सोमवार, 16 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR (Aug.16 ,2010)



हनुमत कृपा - निज अनुभव 
गतांक से आगे 

२६ नवम्बर,२००८ की कहानी रह जाती है,क्या करूं ,"वह" मुझे कुछ इधर कुछ उधर उलझा देते हैं. "वह" उलझाएँ और ह्म छूट पायें,असंभव  है . आप ही सोंच कर देखें कौन पार पा सकता है इन व्यवधानों से जो "उन्होनें " रची हों. यहाँ यू एस में अचानक, २४ घंटे के लिए  इंटरनेट का लोप हो जाना  या भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर ह्मारे अमेरिकन कम्प्युटर जी को पूरी तरह आज़ाद हो कर मनमौजी बन जाना, छापता हूँ कुछ, छपता है कुछ. घंटो जूझता रहता हूँ . मैं जानता हूँ क़ी "वह" मेरे भले के लिए ही व्यवधान उत्पन्न करते हैं .वह चाहते हैं क़ी मैं अधिक से अधिक समय तक उनको याद करूं, उनकी प्रेरणा ग्रहण करूं और मेरा संदेश  उनके समर्थन से अधिकाधिक सार्थक और उपयोगी हो पा

हाँ वह तारीख उस वर्ष भी अवश्य आयी होगी.पर मेरा विश्वास करें,वह कब .आयी कब गयी मुझे इसका कोई ज्ञान नह़ी.उस तारीख के कुछ दिन पहिले ,मेरा मुम्बई जाने का कार्यक्रम मुल्तवी हो गया.. सोचता हूँ जाता तो उस २६ तारीख को ,मेरी क्या गत बनती वहाँ,यह कल्पना करने की बात है. उसकी जगह उन्होंने भेजा हमे ऋषिकेश में भागीरथी तट पर निर्मित ,बाबा कालीकमली.वाले के अत्याधुनिक वान्प्रस्थ आश्रम में विश्राम और स्वास्थ्य लाभ करने के लिए. ह्मारे स्नेही गुप्ता दंपत्ति और ह्म दोनों वहाँ की प्राकृतिक सौंदर्य तथा गुप्ता जी  के घर से आये पोष्टिक पकवानो का और वहाँ की केन्टीन के सादे ,शुद्ध और  सात्विक भोजन तथा आश्रम की गाय के ताज़े दूध  का आनंद लेने में जुट गये. ह्मारे आश्रम के प्रांगन में सुबह शाम की पूजा-आरती, आस पास के मन्दिरों से शंख घडियाल की आवाज़,नित्यप्रति सूर्यास्त के समय की गंगा आरती में "ॐ जय गंगे माता" का  समवेत स्वरों में गायन. रात रात भर ह्मारे कानो में अनहद नाद के समान गूँजता रहता था.

पर न मेरी खांसी थमी और न मेरा ज्वर उतरा.पहिले ९९ रहता था अब धीरे धीरे ऊपर चढ़ रहा था . एक रात १०२ हो गया. क्रोसिन और विलायती दवाई ताईलेनोल भी बेअसर हो गयी .तुरत ऋषिकेश से वापस जाने का कार्यक्रम बनाया .नोयडा से गाड़ी आयी ,ह्म चल दिए. "उनकी" अम्रूत वर्षा रुकी नहीं ,ऋषिकेश की आनंद वर्षा अब कृपा वर्षा बन गयी.
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नोयडा में गाड़ी से उतरना कठिन लगा,सीढियां अमरनाथ यात्रा की चढ़ाई से अधिक दुर्गम लगीं. कैसे ऊपर पहुंचा मुझे याद नहीं.और जो जानते हैं इसके विषय में आज भी बात नहीं करते. पर मैं जानता हूँ "उनके" सिवा कौन मेरी मदद कर रहा होगा? जो भी हो,यकीनन उसके रूप में हमारा इष्ट ,वह "सर्व शक्तिमान -करुना निधान" ही रहा होग़ा


निवेदक: वही. एन. श्रीवास्तव "भोला" .


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