गुरुवार, 26 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPISOOR ( Aug.26,'10)


हनुमत कृपा-निज अनुभव 
गातांक से आगे 

मेरे परम प्रिय पाठकगण 

मैं पिछले दो दिनॉ से वह सब नहीं लिख पा रहा हूँ जो लिखने की सोंच कर कलम उठाता हूँ ईश्वर की मर्जी समझ कर चुप बैठा हूँ.  आप ही कहें कैसे साहस कर सकता हूँ "उनसे" पंगा लेने का?  लेकिन आपको अपने दिल का हाल सुना तो सकता हूँ-------         

                        प्यारे स्वजन ! ये प्यार का अंजाम देखिये 
"वह" ज़ुल्म कर रहे हैं औ मुस्का रहा हूँ मैं 

मैं लिख नहीं पाता हूँ ,कलम तोड़दी "उसने" 
फिर भी तो उसी "इष्ट" के गुण गा रहा हूँ मैं

वो  कब तलक मानेंगे नहीं  देखना है ये 
वो मेरे हैं , कब से उन्हें समझा रहा  हूँ मैं 

मेरी तरफ से आपही ये उनसे पूछिये 
क्या जुर्म है मेरा जो सजा पा रहा हूँ मैं 

गनीमत है आज "उन्होंने" इतना लिखने दिया .ऊपर वाले आशार भी उनकी ही मेहरबानी से आपसे आप ही कम्प्यूटर पर बैठते ही ज़हेन में एक के बाद एक आते रहे. तो  फिर ऐसा  लगता है क़ी "उन्होंने" अपने इस प्यारे सेवक को माफ़ कर दिया है.और एक बार, फिर वो ह्म पर कृपालु  हो गये हैं. और एक बात कहूँ ,उनके डर से ह्मारे हमउम्र  कम्प्यूटर मियाँ ने भी आज अभी तक मेरे साथ कोई शरारत नहीं की चुप चाप अपना काम किये जा रहे हैं.

नजाने क्या अनाप शनाप मैं पिछले दो दिन से बोल रहा था. क्या करूं दुख़ी था इसलिए क़ी आपकी जी भर सेवा  नहीं कर पा रहा था. भाई दुःख और क्रोध में मति भ्रमित हो जाती है और लगता है दुःख के कारण मेरा भी कोई पेंच ढीला हो गया था.

मैं लज्जित हूँ अपनी करनी पर .कायदे से अब मुझे "उनसे" क्षमा मागनी चाहिए.और मैं मन ही मन मांग भी रहा हूं .लेकिन , मैं आपसे भी करबद्ध प्रार्थना करता  हूँ क़ी आप भी मेरी शिफारिश "उनसे" ज़रूर करें.और मुझे माफी दिलवादें . आपकी बड़ी कृपा होगी 
...
आज इतना ही , शेष कल 

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"


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