रविवार, 15 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR (Aug.14/15 .2010)

हनुमत कृपा - निज अनुभव 

गतांक से आगे 


ह्मारे इष्ट ह्म पर कैसी कैसी कृपा करते हैं ,कैसे बड़ी बड़ी मुसीबतों में हमारी रक्षा करते हैं .प्रियजन,ये तो वह ही जानें. हमारी समझ के बाहर है यह रहस्य. ह्म तो उतना ही जानते हैं जितना संतों ने कहा है और जो इष्ट देव की कृपा से सत्संगों में ह्मारे कानो में पड़ा है..


श्री राम के परम भक्त तुलसीदासजी ,अपने इष्ट का गुणगान करते हुए कहते हैं, क़ी भक्तों पर अकारण दया करना उनका स्वभाव है.श्री राम एक ऐसे उदार स्वामी हैं जो बिना कोई सेवा करवाए ही मेहनताना दे देते हैं.


"कोमल चित अति दीन दयाला 
  कारण बिनु रघुनाथ कृपाला "


"ऐसो को उदार जग माही,
 बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर राम सरिस कौउ नाहीं.


प्रियजन,मैं जीवन के इन थोड़े से बचे हुए पलों में एक पल के लिए  भी उनकी यह कृपा भुलाना नही चाहता क़ी 


"मैं जी रहा हूँ (क्यूँकी) जिलाया है उन्होंने 
 तब तक जिऊंगा जब तलक मुझ को जिलाएंगे "


 पर काम क्या करना है मुझे  ये तो बता दे,
 बेकार बिठा कर मुझे कब तक खिलाएंगे "


उन्होंने ज़िंदा रक्खा है ,जीवन दान दिया है, क्यों, किस लिए, अभी और क्या क्या करवाना चाहते हैं ? विगत ८० वर्षों में जितना बन पाया मैंने वही किया है ,जिसे करने की प्रेरणा "उन्होंने" मुझे दी .


मैं आप को यह संदेश लिख रहा हूँ यह भी केवल "उनकी" कृपा से ही संभव  हुआ है. "जीवन दान" मिलने के बाद मैं सोचा करता था क़ी क्या किया जाये. इस प्रश्न का उत्तर मिला इसी वर्ष मार्च के अंत में ,जब अचानक यह प्रेरणा हुई क़ी क्यूँ न "प्रेम-भक्ति" के निजी अनुभव अपने स्वजनों  को बताओ ,उनको भी प्रेरित करो प्यार करने के लिए, प्यार बाटने के लिए .
पहले निज से -"स्वयम अपने आप से"  प्यार करो ,फिर "अपनों" को प्यार करो, फिर आस पास वालों -"पड़ोसियों" से प्यार करो और धीरे धीरे अपने प्यार का दायरा बढाते जाओ जब तक समस्त मानवता तुम्हे प्यारी न लगने लगे.


कहां और कब "उन्होंने" जीवन दान दिया मुझे  और .२६ नवम्बर २००८ को क्या हुआ मेरे साथ  यह कथा रह ही जाती है --  .


निवेदक: व्ही. एन.  श्रीवास्तव  "भोला"

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