाम   हृद्देशे  अर्जुन तिष्ठति 
(ईश्वर हृदय में प्राणियों के बस रहा है  नित्य  ही )

इसी सन्दर्भ में गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है
"जड़ चेतन जग जीव जत सकल राम मय जान"       और 
"राम ब्रह्म  चिन्मय अबिनासी ,सर्व रहित सब उर पुर बासी

प्रियजन ! हमारा प्रियतम मनमोहन इष्ट घटघट का बासी है,वह प्रति पल ह्मारे अंगसंग है, वह हर घड़ी ह्मारे इर्द गिर्द रहने वाले परिवार के सभी प्राणियों में है .वह गंगाघाट की झुग्गियों में बसे भिक्षुओं के नंगे,भूखे प्यासे बच्चों में भी है. 

अब जब इतने भिन्न स्वरूपों में ह्मारे इष्ट हमे मिल गये तब काहे की चिंता ?. सारी समस्याएँ मिट गयीं  अब तो ह्म हैं,पुष्पवाटिका है,और जड़ चेतन सभी जीवों में और सृष्टि  के कण कण में ह्मारे इष्ट. अब विलम्ब काहे का  ?,इन में से किसी एक को लाल   गुलाब की कली भेंट कर दें. ना जाने किस भेष वाले नारायन आपका गुलाब स्वीकार करलें .
प्रियजन !आपकी हमारी पूजा संपन्न हो गयी  ...

निवेदक: व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"

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